जानकी पुल – A Bridge of World's Literature.

टाइम पत्रिका अपने मुखपृष्ठ पर यह घोषणा कर चुकी है कि वह अमेरिका का महान उपन्यासकार है. यह अलग से बताने की कोई आवश्यकता नहीं लगती कि टाइम के कवर पर आना ही कितनी बड़ी बात समझी जाती है, घोषणा तो दूर की बात है. अभी हाल में ही अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा जब छुट्टियों पर जा रहे थे तो उन्होंने प्रकाशक से आग्रह करके उसके नए उपन्यास फ्रीडम की आरंभिक प्रति ली ताकि वहाँ छुट्टियों में उसका आनंद उठा सकें. ५१ साल के जोनाथन फ्रेनजेन का यह चौथा उपन्यास है जो अभी हाल में ही बाजार में आया है. उपन्यास के छपने से पहले ही इसे जिस तरह की चर्चा मिली है वह अप्रत्याशित है. यह कहा जा रहा है कि वह विलियम फाकनर, हेमिंग्वे की परम्परा में एक और महान लेखक है वह. कहा जा रहा है कि फिटजेराल्ड ने द ग्रेट गेट्सबी नामक उपन्यास में १९२० के दशक की अमेरिकी हताशा का जो चित्रण किया है उसी तरह समकालीन अमेरिकी समाज की निराशा, हताशा का चित्रण उनके उपन्यासों में भी दिखाई देता है, विशेषकर नए उपन्यास ‘फ्रीडम’ में. उस अर्थ में यह एक सम्पूर्ण अमेरिकी उपन्यास है.
‘फ्रीडम’ के लेखक जोनाथन फ्रेनजेन को लेखक के रूप में असली ख्याति मिली २००१ में प्रकाशित अपने तीसरे उपन्यास द करेक्शंस से. उसे अमेरिका में कई प्रतिष्ठित पुरस्कार मिले. लेकिन लेखक के रूप में उनको प्रसिद्धि तब मिली जब उनके उपन्यास को अमेरिकी टीवी के मशहूर शो ओपरा विनफ्रे शो में चर्चा के लिए चुना गया, जो अपने आप में बड़ी बात होती है. लेकिन उससे भी बड़ी बात यह हुई कि लेखक ने उस शो में भाग लेने से मना कर दिया. उसका कारण बड़ा नैतिक है. होता यह है कि ओपरा विनफ्रे शो में जिस किताब को चर्चा के लिए चुना जाता है उसके ऊपर उस शो का लोगो लगा दिया जाता है, जो बिक्री के लिहाज़ से अपने आपमें बड़ी बात समझी जाती है. जोनाथन फ्रेनजेन ने इसी आधार पर ओपरा के शो में भाग लेने से मना कर दिया कि वह यह नहीं चाहता कि उसकी किताब पर कोई कारपोरेट ठप्पा लगे. हो सकता है कि उसके कुछ पाठकों को यह बात बुरी लगे. वह पाठकों के लिए उपन्यास लिखता है कॉर्पोरेट जगत की स्वीकृति पाने के लिए नहीं.
बस वे रातोरात आलोचकों, पाठकों सबकी नज़र में हीरो बन गए. द करेक्शंस पिछले एक दशक में अमेरिका का सबसे अधिक बिकने वाला उपन्यास बन गया. जोनाथन को चोटी के लेखकों में शुमार किया जाने लगा. लेकिन एक सच्चे लेखक की तरह उन्होंने सफलता को भुनाने की कोई कोशिश नहीं की. करीब दस सालों बाद यह अगला उपन्यास आया है. फ्रीडम के बारे में आलोचकों का कहना है कि इस उपन्यास में अमेरिकी मानस को बहुत अच्छी तरह पकड़ा गया है. इसमें समकालीन अमेरिकी समाज के मूड को पढ़ा जा सकता है जो अपने शासनाध्यक्षों की वर्चस्वकारी नीतियों से आजिज आ चुकी है, जिसे अपने भविष्य की ओर देखने पर निराशा हो रही है, जिसे इस बात से पशेमानी होती है कि उसके नाम पर नेता अपने मुनाफे की लड़ाई लड़ रहे है. वे इस बात से चिंतित हैं कि अमेरिका को दुनिया भर में बददुआयें दी जा रही हैं.
उपन्यास में एक परिवार की कथा है जिसके सदस्य अपने-अपने कारणों से नाखुश हैं. लेखक ने फ्रीडम उस शैली में लिखा है जिसे आलोचक फैक्ट-फिक्शन शैली कहते हैं. यानी वास्तविकताओं को औपन्यासिक रूप में प्रस्तुत करने की शैली. इसमें बुश प्रशासन की नीतियों की आलोचना है. अमेरिकी साम्राज्यवादी नीतियों की आलोचना है, जिसने अमेरिका को दुनिया के सामने विलेन बना दिया. इसमें उस बहुत बड़े सपने की टूटने-बिखरने की कथा है जिसे अमेरिका कहते हैं. एक पात्र की आत्मकथा के रूप में इस फ्रीडम की कथा कही गई है जो धीरे-धीरे अमेरिकी समाज की आत्मकथा बन जाती है.  इस समय अमेरिकी समाज मोहभंग के दौर से गुजर रहा है. जोनाथन ने उस मोहभंग को औपन्यासिक रूपक में बांधा है.
कहा जा रहा है कि फ्रीडम नामक इस उपन्यास को खरीदने के लिए जिस तरह अमेरिकी बुकस्टोर्स में पाठक टूट रहे उससे ज़ल्दी ही यह वहाँ के सबसे अधिक बिकने वाला उपन्यास बन जाए तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए. लेकिन इस सबके बीच यह सवाल रह जाता है कि क्या जोनाथन फ्रेनजेन अमेरिका का नया महान लेखक है? इसके जवाब में दबे स्वर में यह भी कहा जा रहा है कि क्या केवल किताबों की बिक्री से यह तय हो जाता है? अंग्रेजी विश्व भाषा है. अमेरिका में उसके बारे में जो भी कहा जा रहा हो अभी दुनिया के बाकी हिस्सों के अंग्रेजी पाठकों के बीच उसका कोई खास जलवा नहीं जमा है. अभी तो यही लग रहा है कि उसके इस हो-हल्ले के पीछे बाजार और प्रचार तंत्र है. वह कॉर्पोरेट जगत है जिसने बाजारवाद के इस दौर में किताबों को कमोडिटी में बदल दिया है और उसे खरीदने को फैशन में. कभी जोनाथन फ्रेनजेन ने जिसके खिलाफ  आवाज़ उठाई थी. उसने अपनी राजनीति तो साबित कर दी है लेखन को साबित करना शायद बाकी है. महानता की घोषणा तो हो चुकी है उस पर आखिरी मुहर लगना बाकी है. 
जो ज़ाहिर है बाजार नहीं पाठकों की स्वीकृति से लगेगी.
  
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