जानकी पुल – A Bridge of World's Literature.

आज ‘इण्डिया टुडे’ में ‘मैं, स्टीव: मेरा जीवन, मेरी जुबानी’ पुस्तक की मेरे द्वारा लिखी गई समीक्षा प्रकाशित हुई है. आप उसे चाहें तो यहाँ भी पढ़ सकते हैं. उनका व्यक्तित्व मुझे बहुत प्रेरणादायी लगता रहा है. फिलहाल पुस्तक की समीक्षा- प्रभात रंजन 
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स्टीव जॉब्स के बारे में कहा जाता है कि तकनीकी के साथ रचनात्मकता के सम्मिलन से उन्होंने जो प्रयोग किए उसने २१ वीं सदी में उद्योग-जगत के कम से कम छह क्षेत्रों को युगान्तकारी ढंग से प्रभावित किया- पर्सनल कंप्यूटर, एनिमेशन फिल्म, संगीत, फोन, कंप्यूटर टेबलेट्स और डिजिटल प्रकाशन.  १० अक्टूबर १९९९ को ‘टाइम’ पत्रिका में प्रकाशित एक लेख में उन्होंने कहा था कि उनको कला और विज्ञान के संधि स्थल पर खड़ी चीजें प्रभावित करती हैं. जॉर्ज बेहम द्वारा सम्पादित पुस्तक ‘मैं स्टीव: मेरा जीवन, मेरी जुबानी’ को पढते हुए बार-बार इस बात का अहसास होता है कि वे एक ऐसे तकनीकविद थे जिन्होंने एक कलाकार की तन्मयता के साथ ‘एप्पल’ कंपनी के डिजिटल उत्पादों के साथ ऐसे प्रयोग किए जिसने तकनीक को मानव-जीवन का हिस्सा बना दिया. आइपॉड, आई पैड, आई फोन कुछ ऐसे प्रभावशाली उत्पाद रहे जिसने तकनीक और मनुष्य के संबंधों को युगान्तकारी ढंग से प्रभावित किया. जबकि वे न तो कंप्यूटर के हार्डवेयर इंजीनियर थे न ही सॉफ्टवेयर प्रोग्रामर, जबकि कंप्यूटर और उसकी तकनीक को लेकर उन्होंने जो प्रयोग किए उसने कंप्यूटर को ‘निजी’(पर्सनल) से निजतम बना दिया. स्टीव जॉब्स का व्यक्तित्व और उनके कल्पनाशील उत्पादों ने एक तरह से तकनीक युग को परिभाषित करने का काम किया है.
स्टीव जॉब्स खुद को ‘तकनीकी नेता’ के रूप में देखते थे, जो बेहतरीन लोगों को अपने साथ जोड़कर अपने तकनीकी सपनों को इस तरह से साकार करते कि ‘एप्पल’ के उत्पाद आम लोगों के लिए सपना बन जाते, श्रेष्ठता का एक ऐसा मानक जिससे लोग फोन या आई पैड जैसे अन्य  उत्पादों की तुलना करके देखने लगे. इस भागमभाग के दौर में, जिसमें लोगों के पास घर में रहने का समय नहीं होता एप्पल ने ऐसे उत्पाद बाजार में उतारे जिसमें लोग दौड़ते-भागते संगीत-सिनेमा का अपना शौक पूरा कर सकते थे, सबसे जुड़े रह सकते थे, अपने साथ अपने शौक को लेकर चल सकते थे. आइपॉड, आई पैड जैसे बेहतरीन उत्पादों के पीछे स्टीव जॉब्स का दिमाग था, जो बिजनेस के अपने आदर्श के रूप में गायकों के मशहूर समूह ‘बीटल्स’ को अपना आदर्श मानते थे. उनका मानना था कि ‘वे चार अति प्रतिभावान व्यक्ति थे जिन्होंने एक-दूसरे के नकारात्मक पक्षों को नियंत्रण में रखा. उन्होंने एक-दूसरे को संतुलित किया और कुल मिलाकर वे अंशों के जोड़ में महान थे. मैं बिजनेस को भी ऐसे ही देखता हूँ; व्यवसाय में महान कार्य कभी एक व्यक्ति द्वारा नहीं किए जाते, वे लोगों के समूह द्वारा किए जाते हैं.’ प्रसंगवश, उन्होंने ९ नवंबर १९९८ को ‘फॉर्चून’ पत्रिका के अंक में यह कहा था कि प्रसिद्ध गायक बॉब डिलन उनके जीवन के आदर्शों में रहे हैं, क्योंकि वे भी पिकासो की तरह विफलता का जोखिम उठाते रहे हैं. स्टीव ने अपने नए-नए प्रयोगों के साथ विफलता का यह जोखिम लगातार उठाया और हमेशा अपने समय से आगे चलने की कोशिश करते रहे. उनका यह मानना था कि ‘कब्रिस्तान में सबसे धनी व्यक्ति होने से मुझे कोई अंतर नहीं पड़ता… रात को बिस्तर पर जाते हुए कहना कि हमने कुछ आश्चर्यजनक किया है- यह मेरे लिए महत्वपूर्ण है.’
स्टीव जॉब्स की गहरी रूचि आध्यात्म में थी. १९७४-७५ में वे भारत में नैनीताल के पास नीम करौली बाबा के आश्रम में भी ज्ञान प्राप्ति के लिए आए थे. जेन बौद्धमत के बारे में उनका यह कहना था कि उसको वे इसलिए महत्व देते हैं क्योंकि उसमें बौद्धिक समझ की तुलना में अनुभव को महत्व दिया जाता है. लेकिन उनकी असली आस्था विज्ञान में ही थी. उनका यह प्रसिद्ध कथन इस पुस्तक में दिया गया है, ‘थॉमस एडिसन ने विश्व को सुधारने के लिए कार्ल मार्क्स और नीम करौली बाबा(हिंदू गुरु)- दोनों द्वारा किए गए संयुक्त प्रयासों से कहीं अधिक प्रयास किए थे.’

‘मैं स्टीव: मेरा जीवन मेरी जुबानी पुस्तक’ में स्टीव जॉब्स के मानस को सामने रखने का प्रयास किया गया है, उनके अपने कहे गए शब्दों के माध्यम से ही. उस स्टीव जॉब्स के मानस से जिसने तकनीक को लेकर हमारी सोच को निर्णायक ढंग से बदल कर रख दिया. संपादक ने पूरा प्रयास किया है विचारों का संयोजन पुस्तक में इस प्रकार से किया जाए कि पुस्तक आम पाठकों के लिए भी रोचक बनी रहे. कहना न होगा कि इस अर्थ में जॉर्ज बेहम की सम्पादित यह पुस्तक सफल साबित हुई है. हिंदी में नीरू ने प्रवाहमय अनुवाद किया है. पुस्तक से स्टीव जॉब्स का एक ऐसा व्यक्तित्व उभरकर आता है जो प्रेरणादायक है.

 पुस्तक: मैं, स्टीव: मेरा जीवन मेरी जुबानी, संपादक- जॉर्ज बेहम, अनुवाद- नीरू, प्रकाशक- वाणी प्रकाशन, मूल्य- १५०.
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