जानकी पुल – A Bridge of World's Literature.

 पिछले दिनों एक खबर आई कि एक प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक ने दशरथ माझी के जीवन पर आधारित फिल्म बनाई है. दशरथ माझी सचमुच एक यादगार चरित्र है, जिसने पहाड़ का सीना चीरकर रास्ता बना दिया था. फिल्म के बारे में पढ़ा ही था कि वरिष्ठ कवि-लेखक निलय उपाध्याय ने दशरथ मांझी के जीवन पर लिखा उपन्यास भेज दिया. उपन्यास अभी छपा नहीं है. लेकिन कह सकता हूँ कि दशरथ मांझी के बहाने बिहार के जीवन, समाज, राजनीति को लेकर एक शानदार उपन्यास है. मैं प्रकाशक तो हूँ नहीं कि छापकर आपके लिए उपन्यास पेश कर सकूँ. लेकिन आपके लिए उसका एक अंश तो प्रस्तुत कर ही सकता हूँ. 
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पहाड़ पर आगे की चट्टानें कैसी हैं और उन्हें कैसे काटा जाय, सोच भी नहीं पाए थे दशरथ किपूरे बिहार पर अकाल की भयानक छाया मड़राने लगी। गांव में जिन लोगों के पास रेडियो था, उनके दरवाजे पर सुवह शाम अकाल का समाचार सुनने वाले लोगों की भीड लग जाती । सूचना के साथ अफ़वाहों ने भी जोर पकड लिया था । यह तय कर पाना मुश्किल था कि घटनाओं की इस भीड में कौन सी सूचना सही है और कौन सी अफ़वाह। इन हालातों में दशरथ ने पहाड़ काटने का काम पूरी तरह बन्द कर दिया क्योंकि पहाड़ से अधिक गांव के लोगों के जिन्दा रहने की जरूरत उनके जेहन में बस गई थी ।
बिहार में लोग खेती को सरगसरा कहते थे। मतलब आसमान से अगर बारिश होगी तो फ़सल होगी नहीं तो नहीं होगी।पिछले साल बारिश कम हुई थी जिसके कारण फसल आधी से भी कम हुई । लोगों को उम्मीद थी कि अगले साल अच्छी बारिश होगी और फसलें हो जाएगी तो गए साल की भरपायी हो जाएगी और जीवन पटरी पर आ जाएगा मगर दूसरे साल तो एक दम ही बारिश नहीं हुई ।
यह गलहौर गांव की ही नहीं पूरे बिहार में जहां अकाल का तांडव पसरा था, की कहानी थी ।खेत बूंद- बूंद पानी के लिए तरस कर परती ही रह गए थे।इलाके के जितने भी गड्ढे, पोखर और ताल तलैया थे सब सूख गए थे ।खेतों में लहलहाती फ़सलों की जगह बडी बडी दरारें पडी थी।सूखे कीचड की पपडी के बीच चौडी चौडी दरारें बहुत भयानक लग रही थी। जिन किसानों ने कहीं कहीं रोपाई की थी , वे अब खेत में रोपे गए धान को छिल छिलकर मवेशियो को खिला रहे थे क्योंकि उनके लिए कहीं चारा नहीं बचा था। धान होने से तो रहा कम से कम मवेशियों की जान तो बच जाए।
कई जगह खेतॊं में बगीचों में मरे हुए जानवरों पर मंडराते और मांस नोच नोच खाते गिद्ध दिखाई दे जाते, जिनकी कुत्तों के साथ जंग चलती रहती। जगह जगह मरे हुए चूहे दिखाई पड़ते ।
कई लोगों के घर तो कई दिनों से चूल्हा नहीं जला ।
गलहौर के कई लोगों को पहली बार इस बात का पता तब चला कि मुखिया और बडे किसानों से अलग कोई सरकार है जो आफत के समय में लोगों की मदद करती है,जब राहत की सामग्री लेकर गांव में एक गाड़ी आयी । गाडी के साथ उसके अफ़सर भी आए थे। अफ़सर के सामने मुखिया ने गांव के बाहर लोगों को बुलाकर लाईन में खड़ा कर दिया और बारी बारी से चावल चना गुड सलाई जैसी चीजे बांटी जाने लगी। कुछ देर बाद जब लोगों को लगा कि चीजे पर्याप्त मात्रा में नहीं है और कतार में पीछे खडे आदमी के पास पहुंचते पहुंचते खतम हो जाएगी तो लोग अपना आपा खो बैठे और लूटपर उतारू हो गए। किसी को कुछ मिला किसी को कुछ नहीं मिला और लोग आपस में ही लडने लगे।इसका प्रभाव यह हुआ कि मुखिया और अफ़सर के बीच जाने कौन सी खिचडी पकी कि आगे राहत का कोई भी सामान आता तो वह गांव वालों के पास आने के बजाए सीधे मुखिया के पास चला जाता। कुछ दिन के बाद सामग्री का गांव में आना ही बंद हो गया। सामग्री लेकर गाड़ी ज्योंहि गया से निकालतीआस पास के इलाके के लोग छापामार सैनिक की तरह गाड़ी को घेर लेते और उसे लूट लेते । किसी को किसी पर भरोसा नहीं रह गया था।
 इन हालातो में भी दशरथ अकेले आदमी थे जिनकी बात गांव के लोग मानते और फ़ैसला उन पर छोड़ देते ।दशरथ सोच रहे थे कि ब्लाक पर चलकर कुछ करना चाहिए ताकि फ़िर से राहत सामग्री की गाडियां ले आई जा सके और लोगों की जान बच सके।
ब्लाक पर इलाके से आए हुए लोगों की भीड़ लगी थी और चारो ओर गहमा गहमी का वातावरण था । दशरथ के वहां पहुंचने के कुछ देर पहले ग्रामीणों ने ब्लाक के चावल का गोदाम लूट लिया था और चारों ओर अफरा तफरी मची थी।हालात ऎसे थे किब्लाक का कोई अधिकारी किसी बात का जबाब देने के लिए तैयार नहीं था।
पूरे दिन दशरथ प्रयास करते रहे मगर कोई सफलता हाथ नहीं लगी और हारकर वापस गलहौर चले आए।
कलका हाल देखकरउनके भीतर कहीं कोई उम्मीद नहीं बची थी मगर लगे रहने पर हीं कुछ हो सकता था, और इसके अलावे कोई रास्ता भी तो नहीं था ,सोचकर वे आज भी ब्लाक पर जाने के लिए तैयार थे ।अचानक दरवाजे पर दस्तक हुई तो उन्हें लगा कि झौरी और छेदी आ गए ,मगर सामने का दृष्य देखकर कांप गए। रमिया उनकी पत्नी पिंजरी को सम्भालते बच्ची को गोद में लिए घर में आई थी। पिंजरी पास आयी, अजीब सी कतार निगाहों से दशरथ को देखा और बेहोश हो गई।
दशरथ उसे उठाकर कमरे में ले गए। बिस्तर पर लिटाया, चेहरे पर पानी का छींटा मारा । पिंजरी को होश तोजल्दी ही आ गया मगर वह फ़ूट फ़ूटकर रोने लगी । दशरथ ने प्यार से पूछा-का हुआ पिंजरी?
पिजरी के मुंह से बोल नहीं फ़ूटे।
बहुत दिनों के बाद किसी ने पिजरी को धान कूटने के लिए बुलाया था। गई तो मालकिन अकेली थी,कहा कि अभी किसी काम में लगी हूं ,शाम को आ जाना। वहां से लौटकर अपने टोले के पास आयी तो देखा कि जूना की बछिया बाहर खड़ी है। बछिया भले जूना की थी मगर पिजरी रोज उसे कवरा देती थी। बछिया ने पिजरी को इस तरह देखा जैसे वह कुछ कह रही हो और ज्योहि पिजरी ने प्यार से उसका सिर सहलाया कि बछिया खडी खडी जमीन परलुढ़क गई। देखते देखते उसका जीभ बाहर निकल आया और वह मर गई। यह देख पिजरी की सांस टंग गई लगा जैसे वह खुद ही बेहोश हो जाएगी। रमिया ने बच्ची को सम्भाला और किसी तरह उसे घर लेकर आयी थी।
पिजरी बिस्तर पर थी। उसका बदन बुखार से गरम हो गया था। छेदी और झौरी आए तो पिंजरी का बुखार काफी तेज हो चुका था । दशरथ समझ नहीं पाए कि क्या करे जिस हाल में पिजरी थी ,जाना अपराध जैसा लग रहा था।
दशरथ को असमंजस में पडा देख पिंजरी ने कहा-मेरी चिन्ता मत करो मैं ठीक हूं
मगर उसका हाल देख दशरथ को जाना गवारा नहीं हुआ।रमिया के कहने पर दशरथ का ढाढस बंधा।ब्लाक पर जाना जरुरी था क्योकि सबकी उम्मीदें उन पर ही टिकी थी। वे पिजरी को काम पर न जाने का निर्देश देकर चले गए।
ब्लाक पर इलाके के दूर दराज के गांव से आए लोग अफसरों को, कर्मचारियों को गालियां बक रहे थे और राहत सामग्री की चोरी का इल्जाम लगा रहे थे। अखबारों मे रोज ही इस लूट और मरने वालो की खबर छप रही थी । शाम हुई तो अचानक दशरथ की निगाह उस पत्रकार पर पडी जिसने बुधुआ के जलने पर मदद किया था। वह जब चाहता, अफसरों के कमरे मे चला जाता और बाहर आ कर लोगों से बात कर पूछता कि उसके गांव में क्या हुआ।
दशरथ को लगा किशायद वह उनकी कोई मदद कर सके।
पास जाते ही उसने दशरथ को पहचान लिया – दशरथ जी आप ..?
दशरथ ने अपने गांव का हाल सुनाया तो वह बोल पडा-लगभग सारे गांव का तो यही हाल है लेकिन कल मै आपको पूरी सूचना दूंगा। सरकार की ओर से एक योजनाआई है कि गांव में काम पैदा करोलोगों से काम कराओ और उसकी मजदूरी दो। यह योजना आपके गांव के लिए भी आयी होगी। दशरथ झौरी और छेदी को इस बात को यकीन हुआ कि पत्रकार की मदद से अब गांव वालों के लिए वे कुछ कर सकेंगे। कल आने का वादा कर जल्दी से गलहौर के लिए रवाना हो गये।
दशरथ के मना करने के बाद भी पिंजरी हाथ आए काम को छोडना नहीं चाहती थी। कहीं से काम की खबर मिली तो दोपहर बाद फ़िर काम पर जाने के लिए तैयार हो गई। रमिया भाभी ने पिंजरी का देह छूकर देखा, बुखार उतर गया था इस लिए उसे भी कोई आपत्ति नही हुई। पिंजरी का ही ऐसा व्यवहार है कि ऐसे हालात में भी उसे कुछ न कुछ काम मिल जाता है, वरना काम कौन देता है आजकल।पिंजरी और रमिया गांव के बबूआन टोल में पहुंची तो देख कर भौचक रह गई कि मांझी टोल का सबसे बुजुर्ग जितिया गमछा पसार कर भीख मांग रहा है।
पिंजरी और रमिया की आंख भर आई।
जितिया का भरा पूरा परिवार था । भले ही उसके नाती पोते अलग अलग रहते थे ,मगर वे दोनों जून जितिया को बहुत आदर के साथ खाना देते थे और उसका खयाल रखते थे। मगर अब तो हालत ही कुछ और थे। जीवन भर स्वाभिमान के साथ जीने वाले जीतिया को बडे लोगों के टोले मे भीख मांगने पर मजबूर होना पडा था और कोई कुछ दे नहीं रहा था।
बगल से गुजरी तो जितिया पता नहीं क्यो पिजरी और रमिया को जाते हुए बडे गौर से निहार रहा था।
रमिया के साथ पिंजरी ढेके पर बैठी धान कूट रही थी। उनके सधे हुए पांव ढेके के लतमरूआ पर जाते, नीचे की ओर दबाव बनाते, ढेके का मूसल वाला सिरा उपर की ओर उठता, पैरों का दबाव कम हो जाता और मूसल धान पर गिरता। थोड़ा सा चावल बिखर जाता जिसे हर कुछ देर के बाद पिंजरी या तो रमिया जाकर ठीक कर देती । रमिया ने पिंजरी की ओर देखा तो वह बात समझ कर ढेका से नीचे उतर गई।ओखल के पास बिखरे हुए चावलों को एकत्रित करके ओखल के बीच में कर दिया और एक नजर अपनी डेढ़ साल की बच्ची पर डाला जो आंगन में सो रही थी।
झिंगुरी सिंह की बहू ससुराल गई थी और उनकी पत्नी दूसरे कमरे में बैठी गाय के दूध को बिलोकर मट्ठा निकाल रही थी ।इधर पिंजरी और रमिया अपने काम में मसगुल थे । रमिया ने ओखल के चावल पर नज़र डाल कर कहा-अब फटक लेते हैं।
पिंजरी ने कहा-दो चार मुसर और गिर जाने दो, चावल में चमक आ जाएगी।
एकाएक दोनों की नजर सामने गई और जैसे भक्क मार गया। वे कुछ समझ नहीं पायी कि कब जितिया माझी बिजली की तेजी से आंगन में समाया ,एक पल के लिए नज़र घुमाकर उचक्के की तरह चारों ओर देखा। एका एक उसकी नजर आंगन में  सोयी पिंजरी की बच्ची पर टिक गई। मन ही मन उसने कुछ फ़ैसला लिया। बच्ची को एक हाथ से बिजली की गति से उठाया और आगे बढ़ता हुआ ढेके तक आ गया।
ढेके का मूसल ज्योंहि उपर उठा उसने बच्ची को ओखल में डाल दिया ।
सबकुछ इतना जल्दी और इस तरह पलक झपकते हुआ कि पिंजरी के मुंह से बस एक घूटी सी चीख निकली और दोनो अपनी जगह पर जैसे काठ हो गई।
ओखल में पड़ी पिंजरी की नन्ही सी बच्ची जोर जोर से रो रही थी और जितिया ओखल का चावल हाथ से निकालकर कभी गमछे मे डालता, कभी मुंह में और पागलों की तरह हंसता ।पिंजरी और रमिया के पांव ढेंकी के लतमरुआ पर जोर से जमे थे, कही जरा सी चूक हुई तो इतने भारी ढेके का इतना बड़ा मूसल बच्ची के उपर जा गिरेगा ।रमिया और पिंजरी दोनों के चेहरे उड़ गए थे और वे समझ नहीं पा रही थी कि क्या करे ।
जितिया कभी चावल गमछे में उठाता, कभी फांकता और कभी कहकहे लगाता। बच्ची के रोने और उसके कहकहे की आवाज सुन कमरे में दूध बिलोती झिंगुरी सिंह की पत्नी बाहर निकलकर आयी और सामने का दृष्य देखकर उनके मुंह से चीख निकल गई।
जितिया ने उन्हे चीखते देखा तो उसके चेहरे पर भय की लकीरे दौड़ गयी और उसी तरह कभी चावल फाकता, कभी हंसता जितिया तेजी के साथ घर से बाहर निकल गया। झिंगुरी सिंह की पत्नी शोर मचाते हुए  जितिया के पीछे भागती चली गई । यह देख पिंजरी को जैसे काठ मार गया था। उसके पांव अब भी ढेके के लतमरूआ पर पूरे ताकत से जमे थे।
रमिया ने उससे कहा-जाओ पहले बच्ची को उठाओ
मगर पिंजरी को जैसे सुनाई ही नहीं पड़ा। वह डर रही थी कि कही नीचे उतरी, दबाव कम पड़ा और बच्ची के उपर मुसल गिरा तो क्या होगा। उसकी हालत रोने रोने जैसी हो गई।
रमिया ने ज़ोर दे कर कहा-जाओ, मेरा यकीन करो
कई बार उसने कहा तो पिंजरी ने पहले अपना एक पांव हटाया । वजन का अनुमान किया । ढेके का मूसल अब भी उपर की तरफ टंगा था। उसे अब यकीन हो रहा था कि रमिया पूरा वजन सम्भाल लेगी तो डरते डरते दूसरा पांव हटाया और झपटकर रोती हुई बच्ची को ओखल के भीतर से निकाल सीने से चिपका लिया।बच्ची अब भी जार बेजार रो रही थी।आहिस्ता से मूसल गिराकर रमिया भी उसके पास आ गई। बच्ची को सलामत देख राहत की सांस ली ।
तभी उन्हें बाहर कहीं शोर और जोरो की चीख सुनाई पडी और वे बाहर निकल गई।
बाहर निकलने के बाद पिंजरी ने जो कुछ देखा वह दिल को दहला देने वाला था। जितिया उसी तरह गमछे से कच्चा चावल निकाल मुंह मे फाकता, अट्ठहास करता भाग रहा था और उसके पीछे गांव के आठ दस लोग लाठी लेकर भाग रहे थे। अंततः जितिया गिर गया और उसके उपर लाठियों की बरसात होने लगी। सबसे आश्चर्यजनक बात थी कि लाठियो का प्रहार उसपर लगातार हो रहा था मगर वह उससे जरा भी विचलित हुए बिना गमछे की झोली से चावल मुंह में डाल रहा था और इस तरह हंस रहा था जैसे पेट भरने की खुशी मौत के गम से बहुत बडी हो।
उसके शरीर मे कई जगह से खून रिस रहा था मगर वह इस तरह बेताब था जैसे मरने से पहले पूरा चावल खा जाना चाहता था। आखिरी मुट्ठी मुंह में जाने के ठीक पहले उसके सिर पर लाठी का जोरदार वार हुआ, उससे भभक कर खून गिरने लगा और जब मुट्ठी का चावल उसके मुंह मे गया, पूरी तरह खून से सन चुका था। जितिया मर गया मगर देखने से ऐसा लगता था जैसे मरने से पहले भरपेट चावल खा लेने का संतोष उसके चेहरे पर था। यह दृष्य देखकर पिजरी और रमिया कांप गई और मुंह में आंचल ठुसकर सुबकते हुए माझी टोल की ओर भागी।
पिंजरी घर आई तो देखा कि दशरथ ब्लाक से आ चुके थे। दशरथ को यह जानकर संतोष हुआ था कि पिंजरी का बुखार उतार चुका है, मगर उसके काम पर जाने से नाराज़ थे। पिंजरी ने रोते हुए जितिया के बारे में बताया तो दशरथ कांप गये मगर कुछ नही कहा। मौत की आरही अनगिनत सूचनाओं की तरह ये भी महज एक सूचना थी। इस वक्त किसी की मौत पर रोने से ज़्यादा ज़रुरी था ज़िन्दा लोगों को मौत केमुंह में जाने से रोकना।
अगले दिन जब दशरथ निश्चित समय से पहले ब्लाक पर पहुंच गए ।थोड़ी देर इंतजार के बाद पत्रकार भी आ गया। उसका चेहरा उतरा हुआ था।
दशरथ आगे बढ़कर बोल पड़े -का हुआ ।
पत्रकार एकाएक उनकी बातों का जबाब नहीं दे सका। दशरथ को लगा जरूर कोई ऐसी बात है जो उनके लिए अच्छी नहीं है। राजबरन भी साथ में आया था वह बोल पड़ा-कुछ गड़बड़ तो नही हो गयापत्रकार साहेब….
पत्रकार ने लंबी सांस लेकर कहा-हां गडबड तो हो गया है
उसकी बात सुनकर सबकी आंखे फटी रह गई चेहरे का रंग उड़ गया-क्या हो गया?
आपके गांव के लिए चार हजार रूपये आए थे। उसे गांव में ही किसी काम का सृजन कर मजदूरों के बीच बांटना था। मगर वे खतम हो चुके हैं ।
दशरथ ने पूछा- कैसे खतम हो गये ? किसी और गांव में दे दिया क्या?
इस बार उसने साफ़ साफ़ कहा- नहीं, उसे आपके ही मुखिया जी ने निकलवा लिया है और वहां आफ़ीस मे इस तरह के कगाजात अंगूठे के निशान के साथ पेश किए जा चुके हैं कि वह पैसा गांव के मजदूरों के बीच बांट दिया गया है।
यह सुन कर सबकी भौहें तन गई।लगा कि सबकी धमनियों में रक्त खौल रहा हो। छेदी ने कहा-मगर काम तो कुछ हुआ नही।
इसके बाद पत्रकार ने जिस रहस्य का उदघाटन किया, सबका मुंह खुला रह गया। कोई सोच भी नहीं सकता कि मुखिया घटियापन के इस हद तक जा सकता है।
पत्रकार ने कहा – यह मेरे लिए भी सबसे ज्यादा चौंकाने वाली बात है कि पैसा के लिए जिस काम का विवरण दिया गया है वह काम कोई और नहीं आपके द्वारा की गई पहाड़ की कटाई है।
गांव के लोग सन्नाटे में आ गये।
दशरथ चकित थे। अपना खून पसीना एक कर दशरथ ने जिस पहाड़ को काटा था उसी के नाम पर मुखिया ने चार हजार रूपये हड़प लिए।मगर यह बहस का वक्त नहीं था।
दशरथ ने पूछा-अब क्या हो सकता है।
आप चिन्ता मत कीजिए मैं इसे अखबार में लिखूंगा और मुखिया को वह पैसा वापस करना पडेगा।इसका प्रमाण है कि मैं पहले भी इस मसले पर लिख चुका हूं।
पत्रकार ने इसका उपाय तो बताया मगर सबके चेहरे पर जो उम्मीद की लकीर खीची थी वह धूंधली पड़ गई।मुखिया की गांठ से पैसा निकालना आसान नहीं था। साथ आया राजबरन पासी इतना उतेजित हो गया कि वही पर चिल्ला चिल्ला कर मुखिया को गाली बकने लगा । दशरथ ने शांत किया और कहा कि गांव चलकर मुखिया से किसी तरह ये पैसा निकलवा जाय ताकि मजदूरो को उनको परिवारो को इस अकाल में बचाया जा सके।
दशरथ और रमिया की बात अनसुनी कर पिंजरी पंडिजी की बहू को तेल लगाने चली गई थी। लौट कर आ गई मगर आज वहां उसे कुछ नही मिला। उसने किसी से कुछ नहीं कहा मगर चलते हुए उसके पांव कांप रहे थे, चक्कर आ रहा था। एक बार ऐसा लगा जैसे चलते चलते गिर जाएगी । वह इस बात से बेहद निराश थी कि अब गांव में कोई काम नहीं मिलेगा। पता नही कैसे गुजारा होगा।आज वह इसी लिए काम पर गई थी कि जो कुछ मिलेगा उसे ही पकाएगी मगर कुछ मिला नहीं । संतोष था कि उसने एक मोटरी में चावल बांधकर धरन के उपर छुपाकर रखा था कि मुसीबत के दिनों मे काम आएंगे।
जिस दिन उसने ये चावल उपर रखा था, उसी समय पता नहीं कैसे उसके मन में न जाने कैसे यह ख्याल आ गया कि जिस दिन ये चावल खतम हो जाएगे उस दिन वह जिन्दा नहीं बचेगी। बचे हुए इस चावल से घर में चार लोगों का भोजन दस दिन तक तो चलेगा और इसके बाद जो होगा देखा जाएगा। आदमी के बस में जो हो वही तो कर सकता है।दशरथ की बातों से उसे एक उम्मीद बंध गई थी कि ब्लक वाला पैसा मिल जाए तो कुछ राहत होगी ।
घर आकर उसने चावल की हाड़ी थाल में उलट दियाऔर अनुमान किया तो चावल एक दिन से ज्यादा का नहीं था। पिंजरी ने सोंचा कि धरन पर बचा कर रखे गये चावल में से दो तीन दिन खाने भर चावल निकाल कर हाडी मे रख लें ताकि बार बार उतारने की नौबत नहीं आए। खटिया पर चढ कर घरन पर देखा तो उसके होश उड़ गए ।
वहां चावल की मोटरी ही नहीं थी।
इसका मतलब क्या हो सकता है? अभी तो इतना ज्यादा चावल था कि दस दिनो तक वह अपने पूरे परिवार को खिला सकती थी। एकाएक उसे ख्याल आया कि अभी तीन दिन पहले धनिया भाभी रो रही थी कि उनके पास एक जून का चावल नहीं है और उसके बाद से इस अकाल में भी जब पूरा गांव एक बेर खाकर जिन्दा है, कहां से दूनो बेर चावल बना रही हैं।
वह समझ गई कि ये काम और किसी का नहीं धनिया भाभी का है। मगर वह कुछ कह भी नहीं सकती थी इस ख्याल मात्र से ही उसे चक्कर सा आ गया कि कल सुबह क्या बनेगा ,क्या खिलाउंगी दशरथ और बच्चों को।कई दिनों से उसने अपनी खुराक में कटौती कर ली थी और आधा पेट ही खाती थी। उपर से कम्बख्त बुखार रोज आ ही जाता था। वह समझ नही पाई कि क्या करे।
दशरथ ब्लाक से लौट कर आए और जब उसे पता चला कि मुखिया ने वो सारे पैसे हड़प लिए है तो रही सही उसकी उम्मीद भी समाप्त हो गई। दशरथ ने गौर किया कि आज पिंजरी कुछ अधिक परेशान है लेकिन गांव के लोगों का हुजूम इस तरह उतेजित था कि वे एक पल भी रूक नहीं सके और लोगों के साथ मुखिया से मिलने के लिए चले गए।
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10 Comments

  1. Jab chaawal ka ek daana itna badhiya paka hai to poori handiya ka andaza lagaya ja sakta hai. badhai ho nilay bhai!

  2. achchha laga . kuchh bhashai sudhaar ho jayen to achchha rahega .kripya dekhen agar halaton kee jagah haalaat theek rahega .urdu ka hisaab to yahee kahta hai. prakashan se pahle yah raishumaree achchhee ada hai.

  3. रामजी भाई, यह प्रसंग लगभग आठ हजार शब्दों का है। यहां संपादित कर के चार हजार शब्दों में दिया गया है।

    जिस पत्नी की पीडा देख कर दशरथ पहाड काट सकते है, मरते समय उसकी अंतिम इच्छा पूरी करने के लिए क्या उसके हाथ का बना चावल नही खा सकते? जब कि उन्हे अहसास है कि अब पिंजरी के हाथ का बनाया कुछ नहीं मिलेगा।हो सकता है मैं गलत होऊ पर मुझे लगता है दाम्पत्य , ममता या जीवन के इन रिश्तो को चरित्र परिभाषित करते है,,व्याख्या नही। और व्याख्या के हिसाब से भी मृत्यु ममता से बडा मूल्य है।

  4. भारत के गाँव की प्रष्टभूमी का सजीव चित्रण किया है – बहुत बहुत बधाइयाँ

  5. बढ़िया है..बधाई भाई निलय जी को और आभार भाई प्रभात जी का..

  6. aankhen bhing gai padhte hue…. aakaal ka aisa vibhats drishya maine pehle nahi padha hai…. atyant prabhaavshaali….

  7. बहुत मार्मिक अध्याय है किन्तु मैं इसे प्रसंगों का संपुंज कहूँगा । अकाल और अमानवीयता का इतना दिल दहला देने वाला प्रसंग है जीतिया का व्यवहार और उसकी मौत । पिंजरी के रखे चावलों का चुराकर धनिया का दो समय भोजन करना । यह साधारण स्तर पर होनेवाले अपराधों की पराकाष्ठा है । लेकिन मुखिया का पहाड़ काटने के नाम पर फ़र्जी ढंग से चार हज़ार ले लेना तो सरकारी योजनाओं के साथ साधन-संपन्नों के व्यवहार का मेटाफर है । निलय जी ने इस अध्याय में एक दर्जन अध्याय अंटा दिया है इन सबका सूक्ष्म अंकन होना चाहिए । उन्हें बधाई देते हुये एक बात मुझे थोड़ी गले नहीं उतर रही है कि सामने प्राण प्यारी पत्नी की लाश पड़ी है और पति भात भकोस रहा है यह क्या करुणा और ममता से बड़े मूल्य का द्योतक है ? यह अतियथार्थवाद का चरम लगता है । बहरहाल । इस अध्याय के प्रसंगों बहाने एक गाँव बहुत बड़े भारतीय भूगोल के सच की तरह दिखता है । बधाई ।

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