१९१० में पैदा हुए भुवनेश्वर की यह जन्मशताब्दी का साल है. ‘भेडिये’ जैसी कहानी और ‘ताम्बे के कीड़े’ जैसे ‘एब्सर्ड’ नाटक के इस रचयिता को हिंदी का पहला आधुनिक लेखक भी कहा जाता है. समय से बहुत पहले इस लेखक ने ऐसे प्रयोग किये बाद में हिंदी में जिसकी परम्परा बनी. अभिशप्त होकर जीनेवाले और विक्षिप्त होकर मरने वाले इस लेखक की कुछ दुर्लभ रचनाएँ इस सप्ताह हम देंगे. आज प्रस्तुत हैं उनकी कुछ दुर्लभ कविताएँ- जानकी पुल.
नदी के दोनों पाट
नदी के दोनों पाट लहरते हैं
आग की लपटों में
दो दिवालिये सूदखोरों का सीना
जैसे फुंक रहा हो.
शाम हुई
कि रंग धूप तापने लगे
अपनी यादों की
और नींद में डूब गई वह नदी
वह आग
वह दोनों पाट, सब कुछ समेत
क्योंकि जो सहते हैं जागरण
जिसका कि नाम दुनिया है
वह तो नींद के ही अधिकारी हैं
और यह भी कौन जाने
उन्हें सचमुच नींद आती भी है या नहीं!
कहीं कभी
कहीं कभी सितारे अपने आपकी
आवाज़ पा लेते हैं और
आसपास उन्हें गुजरते छू लेते हैं…
कहीं कभी रात घुल जाती है
और मेरे जिगर के लाल-लाल
गहरे रंग को छू लेते हैं,
हालांकि यह सब फ़ालतू लगता है
यह भागदौड़ और यह सब
सब कुछ रुखा-सूखा है
लेकिन एक बच्चे की किलकारी की तरह
यह सब मधुर है
लेकिन कहीं कभी एक शांत स्मृति में
हम अपने सपनों का
इंतज़ार कर रहे हैं.
यदि ऐसा हो तो…
एक प्यारी सी लड़की अकेले प्रकाश में
उसका चेहरा ही प्यार बोलता था
मैंने उसका आलिंगन किया
मैंने उसके होंठों को चूमा
आह, कितना सुखद-सुख…
नेता, योद्धा, राजे-महाराजे
इस धरती के महान
लेकिन इस भीड़ के सबसे ऊपर
मैंने खुद ईश्वर का अभिनय किया
माँ धरती की गोद में
मैं स्वयं एक सही ईश्वर के
रूप में प्रस्तुत हुआ…
आकाश के प्याले से मैंने पिया
एक खुली हंसी से मैंने अपना प्याला भरा
लेकिन उनमें केवल सपने ही सपने थे
अनंत-अनेक.
आँखों की धुंध में
आँखों की धुंध में उड़ती सी
अफवाह का एक अजब मजाक है
यह पिघलते हुए दिल और
नमाई हुई रोटी का
हीरा तो खान में एक
प्यारा सा फ़साना है
किसी पत्थर दिल और
नम आँखों वाली रोटी का
गरीबी के पछोड़ में
गम के दानों की रूत है
सब्र का बंधा हुआ मुंह
खुल जायेगा कल के अखबारों में
बस और कुछ नहीं.
18 Comments
भाई,
भुवनेश्वर की कविताओं का शमशेर जी और रमेश बक्षी द्वारा किया गया अनुवाद पढ़ा प्रस्तुति के लिए धन्यवाद.यदि कविताओं के साथ अनुवादक का नाम दे दिया जाता ताे ठीक था .
भुवनेश्वर का समस्त उपलब्ध साहित्य भुवनेश्वर प्रसाद शोध संस्थान,शाहजहॉपुर द्वारा प्रकाशित"भवनेश्वर साहित्य" में
संकलित हैं.
आपने भुवनेश्वर की जो जन्म तिथि दी है वह गलत है
भुवनेश्वर शाहजहॉपुर के गवर्नमेंट कालेज में पढ़े थे.वहॉ के स्कालर रजिस्टर में उनकी जन्मतिथि २०-६-१९१२ है .
डॉ.राजकुमार शर्मा,महासचिव,भुवनेश्वर प्रसाद शोध संस्थान,शाहजहांपुर(उ.प्र.)९४७३६६४३००
prabhat, Bhuvneshwar ko unki janmshatabdi par shaayad akele tumne yaad kiya hai. Ye badi baat hai. Kahin aur bhi yaad kiya gaya ho to main jaanta nahin. Aur saamagri to, jaisi tumhari fitrat hai, durlabh nikaal kar laaye hi ho !
Sanjeev
kuchh kahane ke liye shabd hi nahin hain !!
सच कहूँ तो
मेरी धड़कन रूक गई कुछ देर के लिए !
बस और कुछ नहीं…
parichay karane hetu aabhar!
sundar kavitayen!!!
हीरा तो खान में एक
प्यारा सा फ़साना है
किसी पत्थर दिल और
नम आंखों वाली रोटी का
१०० बरस पहले ऎसी इस तरह की अनुभूति और अभिव्यक्ति! प्रभात जी हृदय से साधुवाद ऎसी प्रतिभा को खोज लाने और हम से साझा करने के लिए..
भुवनेश्वर को याद करवाने और कविताएँ पढ़वाने के लिए आभार
सुधा ओम ढींगरा
भुबनेश्वर – अपने समय के सर्वाधिक प्रतिभाशाली साहित्यकार थे – इसीलिए " मानसिक विक्षिप्तता " के लिए अभिशप्त ! "भेडिये "- अप्रतिम कहानी है – हिंदी की विरासत |
kitna aabhaar prakat karoon is adbhut prastuti ke liye bhaai…inhe sambhal kar rakhe le raha hoon
प्रभात भाई
भुवनेश्वरजी को याद करवाने के लिए आभार।
सचमुच और-और जन्म-शतियों के बीच हम भुवनेश्वर को भूल ही गए थे।
उनकी कविताओं का चयन भी अच्छा है.
प्रभात भाई
भुवनेश्वरजी को याद करवाने के लिए आभार।
सचमुच और-और जन्म-शतियों के बीच हम भुवनेश्वर को भूल ही गए थे।
उनकी कविताओं का चयन भी अच्छा है.
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