जिस अखबार, जिस मैगजीन को उठाइए उसमें कुछ चुनिन्दा प्रकाशकों की किताबों के बारे में ही चर्चा होती है। एक तो मीडिया में साहित्य का स्पेस सिमटता जा रहा है, दूसरे उस सिमटते स्पेस में भी चर्चा कुछ ‘ख़ास’ ठप्पों वाली किताबों तक सिमटती जा रही है। नतीजा यह होता …
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