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Tag Archives: प्रभात रंजन

प्रेम नश्वर को अनश्वर में बदल देता है

‘कादम्बिनी’ का फ़रवरी अंक प्रेम अंक है। इसमें मेरा भी एक लेख प्रकाशित हुआ है। ‘कादम्बिनी’ से साभार पढ़िए- प्रभात रंजन  =================== प्रेम: मौन से मुखर तक प्रभात रंजन कथा साहित्य में प्रेम हमेशा एक रूपक की तरह आया है। विश्व की श्रेष्ठ मानी जाने वाली प्रेम कहानियों में रोमियो …

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महात्मा गांधी के बारह दूत

रामचंद्र गुहा के इस लेख का अनुवाद ‘हंस’ के नए अंक में प्रकाशित हुआ है। अनुवाद मैंने किया है- प्रभात रंजन ================================= कई साल पहले जब मैं नेहरू स्मृति संग्रहालय एवं पुस्तकालय में काम कर रहा था तो मुझे किसी अज्ञात तमिल व्यक्ति का पोस्टकार्ड मिला जो उसने महान भारतीय …

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सत्य और गल्प की गोधूलि का लेखक शरतचन्द्र

कई साल पहले प्रकाश के रे जी के कहने पर महान लेखक शरतचन्द्र पर यह लेख लिखा था।आज उनकी जयंती पर याद आ गया- प्रभात रंजन ======================================== शरतचन्द्र जिस दौर में लिख रहे थे तब साहित्य, राजनीति हर तरफ सुधार, उद्धार, आदर्शों की चर्चा रहती थी. उसी युग में शरतचंद्र …

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क्या हिंदी, हिंदी ढंग की हो गई है?

दिल्ली विश्वविद्यालय में हिंदी पढ़ने से लेकर पढ़ाने तक के अनुभवों को लेकर एक लेख कल दैनिक जागरण में प्रकाशित हुआ। तीस साल पहले कंप्लीट अंग्रेज़ीदां माहौल में दिल्ली विश्वविद्यालय कैंपस में हिंदी के विद्यार्थियों के लिए परीक्षा पास होने से बड़ी चुनौती अंग्रेजियत की परीक्षा पास होने की होती …

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‘क्या अब भी प्यार है मुझसे?’ का एक अंश

अंग्रेज़ी के लोकप्रिय लेखक रविंदर सिंह अपने हर उपन्यास में समाज की किसी समस्या को उठाते हैं और उसी के बीच उनकी प्रेम कहानी चलती है। उनके उपन्यास ‘will you still love me?’ में सड़क दुर्घटना को विषय बनाया गया है ताकि युवाओं में सड़क दुर्घटनाओं को लेकर जागरूकता पैदा …

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कृष्णा सोबती उनकी जीजी थीं

हंस पत्रिका का अप्रैल अंक कृष्णा सोबती की स्मृति को समर्पित था, जिसका सम्पादन अशोक वाजपेयी जी ने किया है। इस अंक में कृष्णा जी को याद करते हुए उनकी भतीजी ने एक आत्मीय संस्मरण लिखा है जिसका अंग्रेज़ी से अनुवाद मैंने किया है। आपने न पढ़ा तो तो पढ़िएगा- …

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‘पालतू बोहेमियन’ के लेखक के नाम वरिष्ठ लेखक सुरेन्द्र मोहन पाठक का पत्र

वरिष्ठ लेखक सुरेन्द्र मोहन पाठक जी ने मेरी किताब ‘पालतू बोहेमियन’ पढ़कर मुझे एक पत्र लिखा है। यह मेरे लिए गर्व की बात है और इस किताब की क़िस्मत भी कि पाठक जी ने ने केवल पढ़ने का समय निकाला बल्कि पढ़ने के बाद अपनी बहुमूल्य राय भी ज़ाहिर की। …

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मार्केज़ का जादू मार्केज़ का यथार्थ

जानकी पुल पर कभी मेरी किसी किताब पर कभी कुछ नहीं शाया हुआ. लेकिन यह अपवाद है. प्रवासी युवा लेखिका पूनम दुबे ने मेरी बरसों पुरानी किताब ‘मार्केज़: जादुई यथार्थ का जादूगर’ पर इतना अच्छा लिखा है साझा करने का लोभ संवरण नहीं कर सका- प्रभात रंजन =============================================== कुछ महीने …

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राजकमल प्रकाशन के सत्तर साल और भविष्य की आवाजें

राजकमल प्रकाशन के सत्तरवें साल के आयोजन के आमंत्रण पत्र पर सात युवा चेहरों को एक साथ देखना मुझे हिंदी साहित्यिक हलके की एक बड़ी घटना की तरह लगती है. राजकमल प्रकाशन ने एक तरह से हिंदी के कैनन निर्माण में भूमिका निभाई है. निस्संदेह राजकमल हिंदी की प्रगतिशील मुख्यधारा …

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‘रंगभूमि’ का रंग और उसकी भूमि

प्रेमचंद का साहित्य जब से कॉपीराईट मुक्त हुआ है तब से उनकी कहानियों-उपन्यासों के इतने प्रकाशनों से इतने आकार-प्रकार के संस्करण छपे हैं कि कौन सा पाठ सही है कौन सा गलत इसको तय कर पाना मुश्किल हो गया है. बहरहाल, मुझे उनका सबसे प्रासंगिक उपन्यास ‘रंगभूमि’ लगता है. इतना …

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