दिलीप कुमार के पेशावर को याद रखने का एक दूसरा दर्दनाक सिलसिला बन गया. दोनों मुल्कों के इतिहास का सबसे काला दिन बन गया 16 दिसंबर 2014. दो ग़ज़लें मशहूर गजलगो सुशील सिद्धार्थ ने उस घटना को याद करते हुए लिखी है. भरे मन से यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ- प्रभात रंजन
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1.
हो कुछ किलकारियों के क़त्ल पर इरशाद मौलाना
ये पेशावर रहेगा जिंदगी भर याद मौलाना
लहू के आंसुओं में रोई होंगी हज़रात-ए-जैनब
अली असगर की हमको फिर दिला दी याद मौलाना
सुबह दम अम्मी अब्बू ने खुदा हाफ़िज़ कहा होगा
खुदा ने क्या कहा होगा सुबह के बाद मौलाना
न आँसू हैं न आहें हैं न सिसकी है न हिचकी है
ये माँएं क्या करें किससे करें फ़रियाद मौलाना
यही मंजर है तब सोचो तुम्हारा हो हमारा हो
वतन ऐसे रहेगा कब तलक आबाद मौलाना
2.
लहू वाले कपड़े सुखा देना अम्मी
अँधेरे में आँसू छिपा देना अम्मी
वो कॉपी किताबें कलम बैग सब कुछ
करीने से उनको सजा देना अम्मी
यही कहने वाले थे आदत पड़ी है
सुबह हमको जल्दी जगा देना अम्मी
खुदा का करम दोस्त बच कर गए हैं
उन्हीं को अब अपनी दुआ देना अम्मी
जभी ईद में तुम सिवईयां बनाना
तो यादों में हमको खिला देना अम्मी
तुम्हीं हौसला दोगी अब्बू को मेरे
जो मुमकिन हो हमको भुला देना अम्मी
Dard ke samander me Duba gaeen ye gazalen.
Dukh – Dard Mein Doobee Susheel Siddharth Ji Kee Ye Ghazalen Marm Ko Chhoo Gayee Hain .