मेरा मन था कि बाबुषा पर कुछ अलग से लिखूं . उसे पढ़ना एक ऐसे कीमियागर के पास बैठना है,जो दुःख की मिट्टी उठाता है तो टीस के सारे मुहाने खुल जाते हैं और सुख यहाँ इस तरह आता है जैसे अप्रत्याशित घटना -कि आप चकित हैं और चकित हैं …
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