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Tag Archives: vani prakashan

राकेश तिवारी के उपन्यास ‘राम सिंह फ़रार’ का एक अंश

वरिष्ठ लेखक राकेश तिवारी के नए उपन्यास ‘राम सिंह फ़रार’ का अंश पढ़िए। राकेश तिवारी के गद्य को पढ़ने का अपना आनंद है। वाणी प्रकाशन से प्रकाशित इस उपन्यास को पढ़ने का अपना ही सुख है- =================== भवान सिंह और गंगा देवी के बार-बार फ़ोन आ रहे थे— चपेड़ लगाई …

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मौत के साये में जीवन कथा

आशुतोष भारद्वाज की पुस्तक ‘मृत्यु कथा’ पर यह टिप्पणी लिखी है दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय की शोधार्थी अनु रंजनी ने। बस्तर में चल रहे संघर्ष को लेकर यह अपने ढंग की अकेली किताब है। हम दूर बैठे लोगों को वह जीवन बहुत करीब से दिखाती है जिसको हम नक्सल समस्या …

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कठिन विषय का बेहतर निर्वाह

देवेश पथ सारिया उन कुछ युवा कवियों में हैं जो अच्छा गद्य भी लिखते हैं। ख़ासकर आलोचनात्मक गद्य। यह टिप्पणी उन्होंने युवा लेखिका अणुशक्ति सिंह के उपन्यास ‘शर्मिष्ठा’ के ऑडियो बुक को सुनकर लिखी है। वाणी प्रकाशन से प्रकाशित यह उपन्यास ऑडियो बुक में स्टोरीटेल पर उपलब्ध है। आप युवा …

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एक मस्तमौला की जीवन कथा ‘अंदाज़-ए-बयां उर्फ रवि कथा’

युवा लेखकों को पढ़ने से उत्साह बढ़ता है। वैसे युवा लेखकों को पढ़ने से और भी जो अपनी परम्परा से जुड़ना चाहते हैं, उसको समझना चाहते हैं। युवा कवि देवेश पथ सारिया ने ममता कालिया की किताब ‘अंदाज़े-बयाँ उर्फ़ रवि कथा’ पर जो लिखा है उसको पढ़कर याहि अहसास हुआ। …

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प्रवीण झा और उनकी किताब ‘कुली लाइंस’

‘कुली लाइंस’ पढ़ते हुए मैं कई बार भावुक हो गया। फ़ीजी, गुयाना, मौरिशस, सूरीनाम, नीदरलैंड, मलेशिया, दक्षिण अफ़्रीका, युगांडा, जमैका आदि देशों में जाने वाले गिरमिटिया जहाजियों की कहानी पढ़ते पढ़ते गले में काँटे सा कुछ अटकने लगता था। इसीलिए एक साँस में किताब नहीं पढ़ पाया। ठहर-ठहर कर पढ़ना …

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‘एक सेक्स मरीज़ का रोगनामचा: सेक्स ज़्यादा अश्लील है या कला जगत’ की समीक्षा

प्रसिद्ध कला एवं फिल्म समीक्षक विनोद भारद्वाज ने कला जगत को लेकर दो उपन्यास पहले लिखे थे. हाल में ही उनका तीसरा उपन्यास आया है ‘एक सेक्स मरीज़ का रोगनामचा: सेक्स ज़्यादा अश्लील है या कला जगत’, इस उपन्यास की समीक्षा इण्डिया टुडे के नए अंक में प्रकाशित हुई है …

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गगन गिल के नए कविता संग्रह से पांच कविताएँ

गगन गिल ने एक दौर में हिंदी कविता को नया मुहावरा दिया. दुःख की नई आवाज पैदा की. ऐसी आवाज जिसमें निजी-सार्वजनिक सब एकमेक हो जाते हैं. यह ख़ुशी का विषय है कि तकरीबन 14 साल बाद उनका नया कविता संग्रह प्रकाशित हुआ है ‘मैं जब तक आई बाहर’. यह …

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एक लगभग अलक्षित चली गई किताब के बारे में कुछ जरूरी बातें

2016 में सिनेमा, मीडिया की भाषा पर एक ठोस किताब आई ‘मीडिया की भाषा लीला’. इतिहासकार रविकांत की इस किताब पर किसी प्रोमो राइटर ने लिखा, इसको कहीं कोई पुरस्कार नहीं मिला. लेकिन बरसों तक सन्दर्भ पुस्तक के रूप में इसको संदर्भित किया जायेगा. इसके गहरे शोध और इसमें व्यक्त …

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‘छोटी-छोटी गौवें, छोटे-छोटे ग्वाल, छोटे से हमरे मदन गोपाल’

राकेश तिवारी का उपन्यास आया है ‘फसक‘. कुमाऊँनी में फसक का मतलब गप्प होता है. हजारी प्रसाद द्विवेदी गल्प यानी उपन्यास को गप्प मानते थे. उपन्यास का एक रोचक अंश. प्रसंग गौ-कथा सुनने का है. यह उपन्यास वाणी प्रकाशन से प्रकाशित हुआ है- मॉडरेटर ================================= नन्नू महराज के आश्रम में …

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धर्मपाल की किताब ‘गौ-वध और अंग्रेज’ का एक अंश

गाय को लेकर इस गर्म माहौल में मुझे प्रसिद्ध गांधीवादी चिन्तक धर्मपाल की किताब ‘गौ वध और अंग्रेज’ की याद आई. जिसका प्रकाशन वाणी प्रकाशन द्वारा किया गया था. इस पुस्तक में धर्मपाल जी ने अंग्रेज सरकार के प्रामाणिक दस्तावेजों के आधार पर यह दिखाया था कि किस तरह भारत …

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