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सावन धान रोपने के मौसम को कहते हैं


आज युवा कवि मिथिलेश कुमार राय की कविताएँ. कुछ खिच्चे अनुभव, कुछ दृश्य, कुछ सच्चाइयां मिथिलेश की कविताओं का वितान रचते हैं. उनका बयान बहुत अलग है, बहुत सच्चा. मसलन सावन से उनको याद आता है कि यह धान रोपने का मौसम है. पढते हैं उनकी आठ कविताएँ- जानकी पुल.
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1
सावन धान रोपने के मौसम को कहते हैं
कितनी प्यारी हवा चल रही है
मुझे बस छोड देना चाहिए
अपनी दोनों बांहें फैलाकर
सड़क पर उतर कर पैदल चलना चाहिए
मुझे अपने बालों को उडने देना चाहिए 
हम अपनी सांसों में हवा नहीं खींचते
इस शहर में धुआं बहता है 
फिर इतनी प्यारी हवा
जिसने सबके अंतर खोल दिये हैं
सबको प्रफुल्लित कर दिया है
कहां से आ रही है
मुझे एक पल ठहर कर
हवा आने की दिशा जानना चाहिए
हां, हवा उत्तर दिशा की ओर से आ रही है
और यह महीना भी तो सावन का है
सावन धान रोपने के मौसम को कहते हैं
जरूर हवा मेरे गांव से आ रही है
गांव में बारिश हो रही होगी
किसने बताया था मुझे 
बारिश नहीं होने से
किसान सूख रहे हैं
पता है मुझे
जरूर रात में गांव की लडकियां
रंभा बनी होंगी
और इंद्र देव की स्तुति में
खेतों में नाचती हुई गाया होगा 
मनुष्य भले नहीं पसीजे
देवता अब भी पसीज जाते हैं
२.
हमारा बर्दाश्त खत्म हो गया है
हमारा बर्दाश्त करने का अंतराल
सिकुडकर खत्म हो गया है
हम फूलों की ओर हाथ बढाते हैं
उंगलियों में कांटें चुभ जाते हैं तो
पौधे को जड़ से उखाड कर फेंकने के बारे में सोचने लगते हैं
हम चांद को देखकर मुसकुराते हैं
बदले में वह नहीं मुसकुराता है तो
उसे मर जाने का श्राप देने लगते हैं
अब हम दुनिया में
सब कुछ अपने चाहे अनुसार देखना चाहते हैं
नहीं होता है तो
भस्म करने की तरकीब निकालने लगते हैं
अब सबसे सुंदर
हम अपनी ही तान चाहते हैं
सबसे मधुर मुसकान अपनी ही चाहते हैं
हम चाहते हैं कि हमें दुनिया देखे
हम चले तो पीछे पीछे दुनिया भी चले
और ऐसा नहीं होने पर
सब कुछ मिट्टी में मिल जाए
ऐसा चाहने लगते हैं हम
लेकिन अब हमें
कुछ भी सोचने को विराम दे देना चाहिए
बिलकुल चुप हो जाना चाहिए वृक्ष की तरह
अब हमें किसी बच्चे को हंसते हुए देखना चाहिए
और उसी की हंसी में हंसी मिलाकर
मुसकुराने की कोशिश करनी चाहिए
३.
वसंत की तरह रूठो और लौट आओ
रूठो मगर इस तरह नहीं
जैसे रूठता है बादल
किसानों के चेहरे पीले कर
हवा के संग कहीं और उड़ जाता है
रूठना है तो इस तरह रूठो
जैसे रूठता है वसंत
और जरा सी मनुहार पर
गुलदस्ते के साथ लौट भी आता है   
      
जाओ मगर इस तरह नहीं
जैसे जाता है समय
किसी भी प्रार्थना को अस्वीकार कर
फिर कभी नहीं लौट कर आने के लिये
इस तरह जाओ
जैसे जाती है नींद
फिर नये सपने के साथ लौट कर आ जाने के लिये
इस तरह जाओ मेरी जान
जैसे वसंत जाता है
४.
लड़की हंसने के मामले में कंजूस थी
लड़की हंसने के मामले में कंजूस थी
वह या तो कभी हंसती ही नहीं थी
या कभी हंसती थी तो
हंसने से पहले ही हंसना बंद कर देती थी
कभी हंसना बहुत ही जरूरी होने पर लड़की
पहले हथेली से अपने चेहरे को ढंक लेती थी
फिर हंसती थी
इस तरह लड़की की हंसी
उसके ओंठों पर नहीं
उसकी आंखों में खिलखिलाती थी
लड़का को यह बडा अच्छा लगता था
लड़की जब भी हथेली को अपने चेहरे के पास ले जाती
लड़का समझ जाता
कि अब वह हंसेगी
और यह सोच कर लड़का के चेहरे पर मुसकान तैर आती
उसे हंसते समय लड़की की आंखों की चमक
बडा अच्छा लगता था
और वह यह सोचने लगा था कि
कितना अच्छा हो अगर लडकी हरदम हंसती ही रहे
और उसकी आंखें
हमेशा खुशी से चमकती रहे
यह बात लडकी को भी पता था
कि लडका उसे देखकर मुसकुराने लगता है
और यह सोचकर कि
लडका उसे देखकर मुसकुराने लगता है
लडकी जब भी लडके को देखती
हथेली उसके चेहरे को ढंक लेती
और उसकी आंखें चमक उठती
लेकिन लडकी के हंसने से
और लडके के मुसकुराने से
बहुत सारे की हंसी रूक सी जाती थी
उन लोगों ने एक दिन
लडकी को पकड कर उसके ओंठों को सी दिया
अब लडकी चाह कर भी हंस नहीं सकती थी
इस तरह लडके का मुसकुराना भी अपने आप बंद हो
५.
ये लेखक के विचार हैं
ये लेखक के अपने विचार हैं
अखबार का इससे कोई संबंध नहीं है
अखबार का विचार जानने के लिये
आपको उसमें छपे इश्तेहार पढने होंगे
आपको पता ही कितना है
क्या आप जानते हैं कि
अखबार के एक प्रति का वास्तविक मूल्य
चौंतीस रुपये से भी अधिक होता है
जिसे हम आपको
मात्र तीन रुपये में उपलब्ध कराते हैं
कभी आपने सोचा है इस तथ्य पर
कि ऐसा कैसे संभव हो पाता है
कि आप फ्री के भाव में अखबार कैसे पढ पाते हैं
अगर जानते हैं तो
ऐसा कैसे सोच सकते हैं आप
कि अखबार भूखे नंगे और
कचरा बीनते बच्चे की तस्वीर छापे
और इस स्थिति के लिये उसे लताड़े
जिसे सुंदर-सुंदर लडकियों की मुसकान
और चमचमाती हुई गाडियां अच्छी लगती हैं
इसलिये इसे आप लेखक का विचार समझें
अखबार का विचार जानने के लिये
उसमें छपे इश्तार पढा करें
६. 
इस शहर के लड़के बहुत भूखे हैं
इस शहर के लडके बहुत भूखे हैं
भूख इनकी आंखों में दिखती है
इस शहर के लड़कों का बस चले तो ये
लडकियों को अपनी आंखों से ही खा जाये
इस शहर की लडकियों के बारे में
ठीक ठीक कुछ भी बता पाना मुश्किल है
इस शहर की लडकियां
हमेशा सिर झुका के चलती हैं
लडकियों की आंखों में क्या तैर रहा है
ये सिर्फ वही जानती हैं
इस शहर में ऐसा कोई रिवाज नहीं है
कि एक लडकी
किसी लडके से हाथ मिला सके
मुसकुरा सके
और मुसकुराते हुए कोई गीत गुनगुना सके
इस शहर में लडकियां
लडकियों के ही गले लग कर रो सकती हैं
७.
दूसरे के लिये
जी नहीं पीएम साहब मुझे नहीं जानते
टीवी में देखता हूं
अखबार में फोटो छपती है उनकी
इसलिये देखूंगा तो पहचान जाउंगा
यहीं रिश्ता मेरे और सीएम साहब के बीच का है
आवाज से भी मैं उन्हें पहचान सकता हूं
क्या है कि इस वातावरण में
इन्हीं की आवाज गूंजती रहती है आठों पहर
बाद बाकी कभी मिलना नहीं हुआ है उनसे
सामने जाउं तब भी उनके चेहरे का भाव नहीं बदलेगा
बचा कलेक्टर साहब तो सुनिये
एक बार उन्हें दूर से देखने का मौका मिला था
एक आदमी पास जाकर
कुछ आरजू मिन्नत करना चाहता था
पुलिस ने इतनी सेवा की उसकी
कि वहीं से नमस्कार कर दफा हो गया वहां से
लेकिन मैं नुक्कड के मोची को जानता हूं
जो आनेजाने वालों के पैर की ओर देखता रहता है
और चप्पल में दो टांके लगाकर
चाल सुधार देता है
उसके घर में एक क्वांरी बेटी है
एक बच्चा है
जो जन्म से ही घिसट घिसट कर चलता है
अब चप्पल टूटते हैं तो
नई चप्पल ही खरीद लेते हैं लोग
मोची भाई हल्दी का रंग और
नए पांव की जुगाड में
दिनभर आने जाने वालों के पैर टटोलता रहता है
मैं नाके पर इस्त्री करने वाली बुढिया को जानता हूं
जिसके पति का जीवन वर्षों पहले
देशी शराब के जहर की भेंट चढ चुका है
और जिसके जवान बेटे
अपनी पत्नी के साथ परदेश में
इतना खुश है कि कभी किसी की याद भी नहीं आती
इसके अलावे मेरी पहचान एक चायवाले
और एक परचूनवाले से है
परचूनवाला गांव से शहर आये लडके को
उधार का राशन देता है
और हरेक से पूछता है कि क्या करते हो
कैसी चल रही है जिंदगी
बहुत दिक्कत हो तो बताना
हिचकना मत
मेरी भी जड गांव में ही है
और चायवाले के यहां जमा होते हैं
ईंट ढोनेवाले
 
      

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16 comments

  1. श्रेष्ठ अभिव्यक्ति…..बधाई

  2. मिथिलेश की कवितायेँ बहुत पसंद आई ……. जानकीपुल का आभार |

  3. कोई मुझसे अगर पूछे कि कविता क्या होती है तो मैं यह पोस्ट पढ़वाना चाहूँगा… बधाई मिथिलेश! इतनी बेहतरीन कविताओं के लिए…

  4. पांचवी, सातवीं और आठवीं कविता से संभावनाओं की खबर मिल रही है।
    बधाई।

  5. मिथिलेश जी की ये कविताएं उनके प्रति आश्‍वस्‍त करती हैं। शुभकामनाएं।

  6. कितनी प्यारी हवा चल रही है
    मुझे बस छोड़ देना चाहिये
    अपनी दोनों बाहें फैलाकर
    सड़कपर उतर कर पैदल चलना चाहिये
    मुझे अपने बालों को उडने देना चाहिये esesey kubsurat panktiyaan kya honge bhala ek kavita ke bhetar

  7. और भी
    लड़का को यह बड़ा अच्छा लगता
    लड़का के चेहरे पर मुस्कान तैर आती
    लड़की की आँखों की चमक बड़ा अच्छा लगता था

  8. सार्थक प्रभावी
    किन्तु कुछ खटकता भी है जैसे –
    बात का पता शहर की पुलिस को लगी
    अखबार के एक प्रति का वास्तविक मूल्य
    इस शहर में धुंआ बहते हैं
    मुझे बस छोड़ देना चाहिए

  9. अह! अच्छी ताज़ा कवितायें हैं.. बड़ी आत्मीयता से अपनी बात कह पाते हैं मिथिलेश.. एकदम स्थिरता से.. मिथिलेश का जनवाद उनकी अपनी जमीन से जुड़ा है जहाँ फुटकल स्मृति चिन्हों को खूबसुरती से अपने व्यापी अनुभवों से उन्होंने जोड़ लिया है.. शुभकामनाएं मिथिलेश ..शुक्रिया जानकीपुल ..

  10. अह! अच्छी ताज़ा कवितायें हैं.. बड़ी आत्मीयता से अपनी बात कह पाते हैं मिथिलेश.. एकदम स्थिरता से.. मिथिलेश का जनवाद उनकी अपनी जमीन से जुड़ा है जहाँ फुटकल स्मृति चिन्हों को खूबसुरती से अपने व्यापी अनुभवों से उन्होंने जोड़ लिया है.. शुभकामनाएं मिथिलेश ..शुक्रिया जानकीपुल ..

  11. भयावह दृश्यों से कट कर अच्छा-अच्छा देखती,अच्छा-अच्छा बोलती और सबको अच्छ-अच्छा करने का संदेश देती कवितायें !

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