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संजय चतुर्वेदी की चुनिन्दा कविताएं


आज संजय चतुर्वेदी की कवितायेँ. 90 के दशक में इनकी कविताओं ने कविता की भाषा बदली थी, संवेदना का विस्तार किया था. मुझे याद है इण्डिया टुडेके साहित्य वार्षिकांक में इनकी एक कविता छपी थी जिसमें एक पंक्ति थी इण्डिया में एक सेंटर है जो इन्टरनेशनल है‘. बहुत चर्चा हुई थी. हमारे आग्रह पर उन्होंने अपनी पसंद की कुछ चुनिन्दा कविताएं जानकी पुल के लिए दी. आप भी पढ़िए- प्रभात रंजन
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।। संकेत ।।
जंगल में रात को जो आवाज़ें आती हैं
उनमें शायद ही कोई आवाज़ आह्लाद की या ख़ुशी की होती हो
विकराल आवाजें भी कराहट और अवसाद से भरी होती हैं
जिन्हें मारा जाना है
या जिन्हें मारना है
दोनों ही दुःख में डूबे हुए हैं
और मैथुन की इच्छा से निकाली गई आवाज़ें भी
जिन्हें प्रेम से भरा होना था
दुखद संकेत बनके गूंजती हैं रात के गूढ़ आवरण में
लेकिन इनमें सर्वाधिक रहस्यमय होती हैं कीड़ों और मैढकों की आवाज़ें
जो घबराहट में भेजे गए रेडिओ संकेत जैसी लगती हैं
पटाक्षेप से पहले
ज़ुरूरी काम कर लिए जाने की हड़बड़ी में
प्रणय संकेत और आर्तनाद में अंतर नहीं रह जाता
जीवन कालिक है
और निरन्तर भी
और इसमें एक सनातन असुरक्षा छिपी है
जब एक ही आवाज़
प्रेमियों और भक्षकों को एक साथ पास बुलाती है
मारे जाने की कीमत पर भी
कीड़े संकेत देते रहते हैं
और ध्वनियों संकेतों का वह सर्वाधिक प्राचीन और विपुल आयतन
जो समुद्रों के गर्भ में छिपा है
जिसका एक हिस्सा प्रतिदिन शून्य में निकल जाता है
जिसमें संसार की लिपियों के रहस्य छिपे हैं
अन्य नीहारिकाओं को पानी की खोज में भेजे गए
मछलियों और शैवालों के संकेत
और उनके चुम्बकीय आकारों का विवरण छिपा है
और यह भी
कि कोटि कल्पों से
किसी दूरस्थ जीवन के लिए
कीड़ों-मकोड़ों के विपुल संसार की सनसनाहट
संकेत बनकर शून्य में फैल रही है
प्रेमियों और भक्षकों को
अपने होने की सूचना देती हुई
और यह भी
कि जीवन दुखी है
और जो जलमग्न है
वह भी जल रहा है ।
(विपाशा 1999)
।। एक लाख लोग ग़लत नहीं हो सकते ।।
इस अख़बार की एक लाख प्रतियां बिकती हैं
एक लाख लोगों के घर में खाने को नहीं है
एक लाख लोगों के पास घर नहीं हैं
एक लाख लोग
सुकरात से प्रभावित थे
एक लाख लोग
रात को मुर्ग़ा खाते हैं
एक लाख लोगों की
किसी ने सुनी नहीं
एक लाख लोग
किसी से कुछ कहना ही नहीं चाहते थे
भूकम्पों के इतिहास में
एक लाख लोग दब गए
नागासाकी के विस्फोट में
एक लाख लोग ख़त्म हो गए
एक लाख लोग
क्रान्ति में हुतात्मा हुए
एक लाख लोग
साम्यवादी चीन से भागे
एक लाख लोगों को लगा था
यह लड़ाई तो अंतिम लड़ाई है
एक लाख लोग
खोज और अन्वेषण में लापता हो गए
एक लाख लोगों को
ईश्वर के दर्शन हुए
एक लाख लोग
मार्लिन मुनरो से शादी करना चाहते थे
स्तालिन के निर्माण में
एक लाख लोग काम आए
निक्सन के बाज़ार में
एक लाख लोग ख़र्च हुए
एक लाख लोगों के नाम की सूची इसलिए खो गयी
कि उनके कोई राजनीतिक विचार नहीं थे
एक लाख लोग बाबरी मस्जिद को
बर्बर आक्रमण का प्रतीक मानते थे
एक लाख लोग
उसे गिराए जाने को ऐसा मानते हैं
एक लाख लोग
जातिगत आरक्षण को प्रगतिशीलता मानते हैं
एक लाख लोग
उसे समाप्त करने को ऐसा मानेंगे
एक लाख लोगों ने
अमेज़न के जंगल काटे
एक लाख लोग
उनसे पहले वहां रहते थे
एक लाख लोग ज़िन्दा हैं
और अपने खोजे जाने का इंतज़ार कर रहे हैं
एक लाख लोग
पोलियो से लंगड़ाते हैं
एक लाख लोगों की
दाढ़ी में तिनका
एक लाख लोग बुधवार को पैदा हुए
और उनके बाएं गाल पर तिल था
एक लाख लोगों ने
गणतंत्र दिवस की परेड देखी
एक लाख लोग
बिना कारण बीस साल से जेल में हैं
एक लाख लोग
अपनी बीवी-बच्चों से दूर हैं
एक लाख लोग
इस महीने रिटायर हो जाएंगे
एक लाख लोगों का
दुनिया में कोई नहीं
एक लाख लोगों ने
अपनी आंखों के सामने अपने सपने तोड़ दिए
एक लाख लोग
ज़मीन पर अपना हक़ चाहते थे
एक लाख लोग
समुद्रों के रास्ते से पहुंचे
एक लाख लोगों ने
एक लाख लोगों पर हमला किया
एक लाख लोगों ने
एक लाख लोगों को मारा ।
(जनसत्ता 1991)
एक ठुल्ले की कविता
।। वे साधारण सिपाही जो कानून और व्यवस्था में काम आए ।।
शायद कुछ सपनों के लिए
शायद कुछ मूल्यों के लिए
कुछ- कुछ देश
कुछ- कुछ संसार
लेकिन ज़्यादातर अपने अभागे परिवारों के भरणपोषण के लिए
हमने दूर-दराज़ रात-बिरात
बिना किसी व्यक्तिगत प्रयोजन के
अनजानी जगहों पर अपनी जानें लगाई
जानें गंवाई
हम कानून और व्यवस्था की रक्षा में काम आए
लेकिन हमारे बलिदान को आंकना
और उस बलिदान के सारे पहलुओं को समझना
एक आस्थाहीन और अराजक कर देने वाला अनुभव रहेगा
जो अपने कारनामों के दम पर
इस मुल्क की सड़कों पर चलने का हक़ भी खो चुके थे
हमें उनकी सुरक्षा में अपनी तमाम नींदें
 
      

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7 comments

  1. संजय चतुर्वेदी के जरीय 1991 में लिखी यह कविता मुझे बोहत प्रिय है –

    मरने के बाद
    मेरी अस्थियाँ गंगा में विसर्जित कर देना
    और राख थोड़ी बिखरा देना
    हवाई जहाज़ से हिमालय की चोटियों पर
    और थोड़ी कन्याकुमारी के महासंगम में
    और किसी को हक़ नहीं देश से इतना प्यार करने का
    थोड़ी-सी भस्म एक हण्डिया में भर
    गाड़ देना मेरी समाधि में
    लोग देखने आएँ मेरे अजायबघर
    सौ दो सौ एकड़ ज़मीन ज़रूर घेर लेना
    सबसे शानदार जगहों पर
    और मेरे जन्म दिन पर छातियाँ भी पीटना
    एक और बात जो दिलचस्प हो सकती है
    बच्चों से मुझे कभी कोई लगाव नहीं रहा
    लेकिन इसी बहाने अगर उनकी छातियों पर मूँग दली जाए
    तो चलेगा
    हालाँकि मेरे कोई पुत्री नहीं थी
    वर्ना मैं उसके नाम
    चार पाँच किलो चिट्ठियाँ भी छोड़ ही जाता
    मैं दिन में एक सौ बयालीस घण्टे काम करता था
    और उनसे नफ़रत करता रहूँगा
    जो इससे कम कर पाते हैं
    जीवन में सभी विषयों पर पढ़ा सोचा और लिखा
    और कुछ छूट न जाए इसलिए
    तैंतालीस में जब मुझे फ़्लू हुआ
    मैंने दूरअन्देशी दिखाते हुए
    एड्स वैक्सीन पर एक लेख लिखा
    अब मिल नहीं रहा
    उसे दोबारा लिखकर छपवा देना
    और अगर फिर भी ख़ून बचा हो
    आने वाली नस्ल में
    तो मैं अपनी प्रिय मेज़ की दराज़ में
    एक पाण्डुलिपि छोड़े जा रहा हूँ ।

    http://lifehackerhindi.com

  2. सत्य तो वही डंडा है। बाँकी झंडे तो आने जाने है।

  3. संजय हिंदी के विलक्षण कवि है .संकेत..एक लाख लोग..जैसी कवितायें हमे यह बताती है ..अक्सर अच्छी कवितायें को बुरी कवितायें बाहर कर देती है .यह बाजार के उस नियम से संचालित होती है जिसमे यह बताया गया है कि खोटे सिक्के अच्छे सिक्को के बाजार से बाहर कर देते है ..कुछ कवि इसलिये हिंदी के आकाश में चमक रहे है क्योकि उन्हे इसकी हिकमत मालूम है .उनके पास किराये के आलोचक और अनुयायी है .संजय निस्प्रह रहे है .लेकिन यह खुशी हो रही है कि उनकी कवितायें सामने आ रही है .मित्र कवि को बधाई और आपको भी .कि आपने महाप्रभुयों की जगह संजय जैसे कवि का चुनाव किया है .

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