वर्ष २०११ का देवीशंकर अवस्थी सम्मान युवा कवि-आलोचक जीतेंद्र श्रीवास्तव को दिए जाने की घोषणा हुई है. उनको यह पुरस्कार २००९ में प्रकाशित आलोचना-पुस्तक ‘आलोचना का मानुष-मर्म’ के लिए दिए जाने की घोषणा हुई है. जीतेंद्र की ख्याति मूलतः कवि के रूप में है और उनको युवा कविता का सबसे प्रतिष्ठित समझा जाने वाला पुरस्कार भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार मिल चुका है. लेकिन प्रेमचंद की रचनाओं पर शोध करने वाले जीतेंद्र श्रीवास्तव ने आलोचना की विधा में भी उल्लेखनीय काम किया है. आलोचना की उनकी चार पुस्तकें प्रकाशित हैं.
ध्यान रखने की बात है कि एक जमाने में देवीशंकर अवस्थी सम्मान की शुरुआत युवा आलोचना को प्रोत्साहन देने के लिए की गई थी. बाद में इसकी उम्र सीमा के बंधन को ढीला छोड़ दिया गया. बाद में यह पुरस्कार अजय तिवारी जैसे बुढाए आलोचक को भी मिला. शोध-प्रबंधों को ही आलोचना पुस्तक के रूप में छपवाने पर भी मिलने लगा. लेकिन इस बार स्वतंत्र रूप से आलोचना पुस्तक पर मिला है. जीतेंद्र जैसे युवा आलोचक को पुरस्कार देकर निर्णायकों ने एक बार फिर युवा आलोचना को पहचान और सम्मान दिया है.
जीतेंद्र श्रीवास्तव जे.एन.यू. से पढ़े-लिखे हैं और इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफ़ेसर हैं.
उनको जानकी पुल की ओर से बधाई!
16 Comments
भाई को बधाई
चिंता न करें अमित जी, देवीशंकर अवस्थी जी भौतिक रूप से हमारे साथ नहीं है, हाँ! उनकी मानसिक उपस्थिति बहुत राहत देती है। संभव है कि उसी ने आपको यह कहने का साहस दिया है।
(पुखराज जाँगिड़, जेएनयू)
कमेन्ट जो भी करें, अपने नाम से करें तो अच्छा लगेगा. गुमनाम टिप्पणियों को हम इसी तरह डिलीट कर दिया करेंगे.
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जितेन्द्र श्रीवास्तव की कविता बहुत पहले 'हंस ' में पढ़ी थी .लीक से हट कर कुछ नई सी लगी सीधी,सरल ,देसी ,छू जाने वाली .फिर खोज खोज कर पढने लगा .बाद में पता चला कि जितेन्द्र देवरिया के ही हैं .11 फ़रवरी 2009 को नामवर सिंह गोरखपुर में कपिलदेव की पुस्तक का लोकार्पण करने प्रेमचंद पार्क में आये थे .वहीँ पहली बार जितेन्द्र से मुलाकात हुई.मैंने आटोग्राफ माँगा .जितेन्द्र ने हस्ताक्षर के साथ अपना फोननंबर भी आटोबुक पर नोट कर दिया.बाद में एक दो बार बात भी की.गोरखपुर के प्रेस क्लब में उनका काव्य पाठ हुआ था .सुना.अब उन्हें देवी शंकर अवस्थी सम्मान मिला है .जानकर इस लिए और अधिक ख़ुशी हो रही है कि जितेन्द्र मेरे उन पसंदीदा कवियों में हैं जिन्हें मैं पढ़ता और याद भी रखता हूँ.बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं. -रवि राय ,गोरखपुर
bahut badhai Jitendra jee
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जीतेंद्र जी को बधाई…
हमारी भी बधाई.
भाई, खुशी का मौका है शुभ-शुभ बोलिए. ठीक है कुछ लेखकों को पुरस्कार अधिक मिल जाते हैं, लेकिन इसमें क्या बुराई है. पुरस्कार मिलना कोई गुनाह तो नहीं?
देवीशंकर अवस्थी अगर जिंदा होते तो निर्णायकों पर मानहानि का मुकदमा ठोक देते. जिंतेंद्र का तो ऐसा लगता है जन्म ही पुरस्कार लेने के लिए हुआ है. धन्य रे हिंदी.
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