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दिव्या विजय की बाल कहानी ‘यक्ष की शामत आई’

आज बाल दिवस है. प्रस्तुत है दिव्या विजय की बाल कहानी- मॉडरेटर 
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राजकुमार अजय आखेट के लिए निकले हुए थे. वह जूनागढ़ रियासत के इकलौते, मन्नतों से माँगे गए लाड़ले राजकुमार थे. रियासत की प्रजा को उनसे बहुत-सी अपेक्षाएं थीं तथा उनमें वह सुयोग्य राजा होने के गुण देखती थी. इसीलिए प्रजा उनको सर-आँखों पर बिठाकर रखती थी.  जिस गाँव में उनका समूह डेरा डालता गाँव वाले उनकी आवभगत में जुट जाते. अधिकांश बार राजकुमार अजय अपने चुनिन्दा मित्रों के साथ आखेट के लिए निकलते थे परन्तु अब चूँकि उनका राज्याभिषेक निकट था और पड़ोसी शत्रु-राज्य घात लगाये बैठे थे कि कब अवसर मिलते ही उन पर आक्रमण कर मार्ग  का कंटक निकाल फेंके इसलिए उनके वृद्ध पिता महाराज विजय की आज्ञा से सैनिकों का एक दस्ता सदा उनके साथ रहने लगा था. राजकुमार अजय को कभी-कभी रोष भी होता परन्तु कोई समाधान  नहीं था. आज आखेट का अंतिम दिवस था और उनकी टुकड़ी ने सीमाप्रांत के गाँव में पड़ाव डाला था. गाँव वालों ने विशाल स्तर पर उनके लिए कार्यक्रम आयोजित किया था. भोज के पश्चात् नृत्य-गायन का भी प्रबंध था. गाँव वालों की तन्मयता और सैनिकों की उत्सुकता से वातावरण उल्लासमयी था.
मगर राजकुमार अजय का मन वन में जाने के लिए लालायित था. वहां के वन की छटा निराली थी. उन्होंने अपना धनुष-बाण उठाया, तलवार म्यान में थी ही, निशब्द उठे और और अपने प्रिय अश्व को एड़ लगाकर निकल गए. कई दिनों बाद एकांत में विचरण का अवसर मिला था इसलिए वह प्रसन्न थे. प्रकृति के सौंदर्य का अवलोकन करते हुए राजकुमार चले जा रहे थे. वन भांति-भांति की दुर्लभ वनस्पतियों और वृक्षों से युक्त था. सहसा उन्हें स्मृति को लोप करने वाली अति-मूल्यवान और विरल जड़ी-बूटी दृष्टिगोचर हुई. उन्होंने वनस्पति-शास्त्र का गहन अध्ययन किया था इसलिए जानते थे कि ऐसा दूसरा वन इस प्रान्त में नहीं जहाँ वह इसे पा सकें. वह तुरंत अश्व से उतरे और उसे एकत्रित कर आगे बढ़ चले. अब वह दत्तचित्त हो हर वनस्पति को देखते हुए चल रहे थे. उन्हें ध्यान ही न रहा कि वन बीहड़ हो चला है. अन्धकार इतना बढ़ गया था कि हाथ को हाथ नहीं दीख पड़ रहा था परन्तु राजकुमार इतने तल्लीन थे कि उन्होंने इस परिवर्तन को लक्षित नहीं किया. तभी असामान्य कोलाहल से वन गूँज उठा. स्वर इतना अपरिचित था कि यह भी मालूम न हुआ कोई मानव है अथवा पशु. साहसी राजकुमार आगे बढ़ते गए. स्वर तीव्र होता जा रहा था. तभी सौ सूर्यों क बराबर प्रकाश से वन आलोकित हो उठा. उनकी आँखें चुँधिया गयी. उन्होंने जीन को पकडे रखने का प्रयत्न किया परन्तु अश्व अनियंत्रित हो उन्हें नीचे गिरा वन में कहीं लुप्त हो गया. राजकुमार अचेत हो गए.
राजकुमार जब चेतनावस्था में आये तो रात्रि अपने सम्पूर्ण आभूषणों के साथ विराजमान थी. चंद्रमा की शीतलता चहुँ ओर व्याप्त थी. तारे जडाऊ कर्णफूलों की भांति दमक रहे थे. राजकुमार ने अनुभव किया कि उनके हृदय में अपूर्व शांति विद्यमान थी. एकांत में रात्रि का स्वरुप ही परिवर्तित हो गया था. उन्होंने देखा कि वह एक जीर्ण-शीर्ण खंडहर में थे. खंडहर अपने समय में अत्यंत वैभवपूर्ण रहा होगा. टूटी महराबों की नक्काशी उसकी अप्रतिम सुन्दरता की गाथा कह रहीं थीं. वह घूम-घूमकर खंडहर का निरीक्षण कर ही रहे थे कि एकाएक बहुत-से बाजे एक लय में गा उठे. एक, दो, तीन….अनगिन घुँघरू एक-एक कर सरगम पर नाच उठे. उसी तारतम्य में दीप प्रज्ज्वलित होने लगे. आह, कैसी कर्णप्रिय ध्वनि थी और कैसा रमणीय दृश्य. राजकुमार मंत्रमुग्ध हो गए. ऐसी विलक्षणता से किसी मानव का युक्त होना असंभव है. उन्होंने इसका स्रोत जानने के लिए क़दम आगे बढाया परन्तु उन्होंने पाया वह अपना स्थान परिवर्तित करने में अक्षम थे. उनके पाँव प्रस्तर-समान हो गए थे. वह प्रयत्न कर ही रहे थे तभी सम्पूर्ण दृश्य पर से जैसे यवनिका उठी और उन्होंने अपने सम्मुख परियों को नृत्य करते हुए पाया. अब तक उन्होंने परियों के बारे में सुना भर था. परियां किंवदंतियाँ थीं जिनके वृत्तान्त सब कहते थे परन्तु  देखा किसी ने नहीं था. राजकुमार को उनके अस्तित्व की विश्वसनीयता पर सदा संदेह रहा परन्तु आज परियों को अपने सम्मुख देख वह जैसे उनके सम्मोहन में बंध गए. परियाँ पूरे वेग से नृत्य में लीन थीं परन्तु राजकुमार ने देखा कि एक परी विषाद-ग्रस्त  नज़र आ रही थी. वह सम्पूर्ण रूप से नृत्य में भी नहीं रम पा रही थी. उसका मुख म्लान था. रह-रहकर अश्रु उसकी आँखों से गिरते और परियों के पैर उन अश्रुओं के स्पर्श से छिल जाते परन्तु किसी ने भी नृत्य करना स्थगित नहीं किया. राजकुमार को सभी परियाँ शोकाकुल लगीं. उन्हें देख ऐसा लग रहा था जैसे कोई अदृश्य शक्ति उन्हें संचालित कर रही है. वे शिथिल हो रही थीं परन्तु ठहर नहीं पा रहीं थीं. एक-एक कर वे अपनी सुध-बुध खोने लगीं और धरती पर गिरने लगीं. पलक झपकते ही वहां का वातावरण बदल गया. नृत्य थम गया, साज़ चुप हो गए और परियों के उज्जवल-धवल पर मटमैले होते गए.
तभी भयंकर अट्टहास हुआ और एक  यक्ष प्रकट हुआ. उसने परियों की ओर एक तिरस्कृत दृष्टि डाली और जो परी सबसे उदास थी उसे अपने कन्धों पर लाद कर ले चला. उसके खंडहर की सीमा के बाहर जाते ही परियों की चेतना लौटने लगी. चैतन्य होते ही उनका रुदन आरम्भ हो गया. उनका रुदन भी अद्भुत था जिस से राजकुमार फिर अचंभित हो गए. ऐसा उदासा विलाप कि समीप खड़े पेड़ों से पत्ते झड़ गए और उनकी छाल में दूधिया पानी उतर आया. टूटे खंडहर के दीवारें सीली-सी दिखने लगीं. राजकुमार की आँखों में भी अश्रु छलक आये. जब यह असहनीय हो गया तब  राजकुमार ने आगे बढ़ कर एक छोटी परी का हाथ पकड़ लिया. वो अचकचा कर पीछे हट गयी. तभी रक्षात्मक मुद्रा में एक और परी उनके सामने आ खड़ी हुई और कड़कती आवाज़ में पूछा, “कौन हो तुम? यहाँ कैसे आये?”
राजकुमार अजय ने बताया कि वह इस रियासत के राजकुमार हैं और अकस्मात् यहाँ आ पहुंचे हैं. फिर उन्होंने पूछा, “आप कौन हैं तथा यह सब क्या हो रहा था?”
परी सिसकते हुई बोली, ”मैं परियों की रानी हूँ. यह महल तुम्हरे पूर्वजों ने शताब्दियों पूर्व हमारे लिए बनवाया था. इसीलिए तुम भी इसे देख पा रहे हो. कोई साधारण मनुष्य इसे नहीं देख सकता. हम सदियों से हर पूर्णिमा की रात यहाँ आती रही हैं परन्तु पिछले कुछ वर्षों से एक यक्ष ने इसे मन्त्रों से बाँध दिया है. अब यह महल मंत्रबद्ध है. हम अपनी इच्छानुसार नहीं वरन उसके मन्त्रों से बिंध कर यहाँ आती हैं तथा वह हर बार हम में से एक परी को अपने साथ ले जाता है और हम कुछ नहीं कर पातीं.”
उनकी पीड़ा से द्रवित हो राजकुमार अजय बोले, ”आप चिंतित न हों. आप भी हमारी प्रजा हैं और हम आपके लिए भी उतने ही उत्तरदायी हैं जितना शेष लोगों के लिए.”
परी रानी के मुख पर असमंजस उभर आया. फिर हिचकिचाते हुए उन्होंने कहा, “हमारी शक्तियां उसके सामने पड़ते ही क्षीण हो जाती हैं. यक्ष को अमरता का वरदान प्राप्त है. वह कभी मृत्यु को प्राप्त नहीं होगा. उसका निवास स्थान अज्ञात है परन्तु हमने सुना है वहां तक पहुंचना असंभव है. उसमें अपार बल है जिसका तोड़ हमारे पास भी नहीं फिर तुम तो साधारण मनुष्य हो.”
राजकुमार अजय मुस्कुराये और बोले, “जहाँ शारीरिक क्षमता और अन्य शक्तियाँ अपेक्षाकृत कम पड़ जाएँ, वहां मस्तिष्क की चतुराई और भीतर का पराक्रम काम आता है. आप के संकट का निवारण कर ही हम लौटेंगे अन्यथा नहीं.”
राजकुमार के चेहरे के तेज को देख परी रानी थोड़ी निश्चिन्त हुईं. उन्होंने आँखें बंद कीं और छड़ी घुमाई. एक दिव्य अश्व उनके सामने आ खड़ा हुआ. “यह अनेक गुणों से युक्त परीलोक का अश्व है.  इसका दिशाज्ञान उत्कृष्ट है. यह तुम्हारी बोली में बात भी कर सकता है और आवश्यकता पड़ने पर दो पैरों पर खड़ा हो युद्ध भी कर सकता है.” राजकुमार ने अश्व को सराहना से थपथपाया. परी रानी ने राजकुमार के प्रति आभार जताया और उन्हें आशीर्वाद देकर विदा किया.
राजकुमार अश्व पर आरूढ़ हो निकल पड़े. अश्व की गति मन से भी तीव्र थी. वह कई पर्वत और कई समंदर लांघता हुआ बर्फीले प्रदेश में जा पहुंचा. वहाँ दूर-दूर तक कोई न था. मात्र सफ़ेद चादर से ढका मृतप्रायः निर्जन स्थान. राजकुमार ने निराशा से अश्व की गर्दन पर हाथ फेरा तो अश्व तुरंत बोल पड़ा, ‘राजकुमार निराश न हों. इस बर्फ के नीचे एक और संसार है. वहां तक पहुँचने का मार्ग आपको खोजना होगा.”
अश्व की इस बात से राजकुमार अजय ऊहापोह से घिर गए क्यूंकि बर्फ के नीचे संसार होने वाली बात जितनी नवीन थी उतनी ही असंभव भी प्रतीत हो रही थी. वह विचारमग्न थे तभी उन्हें चींटियों की कतार छलांग लगाती दिखी. वे तेज़ी से भागतीं हुईं आतीं और एक छोटी-सी दरार में कूद जातीं. वह विस्मय से उन्हें देखते रहे फिर उनके निकट पहुँच उन्हें देखने लगे. ये चींटियाँ अलग प्रकार की थीं. जैसे किसी बड़े पशु को दबा कर छोटा कर दिया हो. वह अपलक उन्हें देख रहे थे कि अकस्मात् उन्हें प्रतीत हुआ एक चींटी उन्हें देखकर हँसी है. वह अचरज से भर उन्हें और समीप आ देखने लगे तभी चींटियों ने उनके इर्द-गिर्द घेरा बना लिया और चक्कर काटने लगीं. उनके छोटे-छोटे हाथों में बरछी और भाले थे. उनमें से एक चींटी जो उन सबमें आकार में बड़ी थी आगे आई और कहा, ‘हमें पता है तुम कौन हो और यहाँ क्यों आये हो. उस यक्ष ने हमें भी बंधक बना रखा है. हम उसके साम्राज्य की पहरेदारी करते हैं. हम देखने में छोटी हैं परन्तु हमारे हाथ में जो हथियार है वे विष-बुझे हैं. स्पर्श मात्र से व्यक्ति सदा के लिए निद्रालीन हो जाता है. परन्तु हम जानते हैं तुम अदम्य साहस के धनी हो और अपने लक्ष्य तक पहुँच कर ही रहोगे. हम तुम्हें उस तक पहुँचने का मार्ग बता सकते हैं परन्तु प्रतिफल में हमें भी कुछ चाहिए होगा.”
“बताइए आपको क्या चाहिए?” राजकुमार ने उनसे पूछा.
“हमें अपने लिए कुछ नहीं चाहिए.. यक्ष के उद्यान में एक पोखर है. उस पोखर में जाओगे तो सौ सीढियां उतरने के पश्चात् दायीं ओर एक कोष्ठागार दिखेगा. उसके द्वार पर आग फूंकने वाले दो अजदहे पहरा दे रहे होंगे. उनके मुंह में तुम मोती भर दोगे तो वे आग उगलना बंद कर देंगे. भीतर जाओगे तो बहुत से अमूल्य वस्तुएं तुम्हें मिलेंगी. उनमें से तुम्हें एक सुई खोजनी होगी. उस सुई को यक्ष के सीने में चुभो कर उसका रक्त तुम्हें लाना होगा. उन रक्तकणों को उसके महल की सीमा पर छिड़कने से उसके द्वारा अभिमंत्रित  संसार के सारे जीव आज़ाद हो जायेंगे. कार्य समाप्ति के पश्चात् वह सुई तुम हमें दे देना. वह सुई देखने में सामान्य है परन्तु वह हमारे पूर्व-पुरुषों का गौरव है. हमने बड़े-बड़े युद्ध उस से जीते है. जाओ राजकुमार, तुम सबका कल्याण करने में सफल हो.”
“परन्तु मैं भीतर कैसे जाऊंगा?”
“राजकुमार आप मेरे एक कान में से होकर दूसरे कान से निकल जाइये. आप इन चींटियों के बिल में जाने योग्य हो जायेंगे.” परीलोक के अश्व ने कहा “मैं यहीं आपकी प्रतीक्षा करूंगा.”
राजकुमार अजय अश्व के एक कान से प्रविष्ट होकर दूसरे कान से बाहर आये तो उनका आकार चींटी जितना हो गया था. अश्व ने राजकुमार के पैर में एक काला धागा बाँध दिया और कहा, “आप भीतर जाकर यह धागा तोड़ दीजियेगा, आपका आकार पहले जितना हो जीतेगा.”
राजकुमार चींटियों के झुण्ड के साथ हो लिए. एक महीन सुरंग थी जिससे एक बार में एक ही चींटी गुज़र सकती थी. उसकी दीवारों में काई जमी थी. राजकुमार मुश्किल से पाँव जमाते हुए नीचे खिसक रहे थे. तभी सुरंग का मुंह अचानक खुल गया और वह नीचे गिर पड़े. सामने दूर-दूर तक समुद्र था. उद्यान और पोखर उन्हें कहीं नहीं दिखाई  दिए. उन्होंने पाँव में बंधा धागा खोला तो वह पहले जैसे हो गए. तभी एक बाज़ आया और बोला, “मेरा अंडा समुद्र में गिर गया है. वह ला दोगे तो आगे का मार्ग सरल हो जायेगा.”
राजकुमार झट समुद्र में कूद पड़े. समुद्र में कूदते ही पंखों वाले नाग ने उन्हें जकड लिया. राजकुमार ने अपनी तलवार से उसके पंख काट डाले तो वह धूं-धूं कर जल उठा. समुद्र का पानी काला पड़ गया और एक सफ़ेद अंडा उन्हें बीचों-बीच तैरता हुआ दिखाई दिया. उन्होंने अंडा हथेली में दबाया और किनारे पर लौट चले. उन्होंने अंडा बाज़ को पकडाया. बाज़ ने अंडे को निगल लिया और बदले में दो मोती उगले. राजकुमार ने मोती उठा लिए. बाज़ ने उन्हें अपने पंखों पर बैठने का इशारा किया. राजकुमार के बैठते ही उसने पानी के भीतर छलांग लगायी और समुद्र आकाश में परिवर्तित हो गया. कुछ देर उड़ने के पश्चात् बाज़ ने राजकुमार को एक विशालकाय उद्यान में छोड़ दिया. अब वह टहलकदमी करते हुए पोखर ढूँढने लगे. तभी दो वृक्षों के ऊपर टंगा हुआ पोखर उन्हें नज़र आया. वह पेड़ पर चढ़ कर पोखर में कूद गए. वहां उन्हें मलमल की सीढियां दिखीं. सीढ़ियों के नीचे गहरी खाई थी. जैसे ही सीढ़ी पर पैर रखते, सीढ़ी झूल जाती और वह नीचे गिरने को होते. लकिन राजकुमार ने साहस नहीं छोड़ा और आगे बढ़ते गए. सौ सीढियां तय करने के बाद उन्हें एक द्वार दिखाई दिया जिसके बाहर अजदहे पहरा दे रहे थे. उन्होंने मोती उनके मुंह में डाले तो उन्होंने आग उगलना बंद कर दिया. वह भीतर गए तो विस्मय से भर गए. इतने कीमती पत्थर, जडाऊआभूषण और मूल्यवान वस्तुएं वहां थीं जैसी उन्होंने कभी अपने राज्य में भी नहीं देखीं थीं. उन सबके बीच में सुई ढूंढना टेढ़ी खीर थी. उन्होंने सब कुछ टटोल कर देखना आरम्भ किया. कुछ नहीं मिला. उनकी दृष्टि कुछ पंखों में अटक गयी. परियों के कुचले, टूटे पंख…राजकुमार का मन भर आया. उनके आंसुओं से कमरा भर गया. भारी चीज़ें नीचे बैठ गयी. चांदी-सी चमकती सुई ऊपर तैर रही थी. राजकुमार ने सुई मुट्ठी में दबाई और यक्ष को खोजने बाहर निकल आये.
परन्तु उन्हें यक्ष को खोजना नहीं पड़ा. बाहर निकलते ही द्वार रोक कर बैठी एक विशालकाय देह से राजकुमार टकराते हुए बचे. वह यक्ष था. यक्ष ने उन्हें एक क्षण का भी अवसर दिए बिना हथेली में जकड़ा और निगल गया. यक्ष की ग्रीवा से होकर फिसलते हुए वह उनके उदर पर आ टिका. परन्तु राजकुमार ने अपना धीरज नहीं खोया. पेट क्या था..बड़ी-सी चट्टान थी. राजकुमार ने तलवार से उसका पेट फाड़ने का प्रयत्न किया परन्तु सफल नहीं हो पाए. तब उन्होंने उन चट्टानों के टुकड़े कर छोटे छोटे पत्थरों को सीढ़ियों के रूप में उसकी देह के भीतर चुन दिया. तत्पश्चात उन सीढ़ियों पर पाँव जमाते हुए ऊपर चढ़ने लगे. हृदय के निकट पहुँच सुई को रक्त में भिगोया और यक्ष की नासिका को जाने वाली नलिका का द्वार बंद कर दिया. हठात यक्ष को अपना मुँह खोलना पड़ा. उसके मुँह खोलते ही राजकुमार छलांग लगा कर बाहर आ गए. बाहर आते-आते वह स्मृति-लोप वाली जड़ी-बूटी उसके उदर में रख आये. अब बल और मंत्रसिद्धि सदा के लिए उसके मस्तिष्क से विस्मृत हो जाने वाले थे. द्वार पर रक्त की बूँदें डालते ही यक्ष का सारा साम्राज्य क्षण भर में विलीन हो गया.
राजकुमार परी को लेकर लौट आये. परियों ने उन्हें खूब सारी आशीष और उपहार दिए. उनकी अनुपस्थिति से चिंतित प्रजा उनके लौट आने पर प्रसन्न हो गयी थी. अपने राजकुमार के साहस पर वह फूली नहीं समा रही थी. प्रजा को राजकुमार अजय पर गर्व था और सबके लिए अब वह अधिक सम्माननीय हो गए थे. राज्याभिषेक के पश्चात् उन्होंने खँडहर हुए महल का जीर्णोद्धार करवाया और जब तक जीवित रहे हर पूर्णिमा परियों से मिलने जाते रहे.
उधर हिम-प्रदेश में बर्फ पर पड़ा हुआ एक सुस्त, मूढ़, व्यापक देह वाला व्यक्ति सर खुजाता हुआ सबको अब भी दीख पड़ता है.
 
      

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10 comments

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