फिल्मकार शक्ति सामंत पर यह दिलचस्प लेख दिलनवाज़ ने लिखा है. जब वे हिंदी सिनेमा और गीत-संगीत पर लिखते हैं तो एक अलग ही अंदाज़ होता है, हमेशा कुछ अलक्षित जानकारियां लेकर आते हैं. इस लेख को पढते हुए भी ऐसा ही लगेगा- जानकी पुल.
हिन्दी एवं बांग्ला फ़िल्मो के सुपरिचित निर्माता-निर्देशक शक्ति सामंत का
जन्म वर्धमान (पश्चिम बंगाल) मे हुआ, परिवार ने प्रारंभिक शिक्षा हेतु
उन्हे देहरादून भेजा | पढाई पूरी कर वापस कलकत्ता (कोलकाता) लौटे और
कलकत्ता विश्वविद्यालय के ‘कला संकाय’ मे दाखिला लिया, शक्ति दा मे अपनी
मातृभाषा ‘बांग्ला’ के साथ-साथ अन्य भाषाओं को सीखने का रुझान स्कूल के
दिनो से था | शिक्षा ग्रहण करने के क्रम मे उर्दु और हिन्दी को दक्षता से
सीखने का अवसर मिला| हिन्दी-उर्दू के ज्ञान ने उन्हे भविष्य मे ‘बेहतरीन’
सिनेमा स्थापित करने मे सहयोग दिया ,विशेषकर फ़िल्म के संवाद तथा गीतों को
संवारने मे यह जानकारी बडी उपयोगी रही |
हज़ारो युवाओं की तरह फ़िल्मो मे ‘हीरो’ बनने के सपना आंखों मे लिए युवा
शक्ति सामंत मायानगरी मुंबई चले आए । फ़िल्मो मे काम मिलने की प्रक्रिया
सोच के मुताबिक नही होती, अपने हिस्से का कठिन संघर्ष हर किसी को काटना
होता है | शक्ति दा का संघर्ष ‘उर्दू शिक्षक’ के रुप मे शुरु हुआ,
उन्होने हिम्मत नही हारी । फ़िल्मो मे अपनी विशेष रुचि को समय देते हुए
शक्ति दा अक्सर ‘बाम्बे टाकीज़’ स्टुडियो जाया करते, यहीं उनकी मुलाकात
जाने-माने अभिनेता अशोक कुमार से हुई । अशोक कुमार ने उन्हे ‘अभिनेता’
बनने की चाहत को ‘त्याग’ कर निर्देशन में रुचि बनाने का मशवरा दिया ।
दादा मुनी की सलाह को गले लगाते हुए ‘निर्देशन’ सीखने का संकल्प लिया,
सुपरिचित फ़िल्मकार फ़णि मजूमदार, ज्ञान मुखर्जी के ‘सहायक’ के रुप मे
सिने कैरियर का आगाज़ किया । समय के साथ फ़िल्म विधा का ज्ञान प्राप्त कर
‘बहू’ (1954) का निर्देशन किया , यह शक्ति सामंत द्वारा ‘निर्देशित’ पहली
फ़िल्म मानी जाती है । शक्ति दा बांग्ला व हिन्दी मे सक्रिय रहे, कुछ
यादगार फ़िल्मे द्विभाषी थी : अमानुष (उत्तम कुमार), आनंद आश्रम (उत्तम
कुमार) के बारे मे सभी जानते हैं ।
शक्ति सामंता ने सन 1956 मे ‘शक्ति फ़िल्मस’ की स्थापना करते हुए इस
बैनर तले अनेक यादगार फ़िल्मो का निर्माण किया। हिन्दी सिनेमा का स्वर्णिम
युग मे शक्ति दा की फ़िल्मो का उल्लेख किया जा सकता है, उनका यह विश्वास
रहा कि ‘कथा’, ‘गीत-संगीत’ और ‘रुमानियत’ का फ़लसफ़ा किसी फ़िल्म को हिट
कराने मे महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। स्वर्ण युग की अनेक फ़िल्मो के
सफ़ल होने मे यह अवधारणा काम कर गई ,कैरियर के चरम मे रुमानियत ‘शक्ति
फ़िल्मस’ की पहचान रही । इस समय तक शक्ति सामंत का नाम बिमल राय एवं
रिषीकेश मुखर्जी के साथ सम्मान से लिया जाने लगा।
बतौर निर्माता-निर्देशक शक्ति सामंत की पहली फ़िल्म ‘हावडा ब्रिज’ थी
।फ़िल्म मे अशोक कुमार, मधुबाला तथा के एन सिंह जैसे कलाकारो, यादगार
गीतों ,बेहतरीन कहानी और सुंदर निर्देशन का उम्दा समन्वय था । फ़िल्म की
गुणवत्ता से शक्ति दा ने शायद कभी भी समझौता नही किया, यही कारण अपनी
फ़िल्मों में कथा,पटकथा,संवाद,गीत और संगीत के साथ ‘चरित्र’ मे ‘फ़िट’
बैठने वाले अभिनेता-अभिनेत्री का चयन किया ।अभिनेताओं मे राजेश
खन्ना,शम्मी कपूर,अशोक कुमार,उत्तम कुमार,संजीव कुमार तथा विनोद मेहरा
शक्ति फ़िल्मस की अवधारणा मे सफ़ल रहे । कैरियर के दूसरे कालखंड मे संजीव
कुमार(चरित्रहीन), सुनील दत्त(जाग उठा इंसान), मनोज कुमार(सावन की घटा),
उत्तम कुमार(अमानुष),अमिताभ बच्चन (बरसात की एक रात) जैसे अभिनेताओं को
अवसर दिया। अभिनेत्रियों मे शर्मिला टैगोर, सायरा बानो, मौसमी चटर्जी,आशा
पारेख ने अच्छी फ़िल्में दी । शर्मिला काफ़ी समय तक शक्ति फ़िल्मस का
‘आकर्षण’ बनी रहीं— आराधना, अमानुष,अमर प्रेम, कश्मीर की कली, एन इवनिंग
इन पेरिस, आनंद आश्रम जैसी सफ़ल फ़िल्मे दी | शक्ति दा ने अनेक कलाकारों की
‘क्षमता’ एवं ‘दक्षता’ को पहचान कर उन्हे प्रतिष्ठत किया |
शक्ति सामंत का अपने फ़िल्म के कलाकारों के लम्बे अर्से तक प्रगाढ संबंध
रहे। अशोक कुमार ने हांलाकि शक्ति दा के साथ ‘हावडा ब्रिज’ सहित कुल 9
फ़िल्मे की पर वह आजीवन ‘सलाहकार’ एवं मार्गदर्शक जैसे रहे। इसी तरह शम्मी
कपूर,राजेश खन्ना,शर्मिला टैगोर के साथ काफ़ी समय के लिए अच्छे संबंध रहे
। शम्मी कपूर- शक्ति सामंता का सिने सफ़र ‘चाईना टाऊन’ कश्मीर की कली,
‘एन इवनिंग इन पेरिस’ जैसी फ़िल्मो के माध्यम से चला । शक्ति फ़िल्मस की
‘आराधना’ ने अभिनेता राजेश खन्ना को जन-जन मे लोकप्रिय बना दिया । सिनेमा
को ‘कविताई’ का लोकप्रिय माध्यम मानने वाले शक्ति सामंता ने जीवन भर
‘सामाजिक’ संदर्भ से युक्त फ़िल्मे बनाने संकल्प लिया।इस पहल मे
‘रुमानियत’ को सामाजिक पहलू से जोडा और ‘आराधना’ बनाई,