Home / ब्लॉग / वे पेन किलर भी थे और स्लिपिंग पिल्स भी

वे पेन किलर भी थे और स्लिपिंग पिल्स भी

राजेश खन्ना को  ‘प्रभात खबर’ के पत्रकार पुष्य मित्र  की यह श्रद्धांजलि पसंद आई तो आपसे साझा कर रहा हूं- जानकी पुल. 
======================================================================
एबीपी न्यूज पर फिल्म सफर का गाना बज रहा है.. हिंदी सिनेमा के पहले सुपर स्टार राजेश खन्ना की अंतिम यात्र चल रही है और ..जिंदगी का सफर, है ये कैसा सफर.. गाने की खून जमा देने वाली धुन को सुनते हुए मैं यह आलेख लिख रहा हूं. आज सुबह उनकी फिल्म रोटी देखी है जो जी सिनेमा पर दिखायी जा रही थी और कल रात अराधना के कुछ टुकड़े सैट मैक्स पर देखने का मौका मिला. 

कल दोपहर गिरीन्द्र ने फेसबुक पर लिखा था- पुष्पा..आई हेट टीयर्स. उनकी एक बड़ी मशहूर फिल्म अमर प्रेम का डायलॉग. फिर विनीत का आलेख पढ़ा कि कैसे उनकी दीदियां अपने पतियों में राजेश खन्ना का अक्स देखना चाहती थीं. मैंने भी अपने ब्लॉग पर लिखा था कि मेरी मां के वे सबसे चहेते अदाकार हैं. उन्हें दाग और अराधना जैसी उनकी फिल्में काफी पसंद हैं.


वह सातवां दशक था, जब बालीवुड के प्रोडय़ूसरों ने टैलेंट हंट के जरिये एक ऐसे हीरो को तलाशा था जो पुष्पा, गीता, सुनीता, कामना, रीना और अनीता को कह सके .. आई हेट टीयर्स और उन्हें देख कर गा सके .. मेरे सपनों की रानी कब आयेगी तू. और उनके इस उम्मीद पर जतिन खन्ना नामक यह अदाकार सौ फीसदी खरा उतरा. हालांकि वे देवानंद के विकल्प के रूप में लाये गये थे, मगर रोमांस के साथ-साथ एक संदिग्ध छवि को जीने वाले देवानंद के बरक्श राजेश खन्ना सीधे-सादे युवक नजर आते थे जो मरदों की दुनिया में एक ऐसा चेहरा थे जो औरतों के जख्मों पर अच्छी तरह हाथ रखना जा चुके थे. वे पेन किलर भी थे और स्लिपिंग पिल्स भी. 


इस बात को समझने के लिए हमें वापस उस दौर में लौटना पड़ेगा. जब लोग-बाग दस लोगों के सामने अपनी घरवालियों से बतियाने में भी ङिाझकते थे और ऐसा करने वालों को हमारी तरफ बलगोभना कह कर पुकारा जाता था. जिसका सीधा-सपाट मतलब नामर्द होता था. औरतें मर्द के गुस्से भरे डायलॉग के बीच प्यार तलाशती थी और उस जमाने में राजेश खन्ना ने जब यह कहना शुरू किया .. कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना तो जैसे माहौल ही बदलने लगा. राजेश खन्ना को देख कर मरदों ने भी आई हेट टीयर्स कहना शुरू कर दिया. पारिवारिक और सामाजिक माहौल की घुटन में जीने वाली औरतों के लिए जाहिर सी बात है वे एक देवदूत सरीखे थे.


दर्जन भर सुपर हिट फिल्मों के बीच राजेश खन्ना ने उस दौर में आनंद, दुश्मन और रोटी जैसी फिल्मों के जरिये अपनी छवि में थोड़ा बदलाव करने की कोशिश की. अब वे सिर्फ पुष्पा ही नहीं मनोज, राकेश और अरविंद जैसे युवाओं के भी दिल के करीब होते चले गये थे. अब वे एक ऐसे दुश्मन थे जो दोस्तों से भी प्यारे थे. अब वे बाबू मोशाय.. कहते थे और आंसू भरी पलकों के बीच तालियां गूंजती. 


उन्होंने अपने दौर की युवा पीढ़ी को नशे में जीना सिखाया. उनकी फिल्मों को देख कर लोग हॉल से निकलते और हफ्तों उनके संवाद दुहराते.. अगर जन्म दे तो रोटी का इंतजाम करता जाये..


वे हिंदी सिनेमा के पहले सुपर स्टार थे. उनके फैन्स का हुजूम दिन रात उनके स्टूडियो, उनके बंगले और उनके मन को घेरे रहता. इस घेरेबंदी के चारो ओर निर्माता और निर्देशक डेट्स के लिए चक्कर लगाते रहते और राजेश खन्ना तारीफ के भंग में डूबे रहते. 


मेरे एक वरिष्ठ सहयोगी चंचल जी जो राजेश खन्ना और जार्ज फर्नांडीज अलग-अलग समय में दोनों के राजनीतिक सलाहकार हुआ करते थे ने एक किस्सा सुनाया था. एक दफा एक पारिवारिक समारोह में दोनों उनके घर पहुंचे थे. भरी महफिल में राजेश खन्ना के सामने जार्ज ने उनसे पूछ डाला, भाई! ये जनाब कौन हैं. लगता है इन्हें पहले कहीं देखा है. जार्ज की इस बात पर राजेश खन्ना इतने नाराज हुए कि उस समारोह से उठ कर चले गये. वे इस बात पर नाराज थे कि भला हिंदुस्तान में कोई इनसान ऐसा कैसे हो सकता है जो राजेश खन्ना को नहीं पहचानता हो. 


उसी दौर में एक लंबा और बेढ़ंगा नौजवान आया.. जिसने कहा.. मैं आज भी फेके हुए पैसे नहीं उठाता.. और तमाशाइयों का हुजूम उसकी तरफ बढ़ गया. 


राजेश खन्ना फिर बार-बार पुष्पा और बाबू मोशाय पुकारते रहे मगर लोगों को वर्कशाप को अंदर से बंद कर दस गुंडों से अकेले निपटने वाले नये नायक की अदा भा गयी थी. उसी नायक ने कभी कहा था कि आनंद नहीं मरा.. आनंद मरा नहीं करते. मगर आनंद का जादू टूट चुका था. 


जिंदगी के दो पल को हंसते-मुस्कुराते गुजारने का हुनर सिखाने वाला आनंद खुद चार दशक लंबी जिंदगी इस उम्मीद में जीता रहा कि एक बार फिर उसकी महफिल गुलजार होगी. वह पुष्पा बोलेगा और आंचल से आंखें पोछती पुष्पाएं मुस्कुरा उठेगी और तालियों की वह गूंज जिसने उसका साथ छोड़ दिया एक बार फिर उसके कानों में गूंजेंगी. हमने उनका आखिरी संवाद एक विज्ञापन में सुना.. बाबू मोशाय.. मेरे फैन मुझसे कोई नहीं छीन सकता. सुनकर राजेश खन्ना के लिए दुख होता. 


कल से टीवी चैनलों से लेकर फेसबुक की दीवार पर पुष्पा और बाबू मोशाय गूंज रहे हैं. काश राजेश खन्ना एक दिन के लिए जिंदा होते और देख पाते कि फिर वही नम आंखें हैं और तारीफों का शोर है. भले एक ही दिन के लिए..मगर वह जमाना लौट आया है.

मगर, जमाना कभी लौटता नहीं. इनसान को खुद बदलना पड़ता है. सुपर स्टार को हिमगंगा तेल बेचना पड़ता है. रोटी का इंतजाम ऊपर वाला नहीं करता. नीचे बैठे लोगों को इसके लिए पसीना बहाना पड़ता है. 

https://mail.google.com/mail/images/cleardot.gif
 
      

About Prabhat Ranjan

Check Also

तन्हाई का अंधा शिगाफ़ : भाग-10 अंतिम

आप पढ़ रहे हैं तन्हाई का अंधा शिगाफ़। मीना कुमारी की ज़िंदगी, काम और हादसात …

7 comments

  1. shandar.

  2. रोटी का इंतजाम ऊपर वाला नहीं करता. नीचे बैठे लोगों को इसके लिए पसीना बहाना पड़ता है.

  3. बढ़िया।

  1. Pingback: 티비위키

  2. Pingback: Fysio Dinxperlo

  3. Pingback: health tests

  4. Pingback: Situs Togel Terpercaya

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *