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क्या यह नामवर जी का अपमान नहीं?

गौरव-सोलंकी-ज्ञानपीठ प्रकरण ने यह साबित कर दिया है कि हिंदी में पुरस्कार देने वाली संस्थाएं निर्णायक मंडल को कितना महत्व देती हैं. जिस निर्णायक मंडल ने गौरव सोलंकी को पुरस्कार दिया था, उसके कहानी संग्रह को छापने की संस्तुति दी थी उसके अध्यक्ष थे मूर्धन्य आलोचक नामवर सिंह, सदस्यों में अखिलेश जैसा प्रसिद्ध लेखक-संपादक, जीतेंद्र श्रीवास्तव जैसे कवि-आलोचक थे, लेकिन हुआ क्या? फिलहाल युवा कवि त्रिपुरारि कुमार शर्मा का यह लेख पढते हैं- जानकी पुल.
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बात बिल्कुल सीधी और साफ़ है। दोहराने की आवश्यकता नहीं कि गौरव सोलंकी की कहानी ग्यारहवीं ए के लड़के जो पहले नया ज्ञानोदय में प्रकाशित हो जाती है, बाद में उसी कहानी को अश्लील कह कर पुस्तक में सम्मिलित न करने या पुस्तक को प्रकाशित न करने की बात कही जाती है। आका एण्ड कम्पनी की यह बात किसी भी लोभ-विहीन लेखक/व्यक्ति की समझ से परे हो सकती है। मुझे हैरानी तो इस बात से होती है कि जो कहानी नया ज्ञानोदय में प्रकाशन के समय अश्लील नहीं थी, जो कहानी ज्यूरी मेम्बर की नज़र में अश्लील नहीं थी, (क्योंकि अगर ज्यूरी मेम्बर की नज़र में वह कहानी अश्लील होती, तो पुस्तक के प्रकाशन की बात ही नहीं उठती।) वह अचानक से अश्लील कैसे हो गई?
दूसरी बात, पुस्तक के प्रकाशित न होने में—क्या ज्यूरी का अपमान भी सम्मिलित नहीं है? ज्यूरी, जिसमें जितेंद्र श्रीवास्तव जैसे चर्चित युवा कवि-आलोचक (यहाँ मैं यह भी बता दूँ कि जितेंद्र एक मात्र ऐसे युवा रचनाकार हैं, जिन्हें कविता का प्रतिष्ठित भारत भूषण अग्रवाल सम्मान एवं आलोचना का देवी शंकर अवस्थी सम्मान सहित कई और भी पुरस्कार मिले हैं—जो अपने आप में एक मिसाल है), अखिलेश जैसे बेजोड़ कथाकार-सम्पादक और मीराकांत जैसी मशहूर रचनाकार के नाम थे। उसपर से आँख चुंधियाने वाली बात यह कि इस ज्यूरी के अध्यक्ष वर्तमान हिंदी साहित्य के शिखर आलोचक नामवर सिंह जी थे। वैसे मुझे लगता है कि नामवरजी मान-अपमान से परे जा चुके हैं. क्या यह नामवर जी का अपमान नहीं?  मैं मानता हूँ कि किसी एक लेखक को अपमानित करना, सभी लेखकों को अपमानित करने जैसा है। 
यहाँ मैं यह बात भी साफ़ कर देना चाहता हूँ कि किसी भी व्यक्ति के व्यतिगत निर्णय और जीवन से मुझे कोई लेना-देना नहीं हैमगर बात जब एक लेखक की प्रतिष्ठा से जुड़ी हो, तो ऐसे में चुप बैठना क्या बेशर्मी की हद को पार करने जैसा नहीं है? क्या कोई संस्था इतनी बड़ी हो गई है/हो जानी चाहिए कि वह जब चाहे लेखकों का अपमान करे? लेखक, चाहे गौरव सोलंकी हो या ज्यूरी के मेम्बर या फिर अध्यक्ष ही क्यों न हो? यह तो अच्छा हुआ कि गौरव ने इतना साहस भरा कदम उठाया। मेरा डर इस मुकाम पर आ पहुंचा है कि अगर लेखक समाज (सम्भव है किसी निज़ी लोभ के कारण) इस समय भी चुप रहा, तो आगे की नस्ल उसे माफ़ नहीं करेगी! इन दिनों हम देख सकते हैं कि न सिर्फ़ दिल्ली दरबार’,बल्कि अन्य साहित्यिक कुनबे में इस प्रसंग को लेकर भी हलचल हो रही है। मैं मीडिया (ख़ासकर सोशल नेटवर्क) के विभिन्न माध्यमों पर भरोसा करता हूँ और परिणाम हमारे सामने है/होगा।              
कल के लेख के सम्बंध में कुछ साहित्य प्रेमियों ने स्पष्टीकरण माँगा है। एक मित्र ने तो तीसरे मोर्चे की बात भी कही है। लोगों का कहना है कि आप सीधे-सीधे यह क्यों नहीं कह देते कि आप किसके साथ हैं? मैं अपनी बात फिर से दोहराना चाहता हूँ—मैं सच के साथ हूँ—और सच हमेशा से एक ही रहा है, एक ही रहेगा। हाँ, सच के कई पहलू होते हैं/हो सकते हैं। मैं बता दूँ कि सच का कोई मोर्चा नहीं होता। सच सिर्फ़ होता है और इतना व्यापक होता है कि उसमें सारे अंतर्विरोध समाहित हो जाते हैं। सच तो यह है कि पुस्तक प्रकाशित करने से मना कर दिया गया। सच तो यह है गौरव सोलंकी ने पुरस्कार को ठुकराकर युवाओं के सामने एक मिसाल रखी है। सच तो यह है कि मैं गौरव के इस निर्णय का तहे-दिल से स्वागत करता हूँ। सच तो यह है कि इस ज्वरग्रस्त समय में एक युवा और ज़िंदा रचनाकार होने के नाते मैं गौरव सोलंकी के साथ हूँ। 
 
      

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10 comments

  1. उखाड़ दिए मुखौटे …….त्रिपुरारि भाई आपने . कोई जवाब / या सफाई आये तो साझा कीजियेगा , आपने सही प्रश्न उठाया है .

  2. https://www.jankipul.com/2012/05/blog-post_19.html

    इस मुद्दे पर यह लेख भी पढ़ने जैसा है…

  3. main aapke sath khada hun aur main inme kisi ko wyaktigat roop se nahi janta hun sath isliye khada hun aapne un logo ke sach ko ujagar karne ka praysa kiya hai jo ek hi waqt me do chehre rakhte hain , aapne durust farmaya ki kahani aap chhap dete ho aur pusatk me sammilt karne se mana kar dete ho ye kahkar ki wo ashlil hai. sawal ye hi wo char log jo ye baat kah rahe hain kya wo tay karenge ki ashlilta kya hai agar ye sab ashlilta hai to sabse pahle aap jakar khajuraho ki mandiren tudwaao , vatsyan ka kamsutra jalwao magar hum unhe sanjo kar ek dharohar ki tarah kyun rakhe hain. sahmat hun sath sahitya me aise logo ke khilaf likhna bhi ek sahas aur gaurav solanaki ka thukrana bhi kisi bahut bade sahas kam nahi.

  4. अरुण जी… जब तक ज्यूरी के कोई सदस्य इस मुद्दे पर कुछ स्पष्टीकरण नहीं देते, इस बात से पर्दा कौन उठाएगा कि सारा सच क्या है? मैंने ज्यूरी के सदस्यों से बात करने की कोशिश की, किसी कारणवश बात नहीं हो सकी… आगे-आगे देखिए होता है क्या?

  5. बेशक यह ज्यूरी और ज्यूरी अध्यक्ष की अवमानना और अपमान है ! संभव है कहानी को प्रकाशित करने से किया गया इंकार ज्यूरी और ज्यूरी अध्यक्ष को अपमानित करने के लिए ही किया गया हो ! यह संदेह बना रहेगा जब तक इंकार का सही स्पष्टीकरण नहीं दिया जाता !

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