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कामयाबी से गुमनामी तक का सफरनामा

सत्तर के दशक के में हिंदी सिनेमा के पहले सुपर स्टार माने जाने वाले राजेश खन्ना का आरंभिक सिनेमाई जीवन एक खुली किताब की तरह सार्वजनिक है तो बाद का जीवन रहस्यमयी है, किसी ट्रेजिक हीरो की तरह कारुणिक. सत्तर के दशक के आरंभिक वर्षों में अखबारों में उनकी फिल्मों की सफलता की कहानियां भरी रहती थी. जबकि 80 के दशक के आरंभिक वर्षों में जब उनकी फ़िल्में ‘अवतार’ और ‘सौतन’ जैसी फ़िल्में आई तो एक बार फिर सुपर स्टार की वापसी का हल्ला मचने लगा था. सत्तर के दशक में उनके फैन उनको ढूंढते रहते थे, उनकी छाया तक को घेरे रखते थे, जबकि अपने आखिरी विज्ञापन में वे अपने ‘फैन्स’ को याद करते दिखाई देते हैं. इस सारे घटाटोप में उनका जीवन जैसे छिप सा गया था. यासिर उस्मान की किताब ‘राजेश खन्ना: कुछ तो लोग कहेंगे’ कामयाब-नाकामयाब अभिनेता के जीवन के सूत्रों को जोड़ने की एक ऐसी कोशिश है जिसमें उस कलाकार और उसके वजूद को समझने की कोशिश की गई है.

लेखक ने श्रमपूर्वक लिखी इस जीवनी में राजेश खन्ना के जीवन से जुड़े कई मिथों को तोड़ने का काम किया है, कई सचाइयों को नई रौशनी में उजागर करने का काम किया है. सब कुछ जीवंत तरीके से. पुस्तक की भूमिका में सलीम खान ने सही लिखा है कि ‘हालाँकि ये राजेश खन्ना की असली जिंदगी की कहानी है लेकिन लेखक का अंदाजे-बयां ऐसा है कि ये कहानी किसी दिलचस्प फिल्म की तरह जेहन में यादगार तस्वीरें उभारती हैं. इन तस्वीरों में राजेश खन्ना पलकें झपकाते हुए, अपनी हसीन मुस्कान के साथ भी नजर आते हैं और बाद में अकेलेपन और गुमनामी में जूझते हुए गुजरे जमाने के स्टार के तौर पर भी.’

राजेश खन्ना की जीवनी के लिए लेखक ने शोध भी भरपूर किया है और राजेश खन्ना के जीवन से जुड़े कई अनजान तथ्यों को सामने लेकर आये हैं. सबसे बड़ी बात यह कि जतिन खन्ना राजेश खन्ना बनने के लिए मुंबई कहीं और से नहीं आया था. अपने माता पिता चुन्नीलाल खन्ना और लीलावती खन्ना के साथ वह बचपन से ही मुंबई के गिरगाम इलाके में रहता था. उनके बचपन से जुड़ी इस कहानी के साथ उनके बचपन की कई ग्रंथियों का खुलासा लेखक ने इस किताब में इस तरह से किया है कि उससे राजेश खन्ना का व्यक्तित्व किताब में सम्पूर्णता में उभर कर आता है.

राजेश खन्ना के बचपन की तरह ही रहस्यमयी है उनका उत्तर जीवन जब अमिताभ बच्चन एक नए सुपरस्टार के उदय के साथ राजेश खन्ना का नाम गुमनामी के अँधेरे में खोता जा रहा था, अपने साथ छोड़कर जा रहे थे. राजेश खन्ना अपने कामयाबी के शिखर पर भी अकेले थे और गुमनामी के अँधेरे में भी किसी ने उनका साथ नहीं दिया. वे राजनीति में आये, कांग्रेस पार्टी के सांसद बने. लेकिन उनका राजनीतिक जीवन भी अधिक कामयाब नहीं रहा. लेखक ने बड़ी मेहनत से उनके राजनीतिक जीवन के ताने बाने को भी पुस्तक में बुनने का प्रयास किया है.

ऐक्शन, रोमांस, ड्रामा, मेलोड्रामा से भरपूर किसी फिल्म के सुखद चरमोत्कर्ष की तरह ही उनके जीवन के आखिरी दिनों में लगने लगा था कि उनके अपने उनके पास लौट आये थे. एक चैन की जिंदगी की सूरत बनने लगी थी कि वे इस दुनिया को छोड़कर चले गए.

राजेश खन्ना के बचपन से लेकर उनके अंतिम सफ़र तक की कहानी को 256 पेज की इस किताब में लेखक यासिर उस्मान ने बखूबी बुना है. यह किताब केवल उनके लिए ही उपयोगी नहीं है जो राजेश खन्ना के प्रशंसक थे बल्कि उनके लिए भी इस किताब में काफी कुछ है जो सुपरस्टार के फिनोमिना को समझना चाहते हैं.

प्रभात रंजन 
(राजस्थान पत्रिका में पूर्व प्रकाशित)

पुस्तक: राजेश खन्ना: कुछ तो लोग कहेंगे
लेखक- यासिर उस्मान
प्रकाशक- पेंगुइन

मूल्य- 250 रुपये 
 
      

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