रामचंद्र गुहा के इस लेख का अनुवाद ‘हंस’ के नए अंक में प्रकाशित हुआ है। अनुवाद मैंने किया है- प्रभात रंजन ================================= कई साल पहले जब मैं नेहरू स्मृति संग्रहालय एवं पुस्तकालय में काम कर रहा था तो मुझे किसी अज्ञात तमिल व्यक्ति का पोस्टकार्ड मिला जो उसने महान भारतीय …
Read More »मार तमाम के दौर में ‘कहीं कुछ नहीं’
मैंने अपनी पीढ़ी के सबसे मौलिक कथाकार शशिभूषण द्विवेदी के कहानी संग्रह ‘कहीं कुछ नहीं’ की समीक्षा ‘हंस’ पत्रिका में की है। राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित इस संग्रह की समीक्षा हंस के नए अंक में प्रकाशित हुई है। जिन्होंने न पढ़ी हो उनके लिए- प्रभात रंजन सन 2000 के बाद …
Read More »कृष्णा सोबती उनकी जीजी थीं
हंस पत्रिका का अप्रैल अंक कृष्णा सोबती की स्मृति को समर्पित था, जिसका सम्पादन अशोक वाजपेयी जी ने किया है। इस अंक में कृष्णा जी को याद करते हुए उनकी भतीजी ने एक आत्मीय संस्मरण लिखा है जिसका अंग्रेज़ी से अनुवाद मैंने किया है। आपने न पढ़ा तो तो पढ़िएगा- …
Read More »२५ बरस का हंस
मदन मोहन झा सर एक दिन घर के अन्दरवाले कमरे से एक पत्रिका निकाल कर लाए. देते हुए कहा था, इसे पढ़ना साहित्य के संस्कार आयेंगे. बात सन ८६ की है. उसी साल मैंने मैट्रिक की परीक्षा पास की थी. उसी की कहानियों को पढते हुए मैंने कथाकार बनने के …
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