किताब लिखने का अधिकार सबको है, उनको पढने न पढने का अधिकार भी हमारा है. राजेश रंजन @ पप्पू यादव की आत्मकथा ‘द्रोहकाल का पथिक’कोई साहित्यिक कृति नहीं है, लेकिन 90 के दशक के बाद की राजनीति से उभरे एक नेता की आत्मकथा है. विमोचन के एक दिन पहले से …
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