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पहले प्रेम की दारुण मनोहारी वेदना का आख्यान : ‘कॉल मी बाई योर नेम’ और ‘कोबाल्ट ब्लू’

हाल में आई फ़िल्म ‘कोबाल्ट ब्लू’ और तक़रीबन पाँच साल पुरानी फ़िल्म ‘कॉल मी बाई योर नेम’ पर यह टिप्पणी युवा लेखिका और बेहद संवेदनशील फ़िल्म समीक्षक सुदीप्ति ने लिखी है। सुदीप्ति फ़िल्मों पर शानदार लिखती हैं लेकिन शिकायत यह है कि कम लिखती हैं। फ़िलहाल यह टिप्पणी पढ़िए- =================== …

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किताबों और फिल्मों में कुछ शास्त्रीय और शाश्वत होते हैं, कुछ वक़्ती!

हिंदी में लोकप्रिय और गम्भीर साहित्य की बहस बहुत पुरानी रही है। इसी को अपने इस लेख में रेखांकित किया है युवा लेखिका सुदीप्ति ने। उन्होंने अनेक उदाहरणों के साथ अपनी बात रखी है, जो सोच-विचार और बहस की माँग करती है। इस विषय पर आपके विचार भी आमंत्रित हैं। फ़िलहाल …

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सुंदरता का दारुण दुख: इज लव एनफ सर?

आजकल फ़िल्म देखने के इतने माध्यम हो गए हैं कि कई बार अच्छी फ़िल्मों का पता ही नहीं चलता। ‘इज लव एनफ सर’ भी एक ऐसी ही फ़िल्म है। नेटफ़्लिक्स पर मौजूद इस फ़िल्म के बारे में मुझे पता भी नहीं चला होता अगर सुदीप्ति की लिखी यह टीप नहीं …

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एटरनल सनशाइन ऑफ़ द स्पॉटलेस माइंड: स्मृति वन में भटकते मन की कथा-फ़िल्म

सुदीप्ति जब फ़िल्मों पर लिखती हैं तो वह इतना परिपूर्ण होता है कि अपने आपमें स्वतंत्र कलाकृति के समान लगता है। जैसे ‘एटरनल सनशाइन ऑफ़ द स्पॉटलेस माइंड’ पर लिखते हुए मानव जीवन में स्मृतियों के महत्व के ऊपर एक सुंदर टिप्पणी की है। इसको पढ़ने के बाद आपको फ़िल्म …

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इस वसंत को शरद से मानो गहरा प्रेम हो गया है

कृष्ण बलदेव वैद को पढ़ा सबने समझा किसने? शायद उन्होंने भी नहीं जो उनको समझने का सबसे अधिक दावा करते रहे। मुझे लगता है सबसे अधिक उनको उस युवा पीढ़ी ने अपने क़रीब पाया जो उनके अस्सी पार होने के आसपास उनका पाठक बना। युवा लेखिका सुदीप्ति के इस लिखे …

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‘तमाशा’ प्रेम की कहानी है या रोमांस की

तीन साल पहले आज के ही दिन इम्तियाज़ अली की फिल्म ‘तमाशा’ पर युवा लेखिका सुदीप्ति ने यह लेख लिखा था. तमाशा इम्तियाज़ की शायद सर्वश्रेष्ठ फिल्म है. प्यार और रोमांस के दर्शन की ओर ले जाने वाली फिल्म. खैर, कुछ दिन पहले इम्तियाज़ ने भी इस रिव्यू को पढ़कर …

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सैराट: दृश्यों में गुंथे रक्त डूबे सवाल

‘सैराट’ फिल्म जब से आई है उस पर कई लेख पढ़ चुका, लेकिन फिल्म नहीं देखी थी. सुदीप्ति के इस लेख को पढने के बाद  लगता है कि फिल्म देखने की अब जरूरत नहीं है. हिंदी में इतनी सूक्ष्मता और इतनी संलग्नता से फिल्म पर कम ही लोग लिखते हैं. …

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एक फिल्म रसिक की डायरी के कुछ अनुच्छेद

सिनेमा अन्ततः दृश्यों के माध्यम से कहानी कहने की कला है. अपनी पसंद के कुछ सिने-दृश्यों के माध्यम से युवा लेखिका सुदीप्ति ने एक अच्छा लेख लिखा है. एक बार फिर सिनेमा पर उनका एक पठनीय लेख- मॉडरेटर. ====== यह एक फिल्म समीक्षक की नहीं, फिल्म की एक रसिया की …

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भारतीय स्त्री-जीवन को आईना दिखाती फिल्में ‘हाईवे’ और ‘क्वीन’

युवा लेखिका सुदीप्ति कम लिखती हैं लेकिन खूब लिखती हैं. हम पाठकों को उनका ‘लंचबॉक्स’ फिल्म पर लिखा लेख अभी तक याद है. आज उन्होंने हाल में आई दो फिल्मों ‘हाइवे’ और ‘क्वीन’ पर लिखा है. इतना ही कह सकता हूँ कि आज मैं ‘हाइवे’ फिल्म देखने जा रहा हूँ, …

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संवाद और संवेदना की रेसिपी और लंचबॉक्स

यह सिर्फ ‘लंचबॉक्स‘ फिल्म की समीक्षा नहीं है. उसके बहाने समकालीन मनुष्य के एकांत को समझने का एक प्रयास भी है. युवा लेखिका सुदीप्ति ने इस फिल्म की संवेदना को समकालीन जीवन के उलझे हुए तारों से जोड़ने का बहुत सुन्दर प्रयास किया है. आपके लिए- जानकी पुल. =========================================== पहली …

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