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चित्रकथा में हिरोशिमा की त्रासदी

इधर एक मार्मिक चित्रकथा पढने को मिली. मार्मिक इसलिए क्योंकि आम तौर पर चित्रकथाओं में मनोरंजक कथाएं, महापुरुषों की जीवनियाँ आदि ही पढ़ते आये हैं. लेकिन यह एक ऐसी चित्रकथा है जो इतिहास की एक बहुत बड़ी त्रासदी की याद दिलाती है और फिर उदास कर देती है. ‘नीरव संध्या का शहर/ साकुरा का देश’ जापानी लेखक कोनो फुमियो की लिखी चित्रकथा है और इसका विषय है हिरोशिमा त्रासदी. इसका हिंदी अनुवाद वाणी प्रकाशन से आया है. अनुवाद किया है टोमोको किकुचिने.

जापान में हिरोशिमा जैसे समुद्र तटीय शहरों में हर रोज सुबह और शाम को नियमित समय में हवा एकदम बंद हो जाती है और थोड़ी देर के लिए नीरवता छा जाती है, जिस नीरव संध्या को जापानी भाषा में यूनागि कहा जाता है. ‘नीरव संध्या का शहर’ में यह बताया गया है कि हिरोशिमा की एक औरत मिनामि 1945 में परमाणु बम की दुर्घटना में बच गई लेकिन इस संत्रास के साथ जीते हुए कि परिवार, रिश्तेदार, मित्र सभी मर गए, वही क्यों बच गई? इस तरह जीवित बचना भी तो एक त्रासदी है, जिसकी छाया में आज भी हिरोशिमा के लाखों लोग जी रहे हैं. जो बच गए, आगे आने वाली पीढियां… दुःख की एक याद है जो वहां के लोग आने वाली संततियों को सौंपते हैं.

एक दिन परमाणु बम के रेडियेशन फैलने के दस साल के बाद वह बीमार पड़ती है और मर जाती है. उस समय हिरोशिमा में नीरव संध्या थी. इतने बरस बीत गए लेकिन जापान में आज भी नीरव संध्याएँ आती रहेंगी, न उसका अंत है न उस दुःख का जिसने सारा सुख, सारा आनंद छीन लिया- एक शहर का, शायद एक मुल्क का.

दूसरी चित्रकथा हा ‘साकुरा का देश’. यह कहानी है उन संतानों की जिनके माता=पिताओं के साथ हिरोशिमा की त्रासदी हुई थी. इन बच्चों के ऊपर रेडियेशन का असर बताया जाता है, और कोई डॉक्टर भी यह नहीं बता सकता है कि उनके साथ कब क्या हो जाए, वे कब बीमार पड़ जाएँ, कब उनकी मौत हो जाए. उनके साथ शादी ब्याह में भी भेदभाव किया जाता है. दुनिया भर में जीवित इंसान रहते हैं लेकिन हिरोशिमा जैसे शहरों के बारे में यह कहा जाता है कि वहां सिर्फ मृत इंसान रहते हैं. त्रासदी के इतने साल बाद भी वहन के लोगों को लगता रहता है कि वे मृत इन्सान है. यह अपने आप में बड़ी त्रासदी है.

लेखिका ने पुस्तक की भूमिका में लिखा है कि ‘जिस संसार में जापान और हिरोशिमा स्थित है उसी संसार को प्रेम करने वाले सभी पाठकों के लिए मैंने यह कहानी लिखी है.’ ये दोनों चित्रकथाएं इस बात की याद दिलाती है कि जब तक परमाणु बम इस संसार में रहेगा तब तक दुनिया के हर पाठक के साथ इस कहानी के साकार होने की सम्भावना बनी रहेगी.

अनुवाद अच्छा है. हमें अपने बच्चों को यह किताब जरूर पढ़ानी चाहिए ताकि वे इस बात से आगाह हो सकें कि परमाणु निरस्त्रीकरण कितना जरूरी है, इस सुन्दर दुनिया का आनंद उठाने के लिए शांति कितनी जरूरी है.

 
      

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7 comments

  1. इस चित्रकथा को अभी तक पढ़ तो नहीं सका लेकिन अनुदित चित्रकथाओं का सामायिक मुद्दों को ध्यान में रखते हुए हिंदी पाठकों के बीच आना स्वागतयोग्य है.

  2. हिरोशिमा की त्रासदी बहुत ही दुखद घटना थी उसका असर उस समय के लोगो के साथ आनेवाली पीढ़ी के लिए भी खतरनाक साबित हुआ . इस तरह की घटना की पुनरावर्ती न हो इसलिय जापानी लेखक कोनो फुमियो ने चित्रकथा के माध्यम से लोगो को जाग्रत करने का प्रयास किया है .

  3. इस चित्रकथा को अभी तक पढ़ तो नहीं सका लेकिन अनुदित चित्रकथाओं का सामायिक मुद्दों को ध्यान में रखते हुए हिंदी पाठकों के बीच आना स्वागतयोग्य है.

  4. हिरोशिमा की त्रासदी बहुत ही दुखद घटना थी उसका असर उस समय के लोगो के साथ आनेवाली पीढ़ी के लिए भी खतरनाक साबित हुआ . इस तरह की घटना की पुनरावर्ती न हो इसलिय जापानी लेखक कोनो फुमियो ने चित्रकथा के माध्यम से लोगो को जाग्रत करने का प्रयास किया है .

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