जानकी पुल – A Bridge of World's Literature.

प्रसिद्ध अंतरराष्ट्रीय प्रकाशक हार्पर कॉलिंस ने जब हिंदी में पुस्तकों का प्रकाशन आरम्भ किया तो एक अनुवादक ढूंढा नीलाभ के रूप में और एक संपादक ढूंढा कथाकार कम संपादक अधिक अखिलेश के रूप में. सुनते हैं कि स्वभाव से ‘तद्भव’ संपादक को हार्पर कॉलिंस के सतत संपादक बनवाने में हिंदी की एक अंतरराष्ट्रीय ख्याति की लेखिका का बड़ा हाथ है. बहरहाल, यह हमारी चर्चा का विषय नहीं होना चाहिए. सबको अपने-अपने हिसाब से बाजार को परखने, उसको ध्यान में रखते हुए प्रयोग करने का पूरा अधिकार है, सफलता के अपने मानक गढ़ने, प्रयोग करने की पूरी आजादी है.

यहां चर्चा का प्रसंग है ’१० बेमिसाल प्रेम कहानियां’. अब चूंकि पुस्तक का शीर्षक हिंदी में है तो यह मान लिया जाना चाहिए कि ये कहानियां हिंदी की ही होंगी. इससे पहले अखिलेश हार्पर के लिए ‘एक कहानी’ श्रृंखला का संपादन कर चुके हैं, जिसमें एक पुस्तक में एक लेखक की एक कहानी छापी गई थी. इन पुस्तकों का क्या हश्र हुआ होगा किसी को अलग से बताने की आवश्यकता नहीं है. प्रकाशक ने ‘तद्भव संपादक’ को एक और मौका दिया. इस बार संपादक ने प्रेम कहानियों को चुना, गोया प्रेम कहानियां हिंदी में बिक्री और सफलता की सबसे बड़ी गारन्टी हों. हर प्रकाशक को एक बेस्टसेलर की तलाश होती है. पुस्तक के शीर्षक से ही स्पष्ट है कि इसमें हिंदी की अब तक लिखी गई प्रेम कहानियों में से १० सर्वश्रेष्ठ कहानियों को चुनने का उपक्रम किया गया है. वैसे तो संपादक ने भूमिका में लिखा है कि इन कहानियों के चयन में भौगोलिकता और कालिकता का ध्यान रखा गया है. यह महज संयोग हो सकता है कि पुस्तक में २१ वीं सदी की कहानियों को स्थान नहीं दिया गया है. कहा जा सकता है कि संपादक ने २० वीं शताब्दी की १० बेमिसाल कहानियां पुस्तक में प्रस्तुत की हैं.

वैसे तो प्रत्येक संपादक से यह अपेक्षा की जाती है कि वह अपने चयन में निष्पक्ष हो, उसका प्रयास यह हो कि वह उस विषय का सर्वश्रेष्ठ पाठकों के सामने प्रस्तुत करे जिसका वह संपादन कर रहा हो. यह अलग बात है कि बहुत कम संपादक संपादन की इस कसौटी पर खरे उतर पाते हैं. हालाँकि एक ज़माने से ‘तद्भव’ का संपादन करने वाले संपादक से यह अपेक्षा तो की ही जाती है कि वह संपादन का एक मानक प्रस्तुत करे. लेकिन यह भी सचाई है कि संपादक चाहे कोई भी हो कहीं न कहीं उसकी सब्जेक्टिविटी प्रकट हो ही जाती है. उसकी निजी पसंद-नापसंद प्रबल हो ही जाती है. हालाँकि इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि जब १०० साल की बेमिसाल प्रेम कहानियों का चयन करना हो तो १० की संख्या कम पड़ जाती है. चाहे हिंदी में कितनी ही कम प्रेम कहानियां लिखी गई हों लेकिन इतनी भी कम नहीं हैं कि उनमें से १० बेमिसाल का चयन इतना आसान हो.

अखिलेश का चयन कुल मिलकर ठीक ही कहा जायेगा क्योंकि १० में से ७ कहानियां ऐसी हैं जिनको लेकर अधिक विवाद नहीं हो सकता. जब पुस्तक में प्रेम कहानियों के नाम पर ‘उसने कहा था’, ‘आकाशदीप’(जयशंकर प्रसाद), जाह्नवी(जैनेन्द्र कुमार), ‘तीसरी कसम”(फणीश्वरनाथ रेणु), नीली झील(कमलेश्वर), यही सच है(मन्नू भंडारी), कोसी का घटवार(शेखर जोशी)- कौन विवाद कर सकता है? यही बेमिसाल हैं या नहीं, लेकिन इस बात से सभी पाठक इतेफाक रखते हैं कि ये अच्छी प्रेम-कहानियां हैं.

सत्तर प्रतिशत को लेकर कोई समस्या नहीं है. समस्या ३० प्रतिशत को लेकर है. संग्रह की आठवीं कहानी है- ‘तीस साल बाद’, जिसके लेखक हैं भारतीय ज्ञानपीठ के निदेशक रवीन्द्र कालिया. ६० के दशक के मोह में उलझी इस कहानी को प्रेम कहानी कहना तो दूर, ठीक से कहानी भी नहीं कहा जा सकता. लेकिन यहां तो बेमिसाल है. इसी तरह ‘चित्तकोबरे’ जैसे बेहद चर्चित और विवादास्पद उपन्यास की लेखिका मृदुला गर्ग की कहानी ‘मीरा नाची’ के बारे में भी कहा जा सकता है कि वह एक ठीक-ठाक सी कहानी है. लेकिन यहाँ तो बेमिसाल है.

सबसे मजेदार तो है नीलाक्षी सिंह की कहानी ‘रंगमहल में नाची राधा’ का १० बेमिसाल कहानियों के रूप में चयन. एक दौर में एकाध अच्छी कहानियां लिखने वाली यह लेखिका आज भी कहानी नुमा कुछ लिखती है, जिसे केवल ‘तद्भव’ के पन्नों पर ही देखा जा सकता है. संपादक महोदय का इस कहानी की लेखिका के प्रति ‘स्नेह’ जगजाहिर है. ये तीन कहानियां ऐसी हैं जो इस पुस्तक को विश्वसनीय नहीं रहने देती. जब पुस्तक ही विश्वसनीय न लगे तो पाठक भी पुस्तक में रूचि नहीं दिखाते.

सात अच्छी कहानियों के बावजूद इस पुस्तक का भी वही हश्र होगा जो इस संपादक द्वारा सम्पादित ‘एक कहानी’ श्रृंखला की कहानियों का हो चुका है. यह मैं अपने सम्पादकीय और लेखकीय अनुभव के विश्वास के साथ कह सकता हूं.

यह दुर्भाग्य है कि हिंदी के लेखक पहले तो अवसर नहीं होने का रोना रोते हैं, जब अवसर मिलते हैं तो उसे निजी स्वार्थों में पड़कर गँवा देते हैं. अखिलेश से आशा थी कि वे श्रेष्ठ सम्पादकीय मानक स्थापित करेंगे, लेकिन उन्होंने इस अवसर का इस्तेमाल अपने ‘साहित्यिक गुट’ को मजबूत करने के लिए किया है. काम से कम हार्पर कॉलिंस के लिए सम्पादित उनकी पुस्तकों को देखकर यही कहा जा सकता है.   
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