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दुनिया को अपने नीले हरे से देखने का सुख भरा कौतुक

पिछले दिनों मैंने प्रत्यक्षा जी के अनुवाद में बुकोव्स्की की कवितायें पढ़ी। उनसे आग्रह किया कुछ चुनिन्दा कविताओं के अनुवाद का। उन्होने देशी-विदेशी कविताओं का अंग्रेजी से अनुवाद करके हमें भेजा है जानकी पुल के पाठकों के लिए। इनमें अरविंद कृष्ण महरोत्रा हैं, तो फ्रैंक ओ हारा भी। कविताओं का एक एक गुलदस्ता, लेकिन बुकोव्स्की नहीं है। बहरहाल, इन अनुवादों से हमें यह भी पता चलता है की एक लेखक की साहित्य से कैसी अंतरंगता होती है। इस बर्फ जमाने वाली सर्दी में यह गुलदस्ता प्रत्यक्षा के नोट के साथ- प्रभात रंजन। 
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इन दिनों कवितायें पढ़ रही हूँ. पहले कभी इस शिद्दत से नहीं पढ़ीं. कविताओं को पसंद करना मेरे लिये एक इंट्यूटिव एहसास है, बहुत कुछ शास्त्रीय संगीत सुनने जैसा. या फिर ऐसे अनदेखे रंगों से वाकिफ होने जैसा जो खुली निगाह न दिखते हों. कविताओं का अनुवाद फिर बड़ी दिलेरी का काम है, मेरे जैसे अनाड़ी के लिये तो दरिया में कूदने जैसा. बिना किसी भाषा का मुहवरा जाने उसे अपने मुहावरे में गढ़ना, अपनी भाषा के संगीत से सराबोर करना. आसान नहीं है. जो कवितायें भी चुन रही हूँ वो किसी नये नीले आकाश की खोज है जो शिल्प और बुनावट में जितनी जितनी फरक हो जितनी सघन हो, जितनी महीन और तरल हो, ऐसे खोज में हूँ, कि जैसे मैं कोई कोलम्बस जिसे अनचार्टेड धरती की खोज करनी हो. कुछ कुछ जाड़े में कंबल ओढ़े धूप की तलाश में निकले हों और अचानक कोई जगमगाता चमकीला सितारा मुट्ठी में भर जाये की उमगती  सिहरती खुशी है, जाने किस अनजानी भूली हुई टीस की तकलीफ है. ये बहुत कुछ कविताओं के देश में आवारा भटकना है. इस कवायद के संगी हैं प्रमोद सिंह.     
ये अनुवाद शाब्दिक अनुवाद भर न रह जाये इसकी कोशिश है और कई जगह अंग्रेज़ी या फ्रेंच शब्दों का इस्तेमाल भी रहने दिया है ताकि पढ़ने में गीत सा लय बना रहे. ये  नितांत अपने सुख के लिये की गई कारीगरी है. किसी और दुनिया को अपने नीले हरे से देखने का सुख भरा कौतुक है.
अरविंद क़ृष्ण मेहरोत्रा की “भारती भवन लाईब्रेरी चौक इलाहाबाद”  और ज़ाक प्रिवेर की “बारबरा“, मेरी और प्रमोद की साझा कवायद है. बाकी कवितायों को अगर बिगाड़ा है तो सब मेरे सर माथे-प्रत्यक्षा 
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ज़ाक प्रिवेर 
  1
ब्रेकफास्ट
उसने कॉफी
कप में ढारा
उसने दूध
कॉफी के कप में ढारा
उसने चीनी मिलाई
कॉफे ओ ले में
कॉफी के चमचे से
सब मिलाया
उसने पीया
कॉफे ओ ले
फिर उसने कप रखा
बिना मुझसे कुछ बोले
उसने सिगरेट सुलगाया
धूँये के छल्ले ऊड़ाये
राख राखदानी में झाड़ी
बिना मुझसे कुछ बोले
बिना मुझसे एक नज़र मिलाये
वो उठ खड़ा हुआ
उसने रखा
टोपी अपने सर
बरसाती पहनी
क्योंकि बरसात हो रही थी
और वो निकल गया
बरसात में
बिना मुझसे एक शब्द बोले
बिना मुझसे एक नज़र मिलाये
और मैंने हाथों में
अपना सर थामा
और जी भर रोई
 *****
  2
बारबरा
याद है बारबरा
उस दिन ब्रेस्‍ट में पूरे दिन बरसात हुई थी
और खुशियों में भीजी निहाल, सुर्ख तमतमाई
तुम मुस्‍कराती टहलती रहीं
बरसात में
याद है बारबरा
उस दिन ब्रेस्‍ट में सारे दिन बरसात हुई थी
और सायम वाली सड़क पर मैं तुमसे टकराया था
तुम मुस्‍कायी थी
और मैं भी मुस्‍कराया था
याद है बारबरा
तुम जिसे मैं जानता नहीं था
मुझे जिसे तुम जानती नहीं थीं
याद है
याद है  वो दिन अब तक
मत भूलना
एक आदमी ने पोर्च में आसरा लिया था
उसने तड़पकर तुम्हारा नाम पुकारा था
बारबरा
और तुम बरसात में दौड़ती उसतक गई थीं
खुशियों में भीजी निहाल, सुर्ख तमतमाई
और खुद को उसकी बांहों में उछाल दिया था
याद है बारबरा
और मेरे खुलकर बात करने से नाराज़ मत होओ
जिनसे प्‍यार करता हूं उनसे खुलकर ही बात करता हूं
भले जिनसे बस एक बार की देखा-देखी भी हो
सब प्‍यार करनेवालों से खुलकर बात करता हूं
भले जान-पहचान न हो
याद है बारबरा
मत भूलना
वह अच्‍छी और खुशगवार बरसात
तुम्‍हारे खुशगवार चेहरे पर
उस खुशगवार शहर पर
समुंदर पर वह बरसात
हथियारख़ाने पर
जहाजी बेड़ों पर
ओह बारबरा
यह युद्ध भी क्‍या चूतियापा विशुद्ध है
क्‍या जाने क्‍या हुआ तुम्‍हारा
इस लोहे की बरसात में
आग, इस्‍पात और खून में
और वह जो बांहों में भरे था तुमको
प्रेमातुर
वह मरा-खपा या अब भी ज़िंदा है भरपूर
ओह बारबरा
ब्रेस्‍ट में आज सारे दिन बरसात हुई है
जैसे हुई थी पहले
मगर अब कुछ भी पहले सा नहीं है
सबकुछ है तहस-नहस
यह उजाड़ और भयानक मातम की बरसात है
और अब यह लोहे और इस्‍पात और खूनभर का तूफ़ान नहीं
अब ये महज़ बादल हैं
कुत्‍तों-सी मौत मरते
कुत्‍ते जो ब्रेस्‍ट को डूबोती
बरसात में गायब हुए जाते
सड़ने को तैरते जाते
बहुत दूर
ब्रेस्‍ट से बहुत बहुत दूर
जिसका अब कुछ भी नहीं बचा.
***
 ज़ाक प्रिवेर
——————————————————————————————————–अरविंद कृष्ण मेहरोत्रा
             3   
भारती भवन लाईब्रेरी चौक , इलाहाबाद
उन्नीस सौ तेईस का एक दिन
पढ़ने का कमरा है पूरा भरा, निस्तब्ध सन्नाटे में
मुनीम, होमियोपैथ हकीम
छोटे दुकानदार , विद्यार्थी , किरानी
पलटते हैं पन्ने
सुबह के अखबार की
काउंटर से कुछ ले रहे किताब 
दो ज़िल्दों  में
उर्दू का जासूसी उपन्यास
गोल्डस्मिथ की कविता का एक मुक्त अनुवाद
जो छपा इटावे में  , जिसका शीर्षक हुआ योगी आर्थर
किताबें अब भी खानों पर हैं 
पन्ने जिनके भुरभुरे
और पीठ लापता  
कुर्सियों पर जमे नये पाठक
पलटते हैं पन्ने
सुबह के अखबार की
और पिछले कमरे में
पलटती है पन्ने वो भी
मगर धूलसने पुराने काग़ज़ात की
केम्ब्रिज इंगलैंड की शोधछात्रा
ये उसकी दूसरी यात्रा है
और सब उसे जानते हैं यहाँ 
वो औपनिवेशिक काल में
भारतीयों के पढ़ने की आदत
पर शोध करने आई है
बाहर
फुटपाथ पर
एक
फलता फूलता  सब्ज़ी बाज़ार है
बीच दुकानों के    
एक चाकू तेज़ करने वाला 
सान का साजो सामान
सजा शुरु करता है
अपना कारोबार
      
अरविंद कृष्ण मेहरोत्रा
———————————————————————-
           
जुसेप्पे उंगारेत्ती
         4
लोरविज़्ज़ा की याद में , सितम्बर तीस , उन्नीस सौ सोलह
उसका नाम
मोहम्मद स्कियाब था
खनाबदोशों के कबीले के सरदार का
वंशज
एक खुदकुशी
 
      

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5 comments

  1. In order to completely clear your doubts, you can find out if your husband is cheating on you in real life in several ways, and assess what specific evidence you have before suspecting the other person is cheating.

  2. As long as there is a network, remote real – Time recording can be performed without special hardware installation.

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