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मैं चिर प्रेमी शैलेन्द्र और मेरी प्रेयसि हिंदी जनता

कुछ समय पहले गीतकार शैलेन्द्र की कविताओं का संचयन प्रकाशित हुआ ‘अन्दर की आग’. शंकर शैलेन्द्र के नाम से प्रतिबद्ध कविता लिखने वाले इस कवि को ख्याति मिली गीतकार शैलेन्द्र के रूप में. इन कविताओं के माध्यम से एक और शैलेन्द्र से परिचय होता है. इस पुस्तक के सम्पादन और पहली बार शैलेन्द्र की कविताओं को हम पाठकों तक पहुंचाने का काम किया है रमा भारती ने. उसी संग्रह से कुछ कविताएँ- जानकी पुल.
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1.
पूछ रहे हो क्या अभाव है
पूछ रहे हो क्या अभाव है
तन है केवल प्राण कहाँ है?
डूबा-डूबा सा अंतर है
यह बिखरी-सी भाव लहर है,
अस्फुट मेरे स्वर हैं लेकिन
मेरे जीवन के गान कहाँ हैं?
मेरी अभिलाषाएं अनगिन
पूरी होंगी? यही है कठिन
जो खुद ही पूरी हो जाएँ
ऐसे ये अरमान कहाँ हैं?
लाख परायों से परिचित है
मेल-मोहब्बत का अभिनय है,
जिनके बिन जग सूना सूना
मन के वे मेहमान कहाँ हैं?
2.
कल हमारा है

गम की बदली में चमकता एक सितारा है
आज अपना हो न हो पर कल हमारा है
धमकी गैरों का नहीं अपना सहारा है
आज अपना हो न हो पर कल हमारा है
गर्दिशों से से हारकर ओ बैठने वाले
तुझको खबर क्या अपने पैरों में भी छाले हैं
पर नहीं रुकते कि मंजिल ने पुकारा है
आज अपना हो न हो…..
ये कदम ऐसे जो सागर पाट देते हैं
ये वो धाराएँ हैं जो पर्वत काट देते हैं
स्वर्ग उन हाथों ने धरती पर उतारा है
आज अपना हो न हो….
सच है डूबा सा है दिल जब तक अँधेरा है
इस रात के उस पार लेकिन फिर सवेरा है
हर समंदर का कहीं पर तो किनारा है
आज अपना हो न हो….
3.
नादान प्रेमिका से

तुझको अपनी नादानी पर
जीवन भर पछताना होगा
मैं तो मन को समझा लूँगा
यह सोच कि पूजा था पत्थर-
पर तुम अपने रूठे मन को
बोलो तो, क्या दोगी उत्तर
नत शिर चुप रह जाना होगा
जीवन भर पछताना होगा!
मुझको जीवन के शत संघर्षों में
रत रहकर लड़ना है;
तुमको भविष्य की क्या चिंता,
केवल अतीत ही पढना है!
बीता दुःख दोहराना होगा!
जीवन भर पछताना होगा!
4.
आओ साथ हमारे

आओ साथ हमारे, आओ, आओ साथ हमारे
हैं ये गीत तुम्हारे, आओ, आओ साथ हमारे
आओ, आओ साथ हमारे
ऐ अंधी गलियों में बसने वालों
हर पल जीवन की चक्की में पिसने वालो
आओ, आओ साथ हमारे
डर किसका अब गोली अपना रुख बदलेगी
दुश्मन को पहचान चुकी है बदला लेगी
राह ने देखो, टूट पड़ो, तूफ़ान बन जाओ
आओ, आओ साथ हमारे  

 
      

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2 comments

  1. शुक्रिया प्रभात रंजन जी ! मुझ तक ये ख़बर बहुत देर से आई लेकिन इस संकलन को सम्पादित करने में मुझे बहुत ही प्रसन्नता हुई……….रमा भारती

  2. तन है केवल प्राण कहाँ है? …वाह! 🙂

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