जानकी पुल – A Bridge of World's Literature.

हाल में ही मुंबई में ‘एटर्नल गाँधी’ शीर्षक से प्रदर्शनी लगी थी. आज बापू के जन्मदिन पर उसी प्रदर्शनी के बहाने गांधी को याद कर रहे हैं कवि-संपादक निरंजन श्रोत्रिय– जानकी पुल.
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पिछले दिनों मुंबई में एक “अद्भुत” प्रदर्शनी देखने का अवसर मिला! फ़ोर्ट एरिया के एक प्रसिद्ध संग्रहालय में एटर्नल गाँधी” शीर्षक से एक मल्टिमीडिया प्रदर्शनी आयोजित की गई थी जिसमें कंप्यूटर एवं मल्टीमीडिया के मध्यम से महात्मा गाँधी के जीवन और दर्शन की झाँकी प्रस्तुत की गई थी!

वातानुकूलित प्रदर्शनी में प्रवेश करते ही विभिन्न एलेक्ट्रॉनिक उपकरणों एवं संगीतमय आवाज़ों से आपका स्वागत होता है! कहीं गाँधी पर फिल्म चल रही है, कही “वैष्णव जन तो तेणे कहिए” तो कहीं “रघुपति राघव राजा राम” की धुन बज रही है! हर उपकरण के साथ किशोर और युवा चेहरे जो उत्साहपूर्वक दर्शकों को बता रहे थे की यहाँ उंगली रखिए तो यह धुन निकलेगी, ऐसे हाथ घुमाए तो वह स्वर निकलेगा, इस यंत्र में झाँकिए ….यह दिखाई देगा…वग़ैरह!

सब कुछ आधुनिक था वहाँ ! गाँधी को इक्कीसवीं सदी की कोशिशों के ज़रिए जानने की पेशकश! ई-हार्मोनीयम, ई-ट्रेन, ई-चरखा, काइलीडोस्कोप, ज़ाइलोफोन, और भी बहुत कुछ! बच्चों और युवाओं की ख़ासी भीड़ जमा थी वहाँ! सभी गाँधी को “एंजाय” कर रहे थे!

गाँधी को जानना ज़रूरी है! किस तरह हो सकता है यह सवाल अप्रासंगिक-सा लगे, विशेषकर युवा पीढ़ी को ..सो वा जान रही है अपने तरीके से! कंप्यूटर के बटनों से…विभिन्न साउंड डिवाइसस से….फिल्म स्ट्रिप्स से….! साबरमती आश्रम की नीरवता के बरक्स एक दूसरा ही माहौल! स्वयं गाँधी आकर इस प्रदर्शनी को देखते तो भौंचक्के रह जाते की उनके जीवन और विचार को इस हाइटेक तरीके से भी जाना जा सकता है!

एक उपकरण के पास एक युवा लड़की खड़ी थी! एक गोल-सा चक्र था … बल्बों से भरा हुआ..जिनमें से संभवतः अदृश्य किरणें निकल रहीं थी! मैंने पूछा यह क्या है! उसने बताया की “यह ई-चरखा” है! आप एक बार हाथ घुमाए जैसे की चरखा चला रहे हों तो ” रघुपति राघव राजा राम” की धुन सुनाई देगी! मैंने ऐसा किया ! बाद में मैने पूछा कि गाँधी के चरखे का मतलब आप समझती हैं? उसने कोई जवाब नहीं दिया! लेकिन वो गंभीरता से कुछ सोचने ज़रूर लगी!

लंगोटी,लाठी और बकरी की सादगी से भरे जीवन-दर्शन को इस तामझाम के सहारे समझना, हो सकता है मेरे गले ना उतर रहा हो लेकिन इस प्रदर्शनी में “सत्य के प्रयोग” करने वाले युग-पुरुष पर नये-नये प्रयोग थे! दृश्य-श्रव्य तकनीक के आधुनिकतम प्रयोगों से गाँधी को इस तेज़-तर्रार सदी में प्रासंगिक ठहराने की इलेक्ट्रॉनिक कोशिश! क्या सत्य, अहिंसा और सादगी की प्रतिमूर्ति को जानने-समझने के लिए युवा-पीढ़ी को वाकई किसी डिजिटल-लेज़र-इलेक्ट्रॉनिक तकनीक की अनिवार्यता है?

चरखा या सत्याग्रह,सविनय अवज्ञा हो या उपवास —हमारी आज़ादी की बुनावट में उपस्थित वे रेशे हैं जिन्हें अंतर्मन की गहराइयों से महसूस भर किया जा सकता है! गाँधी केवल अनुभव किए आ सकते हैं ” ओबजर्व” या “एंजाय” नहीं! रिचर्ड एटनबरो तो समझ में आ सकता है लेकिन ई-चरखा ………??????
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7 Comments

  1. सहमत हूँ आपसे… अब उन्हें कौन समझाए कि गांधी चरखे, पूनी, टोपी या लाठी का नाम नहीं … अपितु गांधी एक विचार है जो जीवित रहेगा .

  2. पता नहीं क्या मकसद था आयोजकों का . लेकिन गांधीवाद से तकनीकि की कोई जन्मजात शत्रुता नहीं है . नयी तकनीकि के युग में बेशक गांधी को नए तरीके से पहिचाना जाएगा . आखिर चरखा अपने समय की सब से हाईटेक मशीन थी !

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