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अविनाश मिश्र की कविताएं

हरेप्रकाश उपाध्याय के संपादन में निकली पत्रिका ‘मंतव्य’ की वाह-वाह हो रही है लेकिन यह लिखने वाले कम लोग हैं कि इस पत्रिका में छपी रचनाओं में अच्छा क्या है. सोशल मीडिया की वाह-वाह ऐसी ही होती है. बहरहाल, इस पत्रिका पर मैं विस्तार से बाद में लिखूंगा. पहले युवा कवि अविनाश मिश्र की कविताएं जिसका तेवर मुझे अच्छा लगा. ‘मंतव्य’ के प्रवेशांक की एक उपलब्धि- प्रभात रंजन 


सोलह अभिमान
सिंदूर
क्या वह बता सकता था
कि अब तुम मेरी नहीं रहीं
लेकिन उसने ही बताया
जब तुम मिलीं बहुत बरस बाद
और वह तुम्हारे साथ नहीं था
***
बेंदा
यूं तुम देखने में बुरे नहीं
उम्र भी तुम्हारी कुछ खास नहीं
बनावट से भी तुम्हारी रश्क होता है
लेकिन तुम्हें सब वक्त ढोया नहीं जा सकता
जबकि तुम उसके इतने करीब हो!
***
बिंदिया
वह तुम्हारा कोई स्वप्न थी
या अभिलाषा
या कोई आत्म-गौरव
या वह कोई बाधा थी
सूर्य, चंद्रमा, नखत, समुद्र या पृथ्वी की तरह नहीं
एक रंग-बूंद की तरह प्रतिष्ठित—
तुम्हारे भाल पर
***
काजल
तुम्हारी आंखों में बसा
वह रात की तरह था
दिन की कालिमा को संभालता
उसने मुझे डूबने नहीं दिया
कई बार बचाया उसने मुझे
कई बार उसकी स्मृतियों ने
***
नथ
वह सही वक्त बताती हुई घड़ी है
चंद्रमा को उसमें कसा जा सकता है
और समुद्र को भी
***
कर्णफूल
बहुत बड़े थे वे और भारी भी
तुम्हारे कानों की सबसे नर्म जगह पर
एक चुभन में फंसे झूलते हुए
क्या वे दर्द भी देते थे
तुम से फंसे तुम में झूलते हुए
क्या बेतुका ख्याल है यह
क्या इनके बगैर तुम अधूरी थीं
नहीं, आगे तो कई तकलीफें थीं
***
गजरा
मैं तुम्हारे अधरों की अरुणाई नहीं
तुम्हारे नाखूनों पर चढ़ी गुलाबी चमक नहीं
तुम्हारे पैरों में लगा महावर नहीं
नाहक ही मैं पीछे आया
तुम्हारे केश-अरण्य में गमकता
अपनी ही सुगंध से अनजान
मैं तुम्हारा अंतरंग नहीं
***
मंगलसूत्र
वह वास्तविक निकष है एक तय निष्कर्ष का   
या मुझे अनाकर्षित करने की कोई क्षमता
मर्यादा उसका प्रकट गुण है
और कामना तुम्हारा
मैं अगर कोई सूत्र हूं
तब मेरा मंगल तुम पर निर्भर है
***
बाजूबंद
वह आमंत्रित है
मैं भी
अन्य भी
प्रथम पुरुष के लिए वह अर्गला है
मध्यम के लिए आश्चर्य 
अन्य के लिए आकांक्षा
***  
मेहंदी
इस असर से तुम्हारी हथेलियां
कुछ भारी हो जाती थीं
इतनी भारी
कि तुम फिर और कुछ उठा नहीं सकती थीं
इस असर के सूखने तक
बहुत भारी था जीवन
समय बहुत निर्भर
***
चूड़ियां
तुम्हें न देखूं तब भी
बंधा चला आता था
बहुत मीठी और नाजुक थी उनकी खनक
छूते ही रेजा-रेजा…
***
अंगूठी
इसका मुहावरा ही और है
यह सबसे पहले आती है
शेष सब इसके बाद
एक भार की तरह
आत्म-प्रचार की तरह
इसमें उदारता भी स्वाभाविक होती है और उपेक्षा भी
यह जब जी चाहे उतारकर दी जा सकती है
उधार की तरह
*** 
मेखला
मध्यमार्गी वह
मध्य में मैं
मध्यमांगी तुम
***
पायल
वह शोर और दर्द जो उठ रहा था
उनसे नहीं उनके बिछड़ जाने से उठ रहा था
कितनी सूनी और कितनी अधूरी थी इस बिछुड़न में
तुम्हारी चाल
बेताल
***
बिछुए
वे रहे होंगे
मैं उनके बारे में ज्यादा नहीं जानता
मैं उनके बारे में जानना नहीं चाहता
उनके बारे में जानना स्मृतियों में व्यवधान जैसा है
***
 
      

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20 comments

  1. बेहद अच्छी कविताएँ सरल व सहज अभिव्यक्ति !!

  2. Hindi me itne bade falak wala koi kavi pichhle 30 sal me nahi hua… hindi hi nahi duniya ki sari bhashao me aisi kavita bahut jam hoti hai….yah samkalen vishva ka mahantam kavi hoga.

  3. पहली बार पढ़ा है आपको……पर कविताएं सुन्दर है…..सीधी -साधी भाषा और छिपी हुई मार्मिकता के कारण इसकी अनुगूंज देर तक सुनाई देती है।

  4. यह है कविता! वाह!

  5. रीतिकालीन नख शिख वर्णन परम्परा की प्रथुलता से इतर कितनी सूक्ष्मता, गहरा संवेदन, मार्मिकता और सयंत आवेग है इन कविताओं में, अविनाश अपनी कविताओं में बहुत थम कर, आहिस्ता, मगर गौर से सोचने वाले कवि हैं 'मंगल सूत्र' ने बेहद प्रभावित किया ..कवि के प्रति हार्दिक शुभ कामनाएँ !

  6. अविनाश को बधाई इन कविताओं पर…मेहंदी, सिन्दूर और बिछुए विशेष पसंद आई.

  7. Gyasu Shaikh said:

    मन में उठती और मिटती इच्छाएं सांस्कृतिक
    बिंबों में साकार है इन कविताओं में, और
    अनकहा सा कोई अनुमोदन भी कहा-कहा सा है…
    प्रशंसा भी अभिनव स्वरूप लिए है कविताओं मे
    वह भी बिना किसी आरोपित चेष्टा के…सांस्कृतिक
    चिन्हों के अतिप्राकृतिक भाव रंग मिले हैं कविताओं
    में।

    नयी-नयी सी कविताओं में सुंदर सा भाषा कर्म है…
    धन्यवाद अविनाश जी।

  8. बेहतरीन………………….अविनाश को पढना हमेशा बेहद सुखद रहा है !

    अनु

  9. नारी के आभूषणो पर आधरित कविताये बेहद अच्छी है सरल व सहज अभिव्यक्ति .विषयो में नवीनता है .

  10. सचमुच बेहद अच्छी कविताएँ … मन की भित्ति पर टिक जाने वाली …।

  11. अच्छी हैं

  12. मन बाग बाग हो गया। एक शूशूल की तरह चुभती हैं। पर इस पीडा मे एक सुख है

  13. वाह

  14. बहुत सुंदर रचनाऐं ।

  15. वाह बहुत ही शांत संयत और संजीदा नज़र

  16. क्या बात है अविनाश जी
    पहली बार पढ़ा आपको, अद्भभुत
    बधाई के साथ शुभकामनायें

  17. डाॅ.सच्चिदानन्द देव पाण्डेय

    सादगीापूर्ण !
    सचमुच कृष्णकल्पित जी ने बिल्कुल सटीक कहा कि- “अविनाशजी भविष्य के भर्तृहरि हैैं ।उनके शृंगार मे वैराग्यशतक समाहित हैै ।”

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