कवि-संपादक गिरिराज किराडू ने यह लेख टोमास ट्रांसट्रोमर की कविता और उनको मिले नोबेल सम्मान पर लिखा है. यह छोटा-सा लेख न केवल ट्रांसट्रोमर की कविता को समझने में हमारी मदद करती है बल्कि नोबेल की पोलिटिक्स की ओर भी संकेत करती है. बेहद पठनीय लेकिन विद्वत्तापूर्ण लेख- जानकी पुल.
अपनी यूरोकेन्द्रिकता के लिये स्थायी रूप से विवाद और संदेह के घेरे में रहने वाली स्वीडिश अकादमी ने 1974 में खुद अपने चलन के हिसाब से भी एक बेहद अनोखा और साहसिक निर्णय लिया। अकादमी ने उस बरस साहित्य का नोबेल पुरस्कार अपने ही दो सदस्यों – हैरी मार्टिनसन और एविंद जॉनसन – को एक-साथ दे दिया. उस साल उन दोनों के अलावा सॉल बैलो, ग्राहम ग्रीन और नोबाकोव जैसे लेखक उम्मीदवार माने जा रहे थे जिन्हें कठिन-से-कठिन प्रतिमानों पर भी बीसवीं सदी के महानतम लेखकों में शामिल न कर पाना मुश्किल होगा। सॉल बैलो को तो दो साल बाद अकादमी ने पुरस्कृत कर दिया लेकिन ग्रीन और नोबाकोव को यह पुरस्कार कभी नहीं मिल पाया। अकादमी का यह अनोखा और लगभग काव्यात्मक साहस खुद उसके और दोनों संयुक्त विजेताओं के लिये केवल विवाद और बदनामी का ही सबब बना। हैरी मार्टिनसन और एविंद जॉनसन अगर उतने ‘बड़े’ लेखक नहीं थे कि उन्हें सॉल बैलो, ग्राहम ग्रीन और नोबाकोव पर तरज़ीह दी जा सके तो उतने साधारण भी नहीं थे कि आज उन्हें उनके बेहतरीन लेखन की जगह सिर्फ़ इस विवाद के कारण याद किया जाये हालांकि अपने देश स्वीडन से बाहर तो उन्हें यही क्रूर अन्यायी नियति मिली है।
चौहत्तर के उस अभूतपूर्व विवाद का असर यह हुआ कि अगले 36 बरस तक स्वीडी तो क्या किसी स्केंडेनेवियाई लेखक को भी नोबेल नहीं मिल पाया। लेकिन जिस एक स्वीडी लेखक को यह पुरस्कार मिल जाना पिछले लगभग दो दशकों से औपचारिकता भर रह गया था वे कवि टोमास ट्रांसट्रोमर हैं। इस दौरान ट्रांसट्रोमर न सिर्फ स्थायी उम्मीदवार रहे हैं, दो नोबेल सम्मानित कवि सीमस हीनी और डेरेक वाल्कॉट उन्हें आधिकारिक रूप से नामांकित कर भी चुके हैं।
1990 में हुए पक्षाघात के बाद न सिर्फ उनका जीवन उनके घर तक सीमित हो गया बल्कि बोलने की क्षमता भी काफी इद तक चली गयी । इधर यह माना जाने लगा था कि स्वीडिश अकादमी अपने ही देश और भाषा के महानतम जीवित कवि का सम्मान राजनैतिक संकोच के कारण नहीं कर पायेगी । ऐसे में ट्रांसट्रोमर के घर कई बार बन चुके नोबेल पुरस्कार जीतने के माहौल को हकीकत बनाने वाला स्वीडिश अकादमी का इस बार का साहसी ‘पक्षपात’ पूरे संसार में कविता से उम्मीद रखने वाले अल्पसंख्यकों के लिये सुखद है।
तेईस बरस की उम्र में, 1954 में, पहली कविता पुस्तक प्रकाशित करने वाले इस विनम्र कवि को लगा कि कविता लिखकर अपना और परिवार का भरणपोषण कठिन होगा तो उन्होंने एक ऐसा पेशा चुना जो कवि के रूप में उनके जीवन में सबस कम बाधा पहुंचाये। स्टॉकहोम विश्वविद्यालय में धर्म, इतिहास और मनोविज्ञान पढ़ चुके कवि ने अपने जीवन का बड़ा हिस्सा युवा कैदियों, ड्रग एडिक्टों और शारीरिक रूप से अक्षम लोगों के बीच मनोविज्ञानी के रूप में काम करते हुए बिताया है। इस काम में उन्हें ऐसे लोग तो नहीं मिलते थे जिनकी दिलचस्पी उनकी कविता में हो लेकिन इन अनुभवों ने जीवन और भाषा के बारे में उनकी समझ को गहरे तक प्रभावित किया। काम के दौरान उनका सामना लगातार इस अनुभव से हुआ कि विलक्षण परिस्थितियों से गुजर चुके लोग अपने अनुभव को व्यक्त करने की कोशिश में भाषा की, वाक्य की संरचनात्मक जकड़ से बचने की कोशिश करते हैं। उन्हें अहसास हुआ कि भाषा पहले से किसी के आधिपत्य में होती है, अक्सर उनके जिनके हाथ में दंड देने की शक्ति होती है। उनके अपने शब्दों में, ‘उपलब्ध भाषा सज़ा देने वालो के साथ कदमताल करती है। इसीलिये, हमारे लिये नयी भाषा पाना अनिवार्य है”।
ट्रांसट्रोमर का भाषा के साथ संबंध एक स्तर पर अगर मनोविज्ञानी के रूप में उनके काम ने परिभाषित किया है तो दूसरे स्तर पर संगीत ने। उम्रभर शौकिया पिआनोवादक रहे टोमास अब संसार से बात अगर कविता के अलावा अपनी पत्नी के मार्फ़त करते हैं तो खुद से बात शायद पिआनो के मार्फ़त। उनका सिर्फ़ बायाँ हाथ ठीक से काम करता है और उस बाँये हाथ की उंगलियों की पिआनो पर हरकत, हो सकता है, आने वाले समय में उनकी सबसे मार्मिक कविता, सबसे सुंदर छवि के रूप में अंकित हो जाये।
ट्रांसट्रोमर की कविता इसलिये भी अकादमी के लिये एक मुश्किल चयन साबित हुई कि वह अगर ‘अराजनैतिक’ नहीं है तो सीधे-सीधे राजनैतिक भी नहीं है। प्रकृति, इतिहास, स्मृति और मृत्यु के बारे में रूपकों से रौशन भाषा में लिखने वाले इस कवि ने जीवन के किसी भी अभिप्राय को, उसके किसी भी अर्थ को जीवन की अपरिहार्य क्षुद्रता की संगति में पढ़ने की कोशिश की है। वे बहुत सारे समकालीनों की तरह मेटाफिजिक्स से दामन नहीं बचाते लेकिन उनके पास कोई रहस्यमय, आविष्ट औदात्य भी नहीं है। वे हर इबारत को क्षुद्रता से इस तरह उत्तीर्ण करते हैं कि उनकी कविता पढ़ते हुए आपको लगता है एक मनुष्य के रूप में आपका कद थोड़ा ऊंचा हो गया है, आपका अंतःकरण थोड़ा फैल गया है।
स्वीडन का सर्द, उदास भूदृश्य, बेरहम मौसम, जंग लगी पुरानी कारें, कारखाने, मशीनें इस कविता में पाया जाने वाला सामान है। उनकी कविता गहरे दबी चीजों और जगहों के पास, उनके बीच के अवकाशों में जाती है और उन्हें आत्मीय बना लेती है। खुद ट्रांसट्रोमर अपनी कविताओं को ऐसी मिलनस्थली मानते हैं जहाँ अंतरंग और बहिरंग, अंधेरा और रौशनी इस तरह मिलते हैं कि वहाँ इतिहास संसार या मनुष्य के बारे में कोई नया औचक अर्थ-संकेत उपस्थित हो जाता है।
संगीत-सा लिखने की कोशिश में रची गयी उनकी महाकाव्यात्मक कविता ‘बाल्टिक्स’ का भूगोल बाल्टिक समुद्र, स्वीडी द्वीपसमूहों और गोटलैंड द्वीप को घेरता है। समंदर और सरजमीं के बीच के तनाव को यह कविता बीसवीं शताब्दी की तानाशाहियों और शीतयुद्धीय कूटनीति की स्क्रीन पर आरोपित कर देती है। हो सकता है ‘बाल्टिक्स’ एक काव्य-दस्तावेज के रूप में अधिक समय जीवित रहे लेकिन विपुल के बजाय सघन लिखने वाले टोमास, जिनका समूचा वांग्मय एक मोटी पॉकेट बुक में समा सकता है, शायद पैने बिम्बों और रूपकों से बुनी अपनी छोटी कविताओं के लिये ही सबसे ज़्यादा याद किये जायेंगे। एक ऐसे समय में जब कविता रूपकों से अपसरण कर रही है, जब कवि अपने बिम्बों पर धीरज से किसी कारीगर की तरह काम करने का कौशल न सिर्फ़ भूलते जा रहे हैं बल्कि उसका मज़ाक भी उड़ा रहे हैं; इस बिम्ब-सघन, रूपक-दीप्त, बेचैन कविता के वृहत्तर पाठकों तक पहुंचने का रास्ता खुलना एक महत्वपूर्ण घटना है। यह रूपकों का ही नहीं, कविता के अपनी विधि से समाजनैतिक होने के पुराने आत्मविश्वास का भी सम्मान है।