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यह साल तू जा… और ना आना लौट कर…

यह साल बीत रहा है है लेकिन याद रहेगा. देव आनंद, शम्मी कपूर, श्रीलाल शुक्ल, अदम गोंडवी, भूपेन हजारिका, जगजीत सिंह, सत्यदेव दुबे सहित साहित्य-कला-सिनेमा की कितनी विभूतियों को हमने इस साल खो दिया. बड़ी आत्मीयता और शिद्दत से कुछ विभूतियों को याद करते हुए इस साल का मर्सिया लिखा है कवयित्री, अभिनेत्री नेहा शरद ने. साल की आखिरी पोस्ट इस उम्मीद के साथ कि आनेवाला साल सबके लिए अच्छा हो- जानकी पुल. 

ऐसे साल का तो गुज़र जाना बेहतर — २००८ में एक फ़ोन आया था ….मैं मोहन चुड़ीवाल ,देवानन्द जी का सेक्रेटरी …..देव साहब शरद जी के ऑडियो सुनना चाहते हैं …नेकी और पूछ -पूछ ..दो दिन बाद की मुलाक़ात ठहरी — अपने ऑफिस में नए प्रोजेक्ट पर काम करते हुए …तेज़ आँखे ,इंग्लिश में gentleman के सभी अर्थों को साकार करते हुए …..चहरे पर उम्र आई थी …शख्सियत पर नहीं ….पप्पा के ऑडियो का ज़िक्र करते रहे ….फिर साहिर पर मैने बहुत काम किया है ..जिन प्रोजेक्ट्स में फिनान्स मिलना ना मुमकिन हो ऐसे विषयों पर काम करना मेरा शौक रहा है ….साहिर उनमें से ही हैं …मैंने साहिर साहब का ज़िक्र छेड़ दिया ….उनके और साहिर को रिश्तों को लेके कितनी गलतफहमियां लोगों में रहीं हैं,वह तुरंत दूर हो गयीं ….वह इतनी शिद्दत से साहिर साहब के बारे में बात करते रहे और अचानक बोले —बहुत मुश्किल है यहाँ …एक की तारीफ़ करो तो दूसरा नाराज़ हो जाता है …पर एक बात जो में interviews में कभी नहीं कह पाता वह आज कहता हूँ ….साहिर सा मुक्क़मल शायर ना कोई था ,ना है …..मैंने किसी की इतनी मज़बूत शख्सियत भी नहीं देखी,जैसी साहिर की थी ….उन्होंने अपनी किताब ‘Romancing with life ‘ गिफ्ट की और मैं ( नाचते हुए ….)ऑफिस बाहर आ गयी …
16th dec 2011 …. मोहन जी का sms –codolence prayer ,महबूब स्टूडियो …तकलीफ़देह था. ….

मैं आज से शायद कोई दस साल पहले फिल्मिस्तान में शूटिंग कर रही थी …साड़ी,लम्बे बालों का विग और makeup के साथ जब में shot देके लौट रही थी तो देखा सामने हुसैन साहब …लडकियां ज्वेलरी खरीदतीं हैं और मेरे पास जब ज़्यादा पैसे होतो पेंटिंग …हुसैन साहब ….अरे वाह….मैं मिलने के लिए आगे बढ़ी पर हुसैन साहब मुझसे ज्यादा तपाक से मिले ….अरे मोहतरिमा कैसी हैं आप …ज़माना हो गया आप से मिले हुए …हमारी फिल्म का सेट लगा है यहाँ ..आइये हम दिखाते हैं ….मैं मुस्कुरा दी ….हुसैन साहब किसी और को समझ मुझ से बात कर रहे थे …हुसैन साहब ने मुझे पूरा सेट दिखाया ..गप्पे मारे,हमने चाय पी …आख़िरकार मैंने उनसे बिदा ली और कहा …वैसे मेरा नाम …….और सारी बात बता दी …हुसैन साहब ताज्जुब से मुझे देखने लगे फिर हंस दिए ..ठीक है ,वैसे आप से मिल कर भी अच्छा लगा ….इसके बाद भी कुछ मुलाक़ाते यहाँ -वहां हुई……

जगजीत सिंह जी के बचपन से कार्यक्रम देखें हैं ….उनकी recordings में जाने का मौक़ा मिला ,एक कार्यक्रम में शुरू में मैंने compare किया और फिर उनकी ग़ज़लों का दौर शुरू हुआ ….ग़ज़ल का कोई माई बाप नहीं बचा उनके जाने के बाद …लोकप्रियता और ग़ज़ल को एक दूसरे से दशकों तक जोड़ कर रखा उन्होंने ….एक हीलिंग workshop में देखा फिर उन्हें …वह अपने बेटे और मै अपनी माँ के जाने के बाद वहां अपने -अपने प्रश्नों के साथ घिरे बैठे थे …..

श्रीलाल शुक्ल जी — श्रीलाल शुक्ल हिन्दी के उन चुनिन्दा लेखकों में से हैं जो सचमुच लेखक होने का अर्थ जानते थे,उनकी लेखनी व्यंग साहित्य में मील का पत्थर थी ,मुझे कहने की भी आवश्कता नहीं है /अर्थ नहीं है …पप्पा के बारे में स्वयं व्यंगकार होते हुए भी जिस तरह उन्होंने गोष्ठियों ,लेखों में कहा ,लिखा है हम उनके आभारी हैं अन्यथा हिन्दी के कुछ आलोचक ,लेखक शरद जी के बारे में लिखते समय एक अनजान भय से व्याप्त दीखते हैं जो हास्यास्पद और दुखद भी है ….

आदम गोंडवी जी को भी पढ़ा और मुलाक़ात का मौक़ा भी मिला …..

मार्च में एक मॉल में मेरी एक सहेली ने मुझे मिलवाया –यह शम्मी जी के बेटे हैं ….ओह्ह …आप तो born lucky हैं ,मैंने मुस्कुरा कर कहा !….ओह्ह..I must tell this to my father …he will be happy to hear that …..

और भी कई विभूतियाँ हमारे बीच नहीं रहीं ….मैं ज़िक्र सिर्फ उनका कर रही हूँ जिनसे व्यक्तिगत सम्बन्ध थे या मुलाक़ात का सिलसिला बना था ….

बचपन में हैवदन नाटक भोपाल लेके आये थे दुबे जी ,मुझे याद है मुंबई में भारती जी के घर एक शानदार गोष्ठी हुई थी जिसमे पप्पा,पद्मा सचदेव जी ,वी.पी.सिंह के संग दुबे जी थे… को अँधा युगके कुछ अंश अभीनीत किये जिसमे उनके निर्देशन ,अभिनय से मुंबई में वर्षों तक हिंदी नाटक टिके रहे …… पिछले तीन महोनों से icu में थे सत्यदेव दुबे ……पहले जब भी मुलाक़ात होती ,अब और क्या करूँ का विचार ही उन्हें घेरा रहता ,ऋचा मेरी बहन ने हाल ही में कुछ कुर्ते उन्हें भेंट किये थे ,जिसकी वो जब तब तारीफ़ करते थे I मुझे और मकरंद को मौका मिला था उनके बारे में कहने का एक चौपाल ‘(मुंबई की प्रसिद्द साहित्यिक संस्था ) में !गोविन्द जी और स्वयं दुबे जी बहुत संतुष्ट दिखे ,हम दोनों ने ही बिना लाग लपेट कर उन्हें/उनके व्यक्तित्व को प्रस्तुत करने की कोशिश की थी .. हाल ही में भारतीय विद्या भवन अँधेरी ने दुबे जी ,पेंटर रजा,मन्ना डे आदि को १ लाख के पुरूस्कार से नवाज़ा ,शो की सूत्रधार मैं ही थी …मैंने दुबे जी को इतना ख़ुशकभी नहीं देखा ,शायद नए नाटक के production की कल्पना में डूबे हों …..और फिर २५ दिसम्बर2011 ,धर्मवीर भारती जी के जन्मदिन पर ही उनका भी समाचार मिलना ,उसी ठसके के साथ की मैं तो एसा ही हूँ …….अखबारों में उनपर लेख पढ़ एक शेर जो मैंने उन्हें सुनाया था फिर याद आया …..मैं जानता था एक दिन यह गुल खिलाया जाएगा ,पत्थर कहके मुझे देवता बनाया जाएगा ‘( गणेश बिहारी तर्ज़ लखनवी )बहुत सी यादें  बरबस आ रहीं हैं एक साथ ..एक युग अपने अंत पर शायद ….यह साल तू जा… और ना आना लौट कर…

 
      

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7 comments

  1. ishwar se yah mangti hun ki sal sachmuch tu ja [chali gai] aur ab na aana loutakar phir se apni khuni syahi lekar bastar me.

  2. सिमटते वर्षांत पर अच्छी तरह समेटी हैं अपनी यादें ,नेहा शरद ने ,उन्हें और आपको आने वाले वर्ष की शुभकामनाएं ,प्रभात जी !

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