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कविताएं सीत मिश्र की

आज कविताएं सीत मिश्र की. कविताओं में कच्चापन हो सकता है दिखाई दे मगर अनुभव सघन हैं. 
सोंधापन है भाषा में, अच्छी कवयित्री बनने की सम्भावना पूरी है. आप भी पढ़िए- मॉडरेटर 
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1.
प्रेम

प्रेम की नई परिभाषा गढ़ी थी उसने
साथ रहना, सोना, खाना-पीना प्रेम नहीं
दैनिक जीवन का हिस्सा है यह
बढ़ती उम्र के साथ जिस्म की भी जरुरत होती है
और उसे प्रेम का नाम देना गलत है
जरुरतें प्रेम की दिशा तय करती हैं
जब मां की जरुरत थी तब सिर्फ मां से प्रेम था
जब शारीरिक जरुरतें जागी
तो प्रेम का दायरा व्यापक हुआ और मेरा प्रेम तुम तक सिमट गया
फिर सामाजिक जरुरतें जाग्रत हुई तो पत्नी से प्रेम हुआ
लेकिन बच्चों के जन्म के साथ प्रेम दूसरी दिशा में प्रवाहित होने लगा
जब जरुरतों की सीमाएं नहीं तो भला प्रेम की क्यों हों?
हां, उनमें से कुछ रिश्ते आज भी मुझमें पल रहे हैं, कुछ मृत भी हो गए।
लेकिन क्या फर्क पड़ता है जीवन मजे में है।
प्रेम और जरुरतें फिर बदलने लगी हैं
समझ रहा हूँ अभी, फिर समझाउंगा तुम्हें
प्रेम की नई परिभाषा।।
2.
साथ

सुनो…
एक बार फिर लौटकर आना तुम
पूछना प्रेम करोगी मुझसे
मैं इनकार कर दूंगी
तुम फिर इजहार करना कई बार
लेकिन इस बार तुम इजहार करते-करते हार जाना
और मैं इनकार करते हुए जीत जाउंगी
समय और परिस्थितियों के उलट
हम बदल लेंगे अपनी परिस्थितियां
खीज, नाराजगी और गमों से लदे हुए
कुछ एहसास जो तुमसे परे रहे
कुछ हसरतें जो मेरी अधूरी थी
उन्हें हम जिएंगे अलग-अलग
अपने-अपने तरीके से
शायद मैं समझ जाऊं तुम्हारी बेबसी
और सारे इल्जाम वापस रख लूं
या कि तुम समझ जाओ मेरा दर्द
फिर हम चल पड़े साथ-साथ
3.
हिसाब

आज हिसाब कर ही लेते हैं तुम्हारे जाने से
क्या बदल गया, कुछ भी तो नहीं
बस तकलीफें नहीँ बांटती किसी से
तुम्हारी तरह कोई ध्यान नहीं रखता
समय बोझिल हो उठा है कटता ही नहीं
आंखें बेवजह पनीली हैं
इन्तजार करने की लत भी खत्म हो रही है
सांसे चल रही हैं धड़कनों की रफ्तार भी वही है
मैं ठीक हूं बस सपने मर गए
एक साथ ही तो छूटा, तकलीफ बड़ी है क्या?
बंद सी मुठ्ठी में खाली हाथ रह गया
मेरा तो कुछ गया नहीं लेकिन मुझमें मुझ सा बचा भी नहीं
बीतते वक्त के साथ मैं खर्च हो गयी
फिर भी इस सौदे में बड़ा घाटा हुआ तुम्हें
मेरे हिसाब का निष्कर्ष यही कह रहा है
भूल चूक लेनी देनी का हिसाब तुम्हीं कर लो
मैं जानती हूँ व्यवसायी तुम अच्छे हो
घाटे को मुनाफे में तब्दील कर लोगे।

4.
नियंता
सुनो…
एक काम करते हैं,
तुम मुझे बदनाम करो
हम खुद को तुम्हारे नाम करते हैं
तुम हमें बहलाओ और दुत्कारो भी
हमें चुभलाओ और करो दारोश भी
दुर्गा कहकर कुचलो पैरों तले
लक्ष्मी कहकर छीन लो जीने का अधिकार
हम वंदना करेंगे तुम्हारी
पूजेंगी तुम्हें
सौन्दर्य का ताज पहनाकर कैद करो
बेड़ियाँ डालो रूढ़ियों की
हवाला दो शास्त्रों का
बांध लो बाहुपाश में
और खींच दो लक्ष्मण रेखा
काट दो हमारे पंख
हम उफ्फ तक नहीं करेंगी
टूटकर चाहेंगी तुम्हें
तुम्हारे अंश को खुद में पालेंगी
देंगी तुम्हें बाप बनने का गौरव
तुम हम पर लांछन लगाना
फिर भी तुम्हारा गुणगान करेंगी हम
कृतज्ञ रहेंगे तुम्हारीआजीवन आभारी भी
अब भी तो सांसे चल रही हैं हमारी
तुमने हमारा अस्तित्व कुचला
लेकिन हमें मिटाया नहीं
हम इसे अपनी नियति मानते हैं
हमारे नियंता हो तुम
तुम्हारी जय-जयकार हो ।।

 
      

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16 comments

  1. जीये हुए जीवन से कविता जब रची जाती है तो वह सामूहिक वाणी बनकर आती है |अनुभूति की सघनता ही कविता की जमीन होती है
    ,इस भूमि से ही बड़ी रचना जन्म लेती है |

  2. जीये हुए जीवन से कविता जब रची जाती है तो वह सामूहिक वाणी बनकर आती है |अनुभूति की सघनता ही कविता की जमीन होती है
    ,इस भूमि से ही बड़ी रचना जन्म लेती है |

  3. sundar kavitaayen…

  4. शुभरात्रि साथ मधुर स्वप्नयात्रा।

  5. शुभरात्रि साथ मधुर स्वप्नयात्रा।

  6. शुभरात्रि साथ मधुर स्वप्नयात्रा।

  7. अति सूंदर अभिव्यक्ति आपकी

  8. अति सूंदर अभिव्यक्ति आपकी

  9. Very nice attempt…

  10. bahut sundar rachnayen hain..Prabhat sir sajha karne ka shukriya..

  11. अप्रतीम !

  12. Une fois la plupart des téléphones mobiles éteints, la restriction relative à la saisie d’un mot de passe incorrect sera levée. À ce stade, vous pouvez accéder au système par empreinte digitale, reconnaissance faciale, etc.

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