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मुक्तिबोध अचानक क्यों लोकप्रिय हो उठे?

आज हिंदी के युगांतकारी कवि मुक्तिबोध की 50 वीं पुण्यतिथि है. आज उनको याद करते हुए प्रसिद्ध आलोचक, राजनीतिक विश्लेषक, ‘आलोचना‘ पत्रिका के संपादक प्रोफ़ेसर अपूर्वानंद ने ‘जनसत्ता‘ और ‘इन्डियन एक्सप्रेस‘ में दो बहुत अच्छे लेख लिखे हैं, मुक्तिबोध की कविता, उनके विचारों और उनकी प्रासंगिकता को लेकर उन्होंने कुछ बहसतलब …

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प्रेमचंद की परंपरा से क्या तात्पर्य है?

विद्वान् लेखक अपूर्वानंद ने हाल में संपन्न हुई ‘हंस’ की सालाना गोष्ठी और उसमें शामिल न होने को लेकर प्रसिद्ध राजनीतिक कार्यकर्ता एवं कवि वरवर राव के बयान को लेकर अपने इस लेख में कुछ गंभीर सवाल उठाये हैं. उनके ऊपर बहस होनी चाहिए तथा उनके जवाब भी ढूंढे जाने …

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नाटक नहीं होना था, नाटक हुआ

२०१३ के रंग महोत्सव में मंटो की जिंदगी पर आधारित ‘अजोका’ की प्रस्तुति के न होने को लेकर प्रसिद्ध लेखक अपूर्वानंद ने कुछ गंभीर सवाल उठाये हैं और सामूहिक प्रयासों से उसके अक्षरा थियेटर में आयोजित किए जाने के बारे में लिखा. यह महत्वपूर्ण लेख आज ‘जनसत्ता’ में प्रकाशित हुआ …

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