अभी परसों ही अखबार में पढ़ा कि युवा कविता के लिए दिया जाने वाला भारतभूषण अग्रवाल पुरस्कार इस बार किसी कवि को नहीं दिया जायेगा क्योंकि इस साल के निर्णायक अशोक वाजपेयी को इस योग्य कोई कवि नहीं लगा. मैं विनम्रता से कहना चाहता हूँ कि श्री वाजपेयी लगता है समकालीन कविता पढ़ते नहीं हैं और अपनी अनपढ़ता को उन्होंने हिंदी कविता की सीमा बना दिया. मुझे लगता है कई कवि हैं जिनकी कविताओं में उम्मीद बची हुई है. आज एक ऐसे ही युवा कवि सुधांशु फिरदौस की कविताएं. बिना किसी नारेबाजी के कविताओं को कला माध्यम के रूप में बरतने का जो कौशल इस गणितज्ञ कवि में है वह शायद समकालीन कविता में विरल है. आज उनकी कुछ कविताएं- प्रभात रंजन
इस शीर्षकविहीन समय में तुम्हारे नाम एक और शीर्षकविहीन कविता
१
रात भर
मोर और कोयल में दुबोला होता रहा
मै उसके बारे में
वो मेरे बारे में
दूसरों से-
पूछता रहा
२
लौट आई है एक तितली फूल पर बैठने से पहले
लौट आया है एक पतंगा आग में जलने से पहले
इन दिनों, दोनों मिलकर गढ़ रहे हैं
प्रेम की नई परिभाषा
३
अक्टूबर की बूंदाबांदी भरी शाम
लैंपपोस्टों पर टूट पड़े हैं पतंगे
दशहरे को न विसर्जित हो पाई
दुर्गा की प्रतिमाओं की उदासी
संगत कर रही है मेरी उदासी के साथ
(इस बार मानसून कुछ ज़्यादा ही असंगत है)
बिलकुल वैसी ही
जैसे फेसबुक पर लगी
तुम्हारी तस्वीर की
दंतुरित मुस्कान
४
मेरी ज़िंदगी की सारी नेमतें बंद हैं
तुम्हारे एक पेचोखम भरे दस्तख़त से
जिसकी जालसाज़ी
मैं अब तक न कर सका
और तुम ख़ुद हीं
बंद हो किसी और की तिजोरी में
५
बादलों के पीछे छिपा है एक धुनिया
धुन रहा है अनवरत रुई
दूर दूर तक फैले हैं सूरजमुखी के खेत
बीच से एक साइकिल
दूर जाती हुई
जाड़े की खिली धूप में उनका मुरझाया हुआ चेहरा
लगता है लम्बा खिंचेगा यह इंतजार
एक तरफा प्यार
६
वसंत की पहली बारिश
ले गई बची खुची ठंढ़
दोपहर की धूप में सूख रहा
रात का भीगा कंबल
७
जीवन एक घर है
जिसमें बेघर हूँ मैं
दरख़्त किसके ध्यान में
पत्ते किसके-
ये अकेलापन मुझे वहशी किये जा रहा है
निगल जाना चाहता हूँ पत्तियाँ, टहनियाँ
पूरा का पूरा दरख्त
८
खिलते हैं एक ही मौसम में गुलमोहर और अमलतास
भौंरा किस फूल पर बैठे इस फिक्र में रहता है उदास
चिरई,मचान ,जुगनू ,बादल ,धुनिया या फेसबुक क्या नाम दीया जाय फिरदौस को ……………
सुधांशु की कवितायें प्रभावित करती हैं । छोटे छोटे वाक्यों में गहरे बिम्ब गढ़ते हैं । इन्हें पहले भी पढता रहा हूँ । संभावनाओं से भरे हैं ये । बधाई इन्हें ।
सुधांशु जी की कवितायेँ मेरे लिए नई नहीं हैं. बल्कि इनकी कविताओं में अभिव्यक्ति और शब्दों का नयापन अलबत्ता निखरता गया है! सिर्फ एक बार इनकी कवितायेँ पढ़कर किसी फैसले पर कूदना ज़्यादती होगी! ये सिर्फ कविता ही नहीं गढ़ते शब्द भी गढ़ते हैं! बधाई सुधांशु भाई!
सुधांशु जी की कवितायेँ मेरे लिए नई नहीं हैं. बल्कि इनकी कविताओं में अभिव्यक्ति और शब्दों का नयापन अलबत्ता निखरता गया है! सिर्फ एक बार इनकी कवितायेँ पढ़कर किसी फैसले पर कूदना ज़्यादती होगी! ये सिर्फ कविता ही नहीं गढ़ते शब्द भी गढ़ते हैं! बधाई सुधांशु भाई!
कविता का नया कलेवर, विषयों की ताजगी रोचक है …… संभावनाएं नजर आती है …… नये उजास की …… बधाइयां …..
ताजगीभरी अभिव्यक्ति के लिए सुधांशु जी को बधाई
सच कहु तो दो से अधिक मन को जमा नही ,–अफ़सोस । पर दो के लिए अशेष बधाइ ।
बेशक अच्छी कविताएं हैं . तलाशने पर ऐसी कविताएं और भी कई जगह मिल सकतीं हैं . प्रतिभा की कमी नही .कमी है खोज और पुरस्कार के मापदण्ड की . सुधांशु जी की अभिव्यक्ति में ताजगी है .
लेखन शैली ने प्रभावित किया है…सारी ही शीर्षकविहीन कवितायें अच्छी लगीं…सुधांशु जी को बहुत बधाई…
सहमत हूं आपसे .ये तो नहीं कह सकता की सुधांशु जी की ये कविताएं सर्वश्रेष्ठ समकालीन कविताएं है पर इन्हे पढकर इतना जरूर कह सकता हूं की ये कविताएं है बहुत उम्दा.