असगर वजाहत हमारे दौर के सबसे जीवंत किस्सागो हैं. उनके लिखे उपन्यास हों, कहानियां हों या गद्य की किसी और विधा का लेखन हो उनमें वाचिक परम्परा का वैभव दिखाई देता है. उनको पढने, सुनने की लत पड़ जाती है. पाठकों को अगर एक साथ उनकी तीन किताबें पढने को मिल जाएँ तो क्या कहने. राजपाल एंड सन्ज प्रकाशन से उनकी चार किताबों का एक साथ प्रकाशन हुआ है. गौरतलब है कि असगर वजाहत ने अनेक विधाओं में लिखा है, कई विधाओं का पुनराविष्कार किया है. मसलन लघु कथाओं की विधा का उतना व्यंग्यात्मक उपयोग शायद ही किसी और लेखक ने किया हो.
बहरहाल, पिछले दिनों ‘हंस’ में उनकी किस्सागोई का नमूना ‘बाकरगंज के सैयद’ पढने को मिल रहा था, अब उसका पुस्तकाकार प्रकाशन हुआ है. इसी तरह असगर साहब ने ‘जिस लाहौर नई वेख्या..’ नाटक लिखकर नाटकों की दुनिया में बड़ा धमाका किया था. उनका एक नाटक ‘सबसे सस्ता गोश्त’ भी इन पुस्तकों में एक है. तीसरी पुस्तक है उनके निबंधों का संकलन ‘सफाई गन्दा काम है’. असगर साहब मुस्लिम समाज को लेकर सबसे बेबाक राय रखते हैं, समाज की विद्रूपताओं पर बारीक नजर रखते हैं. इस पुस्तक में उनके निबंधों का रंग है. चौथी पुस्तक है ‘मेरी प्रिय कहानियां’, जिसमें उनकी चुनिन्दा कहानियों का संकलन है.
जो बात सबसे उत्साहवर्धक लगी वह यह है कि प्रकाशक राजपाल उनकी चार पुस्तकों को लेकर दिल्ली विश्वविद्यालय के चार कॉलेजों में अलग-अलग दिन कार्यक्रम आयोजित करने जा रहा है. 14 अक्टूबर को मिरांडा हाउस कॉलेज में, 15 अक्टूबर को इन्द्रप्रस्थ कॉलेज में, 16 अक्टूबर को हिन्दू कॉलेज में और 17 अक्टूबर को किरोड़ीमल कॉलेज में. यह लेखकों से विद्यार्थियों को मिलवाने, नई पीढ़ी को साहित्य से जोड़ने की दिशा में एक अच्छी पहल है.
यही नहीं इन कार्यक्रमों के साथ-साथ राजपाल द्वारा इन महाविद्यालयों में पुस्तकों की प्रदर्शनी भी लगाई जाएगी.
उम्मीद करता हूँ कि असगर वजाहत का यह कैम्पस कनेक्शन और प्रकाशकों को भी प्रेरित करेगा कि वे लेखकों को कैम्पस में लेकर जाएँ. नई पीढ़ी जब तक साहित्य की तरफ आकर्षित नहीं होगी उसके भविष्य को लेकर उत्साहित नहीं हुआ जा सकता है.
यह पहल स्वागतयोग्य है. इन कार्यक्रमों में हम-आप भी शामिल हो सकते हैं!
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