जानकी पुल – A Bridge of World's Literature.

युवा लेखिका प्रज्ञा विश्नोई की कहानी हम लोगों ने कुछ दिन पहले पढ़ी थी। बहुत ताजगी थी उनकी शैली में। आज पढ़िए उनकी कुछ कविताएँ। उनकी कविताएँ भी अलग शैली की हैं। नौ ग्रहों को आधार बनाकर लिखी गई प्रेम कविताएँ। इनमें भी ताजगी लगी। आप भी पढ़िए- मॉडरेटर

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१. सूर्य

हर लड़की का प्रथम
प्रेम होता है–सूर्य।

वह खो देती है अपनी दृष्टि
केवल प्रिय-वदन
के अवलोकन में।

टेरती है प्रेयस का नाम
देह में कोयल सी मिठास भर–
पर देह से छूटते ही स्वर फट पड़ता है:
कांव-कांव-कांव!
जिसकी गूंज
कस जाती है
लड़की के गले के चहुं ओर।

दिन ढलते-ढलते
लड़की खगोलविद बन जाती है।

२. चंद्र

लड़की का दूसरा प्रेम
एकांत होता है।

दर्पण में अब
उसकी देह के स्थान पर
दिखते हैं:
एक पोखर, एक चातक, एक छाया।

अब लड़की भागती नहीं,
न ही खोलती है
कोई कपाट या खिड़की
प्रिय को एक नज़र देखने के लिए।

लड़की अब जानती है–
प्रीत और प्रेत
बिना द्वार खटखटाए
प्रवेश कर जाते हैं।

३. मंगल

लड़की मांगलिक है।
लड़की का प्रेम मंगल है।

लड़की का विदग्ध मन,
लड़के का विदग्ध तन,
जलते हैं
अपने अपने हिस्से की
अग्नि में।

फिर उसी अग्नि को
हथेली में लिए
दोनों भटकते हैं,
यज्ञ वेदी की खोज में,
स्वयं का उत्सर्ग़ करने हेतु।

लड़की भक्तिन है,
गढ़ लिया है उसने अपना दैव
लड़के में,
पर लड़का अभी भी नास्तिक है।

इसी बीच वर्षा गिरती है,
पर मणिकर्णिका में
अग्नि अभी भी सिसक–धधक रही है।

४. बुध

लड़की
जब प्रेम में नहीं होती,
लड़की,
जब जलता जामुन का पेड़ नहीं होती,
लड़की जब
लड़की नहीं होती,
तब
एक भौंरा होती है।

तब लड़की
देखती है स्वप्न:
नाग से प्रणय निवेदन करती
बिज्जी की नायिकाओं के,
मुर्दों के त्योहार
के बीचों–बीच फ्रीडा काहलो
के सेल्फ पोर्ट्रेट के,
तर्जनी और मध्यमा
के बीच सिगरेट फंसाए
तारकोवस्की की नायिकाओं के।

लड़की जब प्रेम में नहीं होती,
तो चेरी ब्लॉसम के फूल
होती है
जो धरती छूते ही
बदल जाते हैं स्त्री में।

५. शुक्र

लड़की जानती है
निर्वासन का दुख।
महसूसती है
डाह की दाह।

लड़की जलती है अपनी ही
प्रज्ज्वलित अग्नि में।
जब उसकी राख से रिसता जल
देता है पुरुष के पथरीले अधरों
को शाप से मुक्ति,
तब लड़की स्त्री हो जाती है
और उसके नखों
से फूट पड़ती है
किसी नदी की धारा।

६. गुरु

लड़की की कुंडली में
सातवें भाव के स्वामी
नवम भाव में विद्यमान हैं।

सो जो होगा
वो होगा ही।

पर कभी-कभी
लड़की दब जाती है
प्रेम के गुरुत्व से।

पर जाए कहां
जब प्रेम ही रुष्ट हो?

क्या करे लड़की,
जब प्रेम
उसे उसके नाम के स्थान पर
”शिष्या” कहकर पुकारे?

लड़की धरती है।
लड़की प्रेमिका है।
पर कभी-कभी
आकाश भी बहुत भारी हो जाता है।

लड़की कह देना चाहती है
लड़के से–
“अभी इतने भी बड़े नहीं हुए
मैं और तुम।
आओ थोड़ा खेल लें हम
चांद और चकोर जैसे।

मेरी पुस्तक का पृष्ठ नहीं,
उल्कापिंड-सा ध्वस्त होता
मेरा अस्तित्व पढ़ो।”

पर तब तक प्रेम
उसे गृहकार्य दे चुका होता है।

७ शनि

हां, लड़की मंथर थी,
वक्र दृष्टि भी रही होगी शायद।

पर उसकी चितवन से
तुम तो न मुख फेरते,
मेघश्याम प्रेम!

शनि की दृष्टि से
मेघनाद को मृत्यु मिली,
सबने कहा।
पर उसे मिले मोक्ष
को सबने भुला दिया।

लड़की मृत्यु है,
पर प्रेत का घर
सदैव श्मशान ही रहा है।

लड़की के जीवन में
फिर लौटेगा प्रेम का प्रेत,
पर तब तक
लड़की स्वयं प्रेत हो चुकी होगी।

८ राहु

लड़की को भाता था प्रेम।
लड़की को भाते थे प्रेत।
लड़की के सपनों में प्रेत थे।
लड़के के जीवन में प्रेत हैं।

फिर कैसे न प्रीत होती
लड़की को लड़के से?

पर प्रेत भी नहीं चाहते
प्रेम को अपने अस्तित्व से लजाना।

श्मशान में वसंत का क्या काम?
टूटा तन, बिखरा मन
कैसे ले उधार
पराई प्रीत का?

फिर भी प्रेत निकलते हैं श्मशान से,
और पसर जाते हैं,
किसी नवयौवना की मनोदेह में।

क्योंकि प्रेत भी
पतंगे की तरह
भस्म होना चाहते हैं
प्रीत की लालटेन में छटपटाते हुए।

९ केतु

प्रेम पुष्प में नहीं।
प्रेम आम की बौर में नहीं।

प्रेम नागिन की कुंडली सा
खुद में लिपटा–
गीला, सड़न से भरा।
जड़ों से जन्म लेता है।

जहाँ लड़की को दिखता है
कभी सूर्य, कभी चंद्र–
वहां होता है ब्लैकहोल।

जन्म का चरम–मृत्यु,
मृत्यु का चरम–प्रेम,
प्रेम का चरम–सृष्टि का कृष्ण अंत।

इसी अंत में तैरते हैं:
असंख्य खगोलविद,
पोखर, सूर्य,
चातक, चंद्र,
लड़के और लड़कियाँ।

और उन्हें देख
हंसती है–
केवल एक मृत्यु
और हंसते हंसते
फिर एक लड़की बन जाती है।

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