तुमने खेल-खेल में मेरा बनाया बालू का घर तोड़ दिया था, तुम इस बार फिर से बनाओ, मैं इस बार नहीं तोड़ूँगी। ग़लती थी मेरी, मैंने तोड़े थे। मैं तुम बनती जा रही थी। तुम धूप ही रहो, मैं छाँव ही रहूँ। तुम कठोर ही रहो, मैं कोमल ही रहूँ। …
Read More »बाबुषा की कुछ नई कविताएँ
जानकी पुल आज से अपने नए रूप में औपचारिक रूप से काम करने लगा है. पिछले कई महीने से मेरे युवा साथी निशांत सिंह इसे नया रूप देने के काम में लगे थे. बहुत मेहनत का काम इसलिए था क्योंकि ब्लॉगस्पॉट से इस नए मंच पर पिछली सारी सामग्री डालने …
Read More »बाबुषा की कविताएं
इस साल बाबुषा के कविता संग्रह ‘प्रेम गिलहरी दिल अखरोट’ ने सबका ध्यान खींचा. इस साल की अंतिम कविताएं बाबुषा की. जानकी पुल के पाठकों के लिए ख़ास तौर पर। 1. भाषा में विष जिन की भाषा में विष था उनके भीतर कितना दुःख था दुखों के पीछे अपेक्षाएँ थीं …
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