हिंदी पत्रकारिता में दक्षिणपंथ की सबसे बौद्धिक आवाज़ों में एक अनंत विजय की किताब ‘मार्क्सवाद का अर्धसत्य’ ऐसे दौर में प्रकाशित हुई है जब 2019 के लोकसभा चुनावों में वामपंथी दलों की बहुत बुरी हार हुई है, वामपंथ के दो सबसे पुराने गढ़ केरल और पश्चिम बंगाल लगभग ढह चुके …
Read More »क्या हिंदी अदालतों के कामकाज की भाषा बनने जा रही है?
अनन्त विजय विचारोत्तेजक लेख लिखते हैं, हिंदी की भावना, संवेदनाओं को जगा देते हैं. यह लेख बहुत अच्छी तरह से इस बात को सामने रखता है कि अदालतों का कामकाज देशी भाषाओं में हो इसके लिए क्या प्रयास हुए हैं और हाल में किस कारण से ऐसा लग रहा है …
Read More »‘मुक्तांगन’ में ‘राम’ से शाम तक
वसंत के मौसम के लिहाज से वह एक ठंढा दिन था लेकिन ‘मुक्तांगन’ में बहसों, चर्चाओं, कहानियों, शायरी और सबसे बढ़कर वहां मौजूद लोगों की आत्मीयता ने 29 जनवरी के उस दिन को यादगार बना दिया. सुबह शुरू हुई राम के नाम से और शाम होते होते दो ऐसे शायरों …
Read More »बुरा न मानो होली है
चनका के रंग में होली की भंग आज कल हिंदी में युवा काल चल रहा है. जाने किसकी पंक्ति याद आ रही है- उस दौर में होना तो बड़ी बात थी लेकिन युवा होना तो स्वर्गिक था. मेरे एक अग्रज मित्र मुझे ‘वरिष्ठ युवा’ कहते हैं. अब वरिष्ठ युवा होने …
Read More »सेल्फी के जमाने में ‘बॉलीवुड सेल्फी’
जब से फिल्म समीक्षक पी.आर. एजेंसी के एजेंट्स की तरह फिल्मों की समीक्षा कम उनका प्रचार अधिक करने लगे हैं तब से सिनेमा के शैदाइयों के फिल्म विषयक लेखन की विश्वसनीयता बढ़ी है. मुझे दिलीप कुमार पर लार्ड मेघनाथ देसाई की किताब अधिक विश्वसनीय लगती है या राजेश खन्ना की …
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