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मुगले आज़म की अनारकली से अनारकली डिस्को चली तक

दिल्ली विश्वविद्यालय में एसोसियेट प्रोफ़ेसर लाल जी का यह लेख फ़िल्मी गीतों के बहाने एक दिलचस्प आकलन करता है- मॉडरेटर

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सार्थक कृतियां अपने भीतर अपने समय का इतिहास समेटे रहती हैं। चाहे वह गीत हो या संगीत,  चित्रकला हो या स्थापत्य कला या फिर साहित्‍य। ऐतिहासिक अन्‍तर्वस्‍तु उसमें विद्यमान रहती है। रामायण और महाभारत, काल के प्रवाह और बदलाव को व्‍यक्‍त करते हैं। इन दोनों कृतियों के अध्‍ययन से हम समय विशेष में आए परिवर्तनों को आसानी से समझ सकते हैं। सामाजिक, सांस्‍कृतिक और मान्‍यताओं में क्‍या–क्‍या परिवर्तन हुआ यह आसानी से लक्ष्‍य किया जा सकता है। रामायण काल में जो स्थितियां थीं वही महाभारत काल में नहीं रह गयी। बहुत  परिवर्तन हो चुका था। यह परिवर्तन सदियों के प्रवाह का द्योतक है। सब समय सब वस्‍तुएं, आचार, विचार, व्यवहार आदि मूल्‍यवान नहीं होते। आज से कोई चार-पांच सौ वर्ष पूर्व जिन वस्‍तुओं का, विचारों का जीवन में अत्‍यधिक मूल्‍य था, आज उसे कोई कौड़ियों के भाव नहीं पूछता।  उदाहरण मध्‍यकाल के संत कबीर से ही देखिए——

                नारी की छाहीं पडत, अन्‍धा होत भुजंग।

       कबिरा तिनकी कौन गति, जे नित नारी के संग।।

                                                —कबीर

लोकवाद का सहारा लेकर कबीर ने नारी को फसाद की जड सिद्ध किया। यानी नारी के साथ पुरूष विवेकवाद नहीं रह जाता। बाद के कवियों ने ‘देवी मॉं सहचरी प्राण’ ‘नारी तुम केवल श्रद्धा हो’ आदि कहकर स्‍त्री को गौरवान्वित किया। यदि कबीर के दृष्टिकोण से आज के विश्‍वविद्यालयों के विद्यार्थियों का मूल्‍यांकन करने लगें, क्‍या परिणाम निकलेगा। ल‍डकियॉं लडकों से आगे निकल रही हैं। दोनों साथ साथ हैं। हर स्‍थान पर दोनों को साथ देख सकते हैं। कोई भी क्षेत्र स्‍त्री से खाली नहीं है। यही है समय का प्रवाह जो सदियों बाद स्‍पष्‍ट हुआ हैं। समय प्रवाह में चीजें बदलती रहती हैं, पर स्‍पष्‍ट देर से होती हैं।

 भारतीय सिने जगत के दो गीत समय और सोच में आए बदलाओं को बखूबी बयान कर रहे हैं। यह ऐसे गीत हैं जो घोषणात्‍मक मुद्रा में कहे गए हैं। हालांकि इस प्रकार के गीत कम ही हैं। व्‍यक्तिगत अंदाज में अल्‍फाजों को बयान करने की यह मुद्रा बेपरवाही और निडरता को दर्शाती है। यही इसकी ताकत है। फिल्‍म मुगले आजम में जब अनारकली कहती है—–

                 प्‍यार किया कोई चोरी नहीं की, छुप छुप के आहें भरना क्‍या।

                 जब प्‍यार किया तो डरना क्‍या।

                                            —–फिल्‍म मुगले आजम

अनारकली का यह बयान सत्‍ता यानी स्‍टेट को सीधे-सीधे चुनौती है। स्‍टेट समाजिक नियमों एवं राजसी मर्यादाओं की दुहाई देते हुए सलीम को पहले ही कह चुका है  ‘’सलीम तुझे अनारकली नहीं मिल सकती, तुझे अनारकली को भूलना  होगा’’ इस कथन के पीछे  वह मर्यादाएं, परम्‍पराएं, वह नियम है जो अनारकली को सलीम से अलग करते हैं। दूसरी ओर अनारकली है, सलीम है जो मर्यादाओं, परम्‍पराओं को नकार कर नए नियमों की रचना कर अपने लिए स्‍पेस बना रहे हैं। युवा पीढी ने भी मुगलिए फरमान के विरूद्ध खाप पंचायतों को नकारकर मौत को गले लगाया है। आज युवा पीढी के लिए एक स्‍पेस बनता हुआ दिखायी दे रहा है। अनारकली का प्रेम दीपक के समान जल रहा है। जिसका प्रकाश दूर दूर तक फैला है। नयी पीढी ने इसकी रोशनी में अपने रास्‍ते तलाशते हुए, समाजिक बंधनों पर प्रहार कर नया माहौल बनाया है।

 उस दौर में पतंगे की तरह प्रेम एक निष्‍ठता में बंधा हुआ है। पतंगा लौ के प्रेम बस अपना जीवन गँवा बैठता है। भौंरा फूल के रस बस रात भर उसके क्रोड में बन्‍द रहता है। जिससे प्रेम किया, बस प्रेम किया। उस दौर में प्रेम उत्‍सर्ग है, चालबाजी-चालाकी नहीं। रीति कवियों ने कहा—‘’अति सूधो स्‍नेह को मारग है जहां नैकु सयांपन बॉंक नहीं’’ इसके साथ ही प्रेम की कठिनाइयों की ओर भी इशारा किया—‘’प्रेम को पंथ कराल महा, तलवार की धार पे धावनों हैं।‘’ यह दोनों स्‍थियां अनारकली और सलीम के प्रेम में देखे जा सकते हैं। यहां प्रेम उत्‍सर्ग की गली से होकर गुजरता है। जहां जल जाना, भस्म हो जाना, फना हो जाना है। प्रसाद ने भी कहा—‘इस अर्पण में कुछ और नहीं, केवल उत्‍सर्ग झलकता है।’ और अनारकली दीवार में चुनवा दी जाती है।

पर आज के दौर और दौड़ की दिशा ही अलग है। पिछले जमाने का आज के जमाने का फर्क यही है, दिशाएं और दृष्टि सोच और आस्‍था सभी कुछ बदल गए हैं। कहां अनाकली अपने प्रेम और प्रेमी के लिए  दीवार में चुनवाना स्‍वीकार कर लेती है। वह हार नहीं मानती टस से मस नहीं होती। शहंशाह अकबरे आजम ने बहुत प्रलोभन दिया। बहुत समझाया-बहुत मनाया पर अनारकली नहीं मानी, अपने प्रेम पर दाग न लगने दिया। अनारकली प्रेम की ‘प्रतीक’ बन गयी। वहीं आज की अनारकली के अजीव-अजब निराले बयान है। वह सरे आम कह रही है ‘’छोड छाड के अपने सलीम की गली, अनारकली डिस्‍को चली’’ उसने घोषणा की, कि प्रेम की पीर में वह आनन्‍द कहां। आनंद तो डिस्‍को में है। जहां नशा है,मजा है, आनन्‍द है। यह घोषणा समय के अन्‍तराल और बदले हुए जमाने के नजरिए का अंतर है .यह दो गीत दो युगो की कहानी कह रहे हैं। आज की अनारकली केवल डिस्‍को ही जाने की बात ही नहीं कह रही है बल्कि परत दर परत अपने अन्‍तस तल को खोलती है जब वह कहती है ‘’अरे देख के तुझको मुझको मची रे खलबली’’ वह समाज के नजरिए और होने वाली उन हलचलों की और इशारा करती है।जो बडो बुजुर्गो की बीच होती है। प्रेम अब छुपा हुआ नहीं है। आप सभी जानते हैं। पार्को, मेटा स्‍टेशनों,और मॅाल आदि के मध्‍य हाथ में हाथ डाले इसे देख सकते हैं। खलबली हलचल इन चित्रों से है। खुल्‍लम खुल्‍ला से है। ऐसा नहीं है कि आज की अनारकली इतिहास से अन्‍जान है। वह अपने आपको इतिहास से जोडती हुई कहती है——–

                           एक सितमगर ने मुझको

                           दीवारों में चुनवाया आ….

                           मेरे दिल के घडकन पे

                           लाख पहरे लगवाया आ आ……  फिल्‍म ग्रेन्‍ड मस्‍ती-2

 वह सितमगर कौन है जिसने अनारकली को दीवार में चुनवाया-जाहिर सी बात है वह अकबरे आजम हैं। यह अकबरे आजम अनारकली व सलीम के प्रेम के बीच जालिम वहसी की तरह ही  हैं। जिसने उनपर तरह तरह के जुल्‍म ढाए। यहीं पर आज की अनारकली अपने आपको बीते इतिहास से जोडती हुई, प्रेम पर होने वाले उन तमाम जुल्‍मो को बयान करती है। जाहिर है उस दौर में प्रेम के लिए समाज में कोई स्‍थान नहीं था। वर्ना रॉंझा ‘’ये दुनियॉं ये महफिल मेरे काम की नहीं’’ कहता हुआ, फकीरी हालत में न घूमता। अनारकली-सलीम के संदर्भ में अकबरे आजम जालिम वहशी ही लगते हैं। ऐसे जुल्‍मों से आज की अनारकली विरोध जताती है और आजादी की मांग करती है।——-

                               मुझको प्‍यारी आजादी

                               कैद में अब नहीं रहना

                               जुल्‍म जालिम वहसी का

                               अब न मुझको है सहना…………. फिल्‍म ग्रेन्‍ड मस्‍ती-2

                            पुरूषों द्वारा बनाए उन सभी वृत्‍तों से अनारकली आजादी की चाहत रखती है।ख्‍याल विचार की पहली सीढी है। जिस पर चढकर व्‍यक्ति दूसरे छोर पर पहुँचता है।आज की अनारकली पुरूषों द्वारा बनाए सभी बंधनों को तोड डालना चाहती है।न वह जुल्‍म सहेगी न ही कैद में रहेगी। वह बिंदास हो धूमने और झूमने की बात करती है। वह क्‍लासिकल नहीं, हिप –हॉप सीख रही है।——

                         मुझको हिप हॉप सिखा दे

                         बीट को टॉंप करा दे

                         थोडा सा टॉंन्‍स बजादे

                         मुझको इक चांस दिला दे

                         मैं घूम लूँन, मैं झूम लूं

                         मैं झूँम लूं…..          —–फिल्‍म ग्रेन्‍ड मस्‍ती-2

              हिप-होप मॉडर्न डॉंस की एक विधा है जिसमें व्‍यक्ति ट्रांस के साथ झूमता है। ‘मैं घूम लूँ, मैं झूँम लूँ’ में स्‍त्री सामंती मूल्‍यों से स्‍वतन्‍त्रता की घोषणा करती है। यह स्‍त्री का अगला कदम है। पहले चरण में वह ‘प्‍यार’ को स्‍वीकृति प्रदान करती है ‘आज कहेंगे दिल का फसाना, जान भी लेले चाहे जमाना’ –और जमाना अनारकली की जान ले लेता है। अनारकली की शहादत बेकार गयी यह कैसे कह सकता हूँ।

 
      

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