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अनु सिंह चौधरी की कहानी ‘मर्ज जिंदगी इलाज जिंदगी’

आज एक छोटी सी कहानी अनु सिंह चौधरी की. स्त्री मन के उलझन, उहापोहों को लेकर एक रोचक कहानी- जानकी पुल.
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मर्ज़ ज़िन्दगी, इलाज ज़िन्दगी
शिवानी को अपनी ही गायनोकॉलोजिस्ट से बातें करने में डर लगता है कभी-कभी। उस दिन भी लग रहा था। लेडी डॉक्टर नहीं हैं डॉ शेरगिल। मन की डॉक्टर हैं। पीरिड्स, प्रेग्नेन्सी, फाइब्रॉयड्स और पीएमएस तक तो ठीक है उनसे बात करना, लेकिन मर्ज़ लेडी डॉक्टर के दायरे से बाहर निकलकर एक औरत की परिधि में समा जाता है तो लाइलाज हो जाता है। किसी डॉक्टर की निगाहें ऐसे आर-पार भी देख पाती होंगी, ऐसा डॉक्टर शेरगिल की कोमल, तरल आंखों को देखकर लगता है। शिवानी के लिए उनके सामने झूठ छुपाना मुश्किल, सच बताना दूभर। वो डॉक्टर ठहरीं। पहले मर्ज़ के लक्षण पूछेंगी, फिर नब्ज़ टटोलेंगी, दिल का हाल बिना स्टेथोस्कोप के समझ जाएंगी और रगों में दौड़ते लहू के प्रेशरका अंदाज़ा शिवानीके चेहरे की रंगत देखकर पता कर लेंगी। उसके बेलौस, बेबाक सवाल शिवानी को वैसे ही परेशान करते हैं, जैसे अपने बेतुके ख़्याल करते हैं। फिर भी डॉ शेरगिल के सामने शरीर के दुःख-दर्द के साथ मन की तहें खोलना भी अकसर ज़रूरी लगता है शिवानी को। उस दिन भी ऐसा ही हुआ था। बीमारी दिखाने कुछ और आई थी शिवानी, ज़ख़्म कहीं और का कुरेद रही थी। 


क्या हुआ है तुझे, कोई मन का रोग है?” गुस्से में होती हैं तो डॉ शेरगिल की पंजाबियत उनके लहज़े में उतर आती है। फिर वो डॉक्टर कम, औरत ज़्यादा होती हैं। 


मन के ही रोग तो होते हैं सारे। आप तो डॉक्टर हैं, साइकोसोमैटिकडिसॉडर के बारे में आपसे बेहतर कौन जानेगा?” 


सायकियाट्रिस्ट जानेगा और वहीं जाकर बैठ तू,इसलिए क्योंकि तेरा दिमाग खराब हो गया है और ये बात मैं कई सालों से कह रही हूं।”


दिमाग खराब नहीं, दुरुस्त हुआ है अब तो। पहले बेसबब गुज़र जाया करते थे दिन, अब उन्हें थामकर रखना चाहती हूं। अब होश में आई हूं कि ज़िन्दगी गुज़रती जा रही है और सपनों की टोकरी में से जादूगर ने खरगोश तो निकाले ही नहीं, रंग-बिरंगे प्लास्टिक के फूलों का गुलदस्ता हाथ में थामा नहीं, सिर पर लटकती छतरी ने रंग बदले नहीं। तो फिर ये कैसी माया थी? कैसा जादू था? मेरा काम सिर्फ दो बच्चे पैदा करना था?” 


नहीं। उन दो बच्चों की अच्छी परवरिश करना भी था। किसने सिखाया था कि ख़्वाबों में जादुई दुनिया बुनते रहो, और ऐसे गुम रहो उसमें कि पैंतीस की उम्र में भी होश न हो?” 


जाने किसने। बचपन से ही ऐसी हूं। बुढ़ापे में अब क्या बदलूंगी?


हम हर रोज़ बदलते हैं, जादू की दुनिया बुनते हुए भी। हम सबको रंगों के बाज़ार से प्यार होता है। देख तो सही, आस-पास सब जादू ही तो है। हक़ीकत भी जादू है। हर रोज़ जो मैं कई सारे बच्चों को इस दुनिया में लाने का काम करती हूं न, वो भी तो जादू है।”


हां, वो तो सबसे ख़ूबसूरत सच है। सब समझती हूं, लेकिन मन बहलता क्यों नहीं?” 


मन से पूछ न।चलउम्र के पहिए को उलटा घुमाते हैं। दस साल, या पंद्रह साल पीछे गए तो क्या-क्या बदलेगी तू?” 


कुछ भी नहीं। सब वैसा का वैसा ही चाहिए। मैंने ये कब कहा कि मुझे कोई शिकायत है ज़िन्दगी से?” 


शिकायत न सही, मोहब्बत ही सही। लेकिन देख न, हर हाल में तो हम जी ही लिया करते हैं, वक्त कट ही जाता है, साल निकल ही जाते हैं।”


वही तो। दिन, महीने, साल तो निकल ही जाया करते हैं। मंथर चाल चलते इन लम्हों का बोझ नहीं ढोया जाता।”


लम्हे नहीं कटते?” 


हां।”


लम्हे ही भारी पड़ते हैं?” 


शायद।”


फिर तो तुझे कोई परेशानी नहीं। तू मरीज़ है ही नहीं। धीरे-धीरे खिसकते लम्हों में जीना कितना आसान होता होगा तेरे लिए। मुझे तो वक्त के तेज़ी से भागने का डर लगा रहता है। एक दिन सारे बालों के सफ़ेद हो जाने से डर लगता है।”


अच्छा? डॉक्टर को भी डर लगता है?” 


क्यों नहीं लग सकता?” 


नहीं, मुझे लगता था डॉक्टर बड़े ज़हीन होते हैं, बड़े समझदार। उन्हें दर्द की समझ होती है, इलाज का शऊर होता है।”


डॉक्टरों को अपना इलाज करना नहीं आता। वैसे तुझ जैसे मरीजों के मर्ज़ की भी कोई दवा नहीं उनके पास।”


फिर? मैं और आप एक ही नाव पर? हम ऐसे ही मर जाएंगे एक दिन, किसी भलामानस चारागर के इंतज़ार में?” 


, हम ऐसे ही जिए जाएंगे एक-एक दिन। ऐसे ही जादू भरे ख़्वाब देखते हुए। किसी को चारागरी नहीं आती, यहां कोई मसीहा नहीं बैठा। डॉक्टर हूं, इसलिए दावे के साथ ये बात कह सकती हूं।”


ऐसा न कहिए डॉक्टर। दिल डूबा जाता है।आप तो डॉक्टर हैं मेरी, मेरे बच्चों को लेकर आई हैं इस दुनिया में। मेरे शरीर को जाने कहां-कहां से नहीं देखा आपने। आपसे बेहतर कौन जानता होगा मुझे। मेरे मर्ज़ का कोई तो इलाज होगा…”


है। जो थोड़ी-सी ज़िन्दगी बची है, उसे जीने का इंतज़ाम करो। आउट ऑफ द बॉक्स करो कुछ, कुछ वाइल्डकुछ ऐसा कि मरते वक्त अफ़सोस न बचे कोई।”


मैं भाग जाना चाहती हूं। किसी ऐसी ट्रेन में बैठकर जिसकी मंज़िल का पता न हो, जिसके स्टेशन्स पर लगे पतों की भाषा मुझे पढ़नी न आए, जहां कोई मुझे जानता न हो, जहां मेरी कोई ज़रूरत न हो…”


बैड आईडिया।कुछ और सोच। तेरे बच्चों को तेरी ज़रूरत है अभी।”


फ्लिंग। लेट्स हैव अ फ्लिंग।”


इवेनवर्स। कुल्हाड़ी पर जाकर पैर मारने की बात न कर। कुछ और सोच।”


नहीं सूझता। कुछ नहीं सूझता।”


यूआर अ क्रिएटिव पर्सन। लुक फॉर ए क्रिएटिव सोल्यूशन।”


माने?” 


माने अपने लिए तिलस्म रच। माया की एक दुनिया। ऑल्टरइगो तलाश कर। अपने नेमेसिस ढूंढ के ला। किरदारों में उन्हें रख और आउट ऑफ द बॉक्स एक ऐसी दुनिया रच जहां तू नहीं, लेकिन वो तेरी अपनी है। उस दुनिया में अपने प्यार के लिए अपनी शर्तें चुन। अपने दुखों पर छाती पीटने के अपने तरीकों का इजाद कर। अपने आंसुओं को जगह दे, लोट-पोट कर हंस और ऐसे जी कि जैसे कभी ना जिया हो कहीं। लुक एटवॉट पावर यू हैव गॉट ऐज़ ऐन आर्टिस्ट!


ये लो कर लो बात। कहां तो मैं जादू की दुनिया से निकलकर रियलवर्ल्ड में जीने की बात कर रही हूं, कहां तो आप मुझे अंधेरे कुंए में ढकेल रही हैं।”


अंधेरे में ही दिखेगी रोशनी। जहां हम और तुम बैठे हैं वहां सब धुंधला-धुंधला है, ना उजला ना स्याह, ना शाम ना सुबह। अंधेरे में जाने की हिम्मत कर। वहीं से ख़ज़ाना हाथ आएगा।”


ये क्या था? हमारे बीच ये कैसी बातचीत थी? हम कैसी डॉक्टर और मरीज़ हैं?” 


हम वैसी डॉक्टर और मरीज़ हैं जो ठीक वैसे ही जिए जाती हैं जैसे दुनिया-जहान की और औरतें जीती हैं।”

अच्छा? ऐसे ही जीती हैं सब? फिर तो बच जाऊंगी मैं भी, मरूंगी नहीं।


तू भी बच जाएगी और मैं भी, और शायद वो औरत भी जिसके ट्रिप्लेट्स की डिलीवरी करानी है अगले पंद्रह मिनट में” ये कहते हुए लेडी डॉक्टर गगन शेरगिल ने अपना सफेद चोगा पहना, गले में स्टेथोस्कोप लटकाया और मुस्कुराते हुए अपने चेंबर से निकल गईं। शिवानी अपनी साड़ी के चुन्नट ठीक करते हुए सोचती रही कि ज़िन्दगी नाम की लाइलाज बीमारी का इलाज भी ज़िन्दगी ही है शायद।

 
      

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6 comments

  1. "एक ऐसी दुनिया रच जहां तू नहीं, लेकिन वो तेरी अपनी है। उस दुनिया में अपने प्यार के लिए अपनी शर्तें चुन। अपने दुखों पर छाती पीटने के अपने तरीकों का इजाद कर। अपने आंसुओं को जगह दे, लोट-पोट कर हंस और ऐसे जी कि जैसे कभी ना जिया हो कहीं। लुक एटवॉट पावर यू हैव गॉट ऐज़ ऐन आर्टिस्ट!"

    What a novel thought…

    सच, अँधेरे में ही मिलेगी रौशनी…!

  2. Niektóre programy wykrywają informacje o nagraniu ekranu i nie mogą wykonać zrzutu ekranu telefonu komórkowego.W takim przypadku można użyć zdalnego monitorowania, aby wyświetlić zawartość ekranu innego telefonu komórkowego.

  3. Czy istnieje lepszy sposób na szybkie zlokalizowanie telefonu komórkowego bez wykrycia go przez niego?

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