आज प्रस्तुत हैं निज़ार क़ब्बानी की पाँच कविताएँ, जिनका बहुत अच्छा अनुवाद किया है सिद्धेश्वर सिंह ने- जानकी पुल. ०१–टेलीफोन टेलीफोन जब भी घनघनाता है मेरे घर में मैं दौड़ पड़ता हूँ एक बालक की तरह अत्यंत उछाह में भरकर। मैं आलिंगन में भर लेता हूँ स्पंदनहीन यंत्र को सहलाता हूँ …
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