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नफरत करनेवालों के सीने में प्यार भरनेवाले इन्दीवर

‘मल्हार’ फिल्म के गीत ‘बड़े अरमान से रखा है बलम तेरी कसम/ प्यार की दुनिया में ये पहला कदम’ से श्याम बाबू ‘आज़ाद’ इन्दीवर के नाम से मशहूर हो गए. आज उनकी पुण्यतिथि है. उनके जीवन के कुछ अनछुए पहलुओं और गीतों को लेकर महेंद्र भीष्म का यह लेख रचनाकार पर देखा तो सोचा आपसे साझा करना चाहिए. आज उस इन्दीवर को याद करने का एक अच्छा अवसर है जिसने ‘चन्दन सा बदन चंचल चितवन जैसे गीत लिखकर फिल्मों में हिंदी गीतों को प्रतिष्ठित किया तो 80 के दशक में उसने ‘झ-झ झोपडी में च-च चारपाई’ जैसे द्विअर्थी गीत भी लिखे. फिलहाल यह बेहद सूचनापरक लेख. कल यानी 27 फ़रवरी को इन्दीवर की पुण्यतिथि थी- मॉडरेटर
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गीतकार इंदीवर सिनेजगत के उन नामचीन गीतकारों में से एक थे जिनके लिखे सदाबहार गीत आज भी उसी शिद्‌दत व एहसास के साथ सुने व गाए जाते हैं, जैसे वह पहले सुने व गाए जाते थे। इंदीवर जी ने चार दशकों में लगभग एक हजार गीत लिखे जिनमें से कई यादगार गाने फिल्‍मों की सुपर-डुपर सफलता के कारण बने। उत्तर प्रदेश के झाँसी जनपद मुख्‍यालय से बीस किलोमीटर पूर्व की ओर स्‍थित बरूवा सागर कस्‍बे में आपका जन्‍म कलार जाति के एक निर्धन परिवार में 15 अगस्‍त, 1924 ई. में हुआ था। आपका मूल नाम श्‍यामलाल बाबू राय है। स्‍वतंत्रता संग्राम आन्‍दोलन में सक्रिय भाग लेते हुए आपने श्‍यामलाल बाबू आजादनाम से कई देशभक्‍ति के गीत भी अपने प्रारम्‍भिक दिनों में लिखे थे।
श्‍यामलाल को बचपन से ही गीत लिखने व गाने का शौक था। जल्‍दी ही आपको स्‍थानीय कवि सम्‍मेलनों में शिरकत करने का मौका मिलने लगा। स्‍व. इंदीवर के बाल सखा रहे स्‍वतंत्रता संग्राम सेनानी स्‍वर्गीय श्री रामसेवक रिछारिया एवं स्‍वर्गीय श्री आशाराम यादव से लेखक ने उनके जीवनकाल में इंदीवर जी के बारे में कई जानकारियाँ प्राप्‍त की थीं, जैसे श्री रिछारिया जी ने लेखक को बताया था कि इनके पिता श्री हरलाल राय व माँ का निधन इनके बाल्‍यकाल में ही हो गया था। इनकी बड़ी बहन और बहनोई घर का सारा सामान और इनको लेकर अपने गाँव चले गये थे। कुछ माह बाद ही ये अपने बहन-बहनोई के यहाँ से बरूवा सागर वापस आ गये थे। बचपन था, घर में खाने-पीने का कोई प्रबन्‍ध और साधन नहीं था। उन दिनों बरूवा सागर में गुलाब बाग में एक फक्‍कड़ बाबा कहीं से आकर एक विशाल पेड़ के नीचे अपना डेरा जमाकर रहने लगे थे। वे कहीं भिक्षा माँगने नहीं जाते थे। धूनी के पास बैठे रहते थे। बहुत अच्‍छे गायक थे। वे चंग पर जब गाते और आलाप लेते थे, तो रास्‍ता चलता व्‍यक्‍ति भी उनकी स्‍वर लहरी के प्रभाव में गीत की समाप्‍ति तक रूक जाता था। जब लोग उन्‍हें पैसे भेंट करते थे तो वह उन्‍हें छूते तक नहीं थे। फक्‍कड़ बाबा के सम्‍पर्क में श्‍यामलाल को गीत लिखने व गाने की रूचि जागृत हुई। फक्‍कड़ बाबा गांजे का दम लगाया करते थे। अतः बाबा को भेंट हुये पैसों से ही श्‍यामलाल चरस और गांजे का प्रबन्‍ध करते थे। श्‍यामलाल उन बाबा की गकरियाँ (कण्‍डे की आग में सेंकी जाने वाली मोटी रोटी) बना दिया करते थे, स्‍वयं खाते और बाबा को खिलाते फिर बाबाजी का चिमटा लेकर राग बनाकर स्‍वलिखित गीत-भजन गाया करते थे।
राष्‍ट्रीय विचारधारा और सुधार की दृष्‍टि से रामसेवक रिछारिया ने उन्‍हें साहित्‍य की ओर मोड़ा। उनकी रचनाओं को सुधारते रहे। एक बार कालपी के विद्यार्थी सम्‍प्रदाय के सम्‍मेलन में श्‍यामलाल आजादने जब मंच पर कविता पाठ किया तो श्रोताओं द्वारा उन्‍हें काफी सराहा गया और बड़े कवियों की भाँति विदाई के समय उन्‍हें इक्‍यावन रूपया की भेंट प्राप्‍त हुई। इन इक्‍कयावन रूपयों से सबसे पहले नई हिन्‍द साइकिल खरीदी। तब हिन्‍द साइकिल छत्‍तीस रूपये में आती थी। सम्‍मेलनों में जाने योग्‍य अचकन और पाजामा सिलवाए। फिर भी उनकी जेब में काफी रूपये बचे रहे। उन दिनों एक रूपया की बहुत कीमत थी।
बरूआ सागर नगर पालिका परिषद के अध्‍यक्ष श्री मेहेर सागर इंदीवर जी के संस्‍मरण सुनाते हुए कहते हैं कि वे हमारे घर अक्‍सर मट्‌ठा पीने आया करते थे। इंदीवर जी को मट्‌ठा पीने और बाँसुरी बजाने का बहुत शौक था। वे बेतवा नदी के किनारे, बरूवा तालाब के किनारे घण्‍टों बाँसुरी बजाते हुए मदमस्‍त रहते थे। इन्‍दीवर जी हमारे कस्‍बे के गौरव है, वे हमारी थाती हैं, उनके जीवनकाल से ही यहाँ पर प्रत्‍येक वर्ष विशाल कवि सम्‍मेलन का आयोजन किया जाता रहा है। नगर पालिका द्वारा स्‍व. इन्‍दीवर जी के नाम से एक मुहल्‍ले का नाम इंदीवर नगर कर दिया गया है। नगर पालिका परिषद प्रांगण में निर्माणाधीन वातानुकूलित सभागार का नाम भी हम लोग इंदीवर जी के नाम से रखने जा रहे हैं। एक प्रसंग का जिक्र करते हुए वह सगर्व बताते है कि युवा श्‍यामलाल आजादको एक बार बरूवा सागर में हुए कवि सम्‍मेलन में अंग्रेजी सत्ता को कटाक्ष कर उनके गाए गाने ओ किराएदारों कर दो मकान खाली….पर जेल की हवा भी खानी पड़ी थी। इन्‍होंने स्‍वतंत्रता संग्राम व देशभक्‍ति के कई गीत लिखे, कई स्‍वतंत्रता संग्राम सेनानियों के आप निकटस्‍थ साथी रहे हैं जिन्‍हें अपने रचे शौर्य पूर्ण गीत सुना कर वे जोश से भर देते थे। देश की स्‍वतंत्रता के 20 वर्ष के बाद राष्ट्र द्वारा उन्‍हें स्‍वतंत्रता संग्राम सेनानी का दर्जा दिया गया। बरूवा सागर मोटर-स्‍टैण्‍ड में लगे स्‍वतंत्रता संग्राम सेनानियों के शिलालेख में आपका नाम सम्‍मान के साथ अंकित है।
युवा होते श्‍यामलाल आजादकी शोहरत स्‍थानीय कवि सम्‍मेलनों में बढ़ने लगी और उन्‍हें झाँसी, दतिया, ललितपुर, बबीना, मऊरानीपुर, टीकमगढ़, ओरछा, चिरगाँव, उरई में होने वाले कवि सम्‍मेलनों में आमंत्रित किया जाने लगा जिससे इन्‍हें कुछ आमदनी होने लगी। इसी बीच इनकी मर्जी के बिना इनका विवाह झाँसी की रहने वाली पार्वती नाम की लड़की से करा दिया गया। जिससे वह अनमने रहने लगे और जबरदस्‍ती की गई शादी के कारण रूष्‍ट होकर लगभग बीस वर्ष की अवस्‍था में मुम्‍बई भागकर चले गए जहाँ पर इन्‍होंने दो वर्ष तक कठिन संघर्षों के साथ सिनेजगत में अपना भाग्‍य गीतकार के रूप में आजमाया। वर्ष 1946 में प्रदर्शित फिल्‍म डबल फेसमें आपके लिखे गीत पहली बार लिए गए किन्‍तु फिल्‍म ज्‍यादा सफल नहीं हो सकी और श्‍यामलाल बाबू आजादसे इंदीवरके रूप में बतौर गीतकार अपनी खास पहचान नहीं बना पाए और निराश हो वापस अपने पैतृक गाँव बरूवा सागर चले आए। वापस आने पर इन्‍होंने कुछ माह अपनी धर्मपत्‍नी के साथ गुजारे। इस दौरान इन्‍हें अपनी पत्‍नी पार्वती से विशेष लगाव हो गया जो अंत तक रहा भी। पार्वती के कहने से ही ये पुनः मुम्‍बई आने-जाने लगे और बी व सी ग्रुप की फिल्‍मों में भी अपने गीत देने लगे। यह सिलसिला लगभग पाँच वर्ष तक चलता रहा। इस बीच इन्‍होंने धर्मपत्‍नी पार्वती को अपने साथ मुम्‍बई चलकर साथ रहने का आग्रह किया, परन्‍तु पार्वती मुम्‍बई में सदा के लिए रहने के लिए राजी नहीं हुई। उनका कहना था, ‘रहो बरूवा सागर में और मुम्‍बई आते जाते रहो। इंदीवर इसके लिए तैयार नहीं हुए और पत्‍नी से रूष्‍ट होकर मुम्‍बई में रह कर पूर्व की भाँति फिल्‍मों में काम पाने के लिए संघर्ष करने लगे। इनकी मेहनत रंग लाई और वर्ष 1951 में प्रदर्शित फिल्‍म मल्‍हारके गीत बड़े अरमानों से रखा है बलम तेरी कसम  ने सिने जगत में धूम मचा दी। फिल्‍म इस गीत के कारण काफी चली और इंदीवर स्‍वयं की पहचान बतौर गीतकार बनाने में सफल हुए।
अपनी धर्मपत्‍नी पार्वती से, जिसे वह पारोकहकर सम्‍बोधित करते थे, इन्‍हें बहुत प्‍यार था। तमाम प्रयासों के बाद भी वह पारो को मुम्‍बई नहीं ला सके और यहीं से इनके गीतों में विरह, वेदना, दर्द का एक अजीब पैनापन देखा जाने लगा, इनके बचपन के मित्र स्‍व. आशाराम यादव बताया करते थे ‘‘जबईं से श्‍यामलाल बाबू रोउत गाने लिखन लगो तो, वो दुःखी मन से गाने लिखे करत तो।
जिंदगी के अनजाने स़फर से बेहद प्‍यार करने वाले हिन्‍दी सिने जगत के मशहूर शायर और गीतकार इंदीवर का जीवन से प्‍यार उनकी लिखी हुई इन पंक्‍तियों में समाया हुआ है-
जिंदगी से बहुत प्यार हमने किया
मौत से भी मोहब्बत निभाएंगे हम
रोते रोते जमाने में आए मगर
हंसते-हंसते जमाने से जाएंगे हम
वर्ष 1963 में बाबूभाई मिस्‍त्री की संगीतमय फिल्‍म पारसमणिकी सफलता के बाद इंदीवर शोहरत की बुलंदियों पर जा पहुँचे। इंदीवर के सिने कैरियर में उनकी जोड़ी निर्माता निर्देशक मनोज कुमार के साथ खूब जमी। मनोज कुमार ने सबसे पहले इंदीवर से फिल्‍म उपकारके लिए गीत लिखने की पेशकश की। कल्‍याण जी आनंद जी के संगीत निर्देशन में फिल्‍म उपकार के लिए इंदीवर ने कस्‍मे वादे प्‍यार वफा…जैसे दिल को छू लेने वाले गीत लिखकर श्रोताओं को भावविभोर कर दिया। इसके अलावा मनोज कुमार की फिल्‍म पूरब और पश्‍चिमके लिये भी इंदीवर ने दुल्‍हन चली वो पहन चलीऔर कोई जब तुम्‍हारा हृदय तोड़ देजैसे सदाबहार गीत लिखकर अपना अलग ही समां बांधा। मैं तो भूल चली बाबुल का देश‘ ‘चन्‍दन सा बदन‘ ‘छोड़ दे सारी दुनिया किसी के लिएजैसे इंदीवर के लिखे न भूलने वाले गीतों को कल्‍याणजी-आनंदजी ने संगीत दिया।
वर्ष 1970 में विजय आनंद निर्देशित फिल्‍म जॉनी मेरा नाम में नफरत करने वालों के सीने में…..‘ ‘पल भर के लिये कोई मुझे…जैसे रूमानी गीत लिखकर इंदीवर ने श्रोताओं का दिल जीत लिया। मनमोहन देसाई के निर्देशन में फिल्‍म सच्‍चा झूठाके लिये इंदीवर का लिखा एक गीत मेरी प्‍यारी बहनियां बनेगी दुल्‍हनियां..को आज भी शादी के मौके पर सुना जा सकता है। इसके अलावा राजेश खन्ना अभिनीत फिल्‍म सफरके लिए इंदीवर ने जीवन से भरी तेरी आँखें…और जो तुमको हो पसंद….जैसे गीत लिखकर श्रोताओं को भाव विभोर कर दिया।
जाने माने निर्माता निर्देशक राकेश रोशन की फिल्‍मों के लिये इंदीवर ने सदाबहार गीत लिखकर उनकी फिल्‍मों को सफल बनाने में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभायी। उनके सदाबहार गीतों के कारण ही राकेश रोशन की ज्‍यादातर फिल्‍में आज भी याद की जाती है। इन फिल्‍मों में खासकर कामचो
 
      

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5 comments

  1. aisi mahan vibhuti se na mil pane ka,afsos jindagi bhar rahega

  2. एक प्रसिद्ध गीतकार के स्मरण के लिए आभार॥

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