लोकसभा चुनावों से पहले काला धन वापस लाने का ऐसा शोर था कि कई लोग तो सपने देखने लगे कि उनके बैंक खातों में 3 से 15 लाख तक रुपये आ जायेंगे. बड़े बड़े मंसूबे बंधे जाने लगे. मियां बुकरात, बटेशर, खदेरू भी कुछ ऐसी उलझनों में खोये हैं सदफ नाज़ के इस नए व्यंग्य में. पढ़कर बताइए इस बार व्यंग्य की धार कैसी है- मॉडरेटर.
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बहुत दिनों के बाद अचानक मियां बुकरात बाजार में दिख गए,मैं कन्नी काट कर निकलने वाली थी, लेकिन मुझे देखते ही लपकते-झपकते पास आ गए। कहने लगे मोहतरमा आप तो हमें देख कर सरकने वाली थीं। ख़ैर! ये बताईए कि आपकी निगाह ख़बर-वबर पर है या नहीं? मैं जिससे घबरा रही थी बुकरात ने जान-बूझ कर वही राग छेड़ दिया। कहने लगे “मोहतरमा मैं ना कहता था कि ग़ैर-मुल्कों से स्याह दौलत(काला धन) लाने की बात सियासी चक्कलबाज़ी से ज़्यादा कुछ नहीं है। मज़बूत हों या फिर कमज़ोर इस किस्म की चक्कलबाजी से ही इनकी सियासत उछाल मारती है और जब मकसद पूरा हो जाए तो मुद्दा झाग की तरह बैठ जाता है।” बुकरात फिर कहने लगे कि “मोहतरमा आप और बटेसर भाई स्याह दौलत मुल्क में वापस लाने को लेकर ऐसे कलाबाज़ियां खा रहे थे, मानो ग़ैर मुल्कों से हवाई जहाज़ में भर-भर के काली दौलत आने वाली हो। और इसी दौलत से मुल्क की सारी परेशानियों का खात्मा होगा।
हद है! आप लोगों की इसी शोशेबाजी ने लोगों को फरेब में रख छोड़ा है। और इसी फरेबे नज़र के मारे हमारे खदेरू भी आजकल फिक्रमंद चल रहे हैं। उन्हें फिक्र लग गई है कि उनकी खदेरन के सामने इज्ज़त चली जाएगी। दरअसल खदेरू मज़बूतों की तकरीर(भाषण) सुन कर इतने मुत्तासिर हो गए कि पिछली बार जब गांव गए तो खदेरन से छत वाला मकान, सोने का हार, दो भैंसों का वादा कर आए। उन्होंने खदेरन को समझा दिया था कि जैसे ही काली करतूतों वाले काले पैसे सौ दिनों के भीतर-भीतर बाहिर के मुल्को से आएंगे और मुल्क के गरीबों के दिन फिर जाएंगे। हर तरफ़ खुशहाली होगी। इसी सुनहरे सपने को लेकर दोनों खुशी-खुशी मज़बूतों वाला बटन दबा आए थे”, सिर्फ खदेरू ही नहीं किसुन भी हमसे कह रहे थे कि बुकरात भाई “ लागत है हम लोग ई बेरा फिर से ठेगा गए! हम तो मज़बूत लोगन के कहने पर खाता खुलवा दिए थे और इंजार कर रहे थें कि अब पैसे आइहें तब पैसे आइंहे”।
मैंने भी कमज़ोर आवाज़ में एहतेजाज करते हुए कहा कि बुकरात आप तो बिलकुल ही पूर्वाग्रह का चश्मा लगाए सेक्युलरों की तरह बलने लग जाते हैं। भला इसमें क्या शक है कि एक बार अगर मुल्क में काला धन आ जाए तो मुल्क में हर तरफ खुशहाली आ जाएगी। मुल्क के इकनॉमी की रेल सरपट दौड़ने लगेगी, मंहगाई कम हो जाएगी। यहां तक कि गरीब भी गरीब नहीं रहेंगे। क्योंकि उनके खाते में भी लाखों रूपए होंगे। ठीक है सौ दिन का वादा था लेकिन मामले में नियम-कायदे के इतने पेंच होंगे उन्हें क्या मालूम था ? मेरी बात सुनते ही बुकरात बुरी तरह से भड़क गए कहने लगे, “आपने तो कुढ़मगज़ी की हद कर दी है, जनाब! स्याह दौलत मुल्क में लाने के नियम-कानून को टॉप सिक्रेट तो है नहीं, कोई भी पढ़ा-लिखा बंदा चाहे तो आसानी से इनकी पेचीदगियों को जान-समझ सकता है। और आपको क्या लगता है कि मज़बूतों को अंदाज़ा नहीं होगा कि नियमों के क्या पेंच हैं?
मोहतरमा ख़ामख्याली में मत रहिए! स्याह दौलत लाना तो दूर की बात है अभी तो इसी बात पर जूतम-पैजार हो रही हैं कि सारे स्याह खातेदारों के नाम ज़ाहिर होंगे या फिर सिलेक्टेड नाम ही जाहिर किए जाएं। यूं लग रहा है कि कमज़ोरों की तरह मज़बूत भी मुद्दे को गोल-गोल घुमाकर फिर से उसका डिब्बा गोल कर देंगे। और आप जैसे खड़े अपना सिर धुनते रह जाएंगे। एक और बात ख़ातिरजमा रखिए मोहतरमा कि ये मसला ऐसा है जो न खत्म किया जाएगा और ना हल किया जाएगा। जब-जब सियासत की रोटी सेंकनी होगी स्याह दौलत का भूत आपके सिरों पर लटका दिया जाएगा”। हमारी जुब्बा ख़ाला भी इस मसले से दिलबर्राश्ता हैं कहती हैं “माशाल्लाह से पूरी दुनिया जिसकी मज़बूती की चमक के आगे फीकी पड़ गई है। उसे अवाम और मुल्क के खिलाफ किए जाने वाले नियम-समझौते की परवाह क्योंकर हो? जब सारी इबारत ही नई लिख रहें हैं तो इसमें देरी क्यों! ख़ुदा ना ख़ास्ता जिस तरह से काली कमाई के खातेदारों के नाम जिस रफ्तार से सोच-समझ कर ज़ाहिर किया जा रहा है कहीं ऐसा न हो कि कई सौ नामों के सामने आते-आते स्याह दौलत की चिड़िया ही अपने-अपने अकाउंट से ऊड़न छू हो जाए।
उम्मीद तो नहीं लेकिन जब तक कोई फाईनल हल ना निकले आप भी स्याह दौलत के सियासी चक्कलस पर अंदाजे और उम्मीद के अनुलोम-विलोम करते रहिए!
संपर्क: sadafmoazzam@yahoo.in
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नायाब अंदाज़ ए बयाँ है।