जानकी पुल – A Bridge of World's Literature.

रवि बुले समकालीन हिंदी कहानी का जाना-पहचाना नाम है. भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित उनका कथा-संग्रह ‘आईने सपने और वसंतसेना’ पर्याप्त चर्चा भी बटोर चुका है. यह कम ही लोग जानते हों कि वे एक संवेदनशील कवि भी हैं. आज उनकी चार कविताओं को पढते हैं- जानकी पुल.
खोजो
खोजो दुनिया का सबसे पुराना शब्द
और उसे नाम दो कोई अपना-सा
खोजो दुनिया का सबसे पुराना रंग
और बनाओ कोई चित्र अच्छा-सा
खोजो दुनिया का सबसे पुराना नद
और प्यास को अपनी ले चलो उस तक
खोजो दुनिया का सबसे पुराना पंछी
और अपने हौसले के लिए मांग लो पंख
खोजो दुनिया का सबसे पुराना बीज
और रख दो अपनी सृष्टि की आकांक्षा के गर्भ में
खोजो दुनिया का सबसे पुराना सपना
और प्रतीक्षा करो उसकी प्रार्थना कुबूल होने की
खोजो दुनिया का सबसे पुराना गीत
और सजा दो उसे अपने महबूब के होठों पऱ
खोजो दुनिया का सबसे पुराना दीप
और जला कर, रोशन कर दो अपने देवता का घर।
*-*-*
शामिल हैं मेरे सपनों में तुम्हारे सपने भी
मेरे सपनों में शामिल हैं तुम्हारे सपने भी
शामिल होता है सृष्टि के सपने में जैसे घर का सपना
शामिल होता है दूसरे के दुख में जैसे कोई दुख अपना
शामिल होता है सूरज का तेज जैसे अपनी किरण में
शामिल होता है दिव्य विश्वास जैसे किसी की प्रतीक्षा में
मेरे सपनों में शामिल हैं तुम्हारे सपने भी
शामिल होती है बीज में जैसे पृथ्वी
शामिल होती है पंछी के परों में जैसे गति
शामिल होती है बूंद में जैसे नदी
शामिल होती है सुगंध में जैसे स्मृति
मेरे सपनों में शामिल हैं तुम्हारे सपने भी
शामिल होते हैं सितारे जैसे सफर में रात के
शामिल होते हैं खेत जैसे किसान की बात में
शामिल होते हैं फूल जैसे हंसी के साथ में
शामिल होते हैं खत जैसे प्रेम की किताब में
मेरे सपनों में शामिल हैं तुम्हारे सपने भी।
*-*-*
मेरा-तुम्हारा दुख
काश! कि सिगरेट की तरह होते तुम्हारे दुख
अपनी सुवर्ण सांसें देकर भी
ईश्वर से मैं खरीद लेता उन्हें
और अपने इश्क की चिंगारी से
एक एक कर सुलगा
जमा लेता उनका कसैला धुआं
अपने सीने में, जो तुमको रुलाता है।
अपने महल से खोई हुई कोई शहजादी हो तुम
भटक रही हो अनजान जलते हुए जंगल में
कच्ची लकडिय़ों के कड़वे
धुएं-से दुखों में घिरी
गाती हो तुम गीत
खोजता हूं मैं जंगल में तुम्हें
कि निकाल सकूं बाहर
अचानक कभी दिखकर
घने धुएं के बादलों में गुम हो जाती हो तुम
तभी मैं सोचता हूं
काश! कि सिगरेट की तरह होते तुम्हारे दुख।
*-*-*
तुम होगी जहां
(सोनाली के लिए)
तुम होगी जहां
धरती के सबसे सुंदर रंग होंगे वहां
ऋचाएं नृत्य करेंगी अदृश्य दिशाओं से आकर
हमेशा ही रहेगा वसंत वहां
नदियां वन पहाड़ मित्र बन जाएंगे
ऋतुएं पूरे उल्लास के साथ
उतरेंगी तुम्हारे आंगन में
तुम्हारी देहरी पर जलेंगे सदा उत्सव के दीप
देवता भी चाहेंगे तुम्हारे सुख में शामिल होना
सपने वहां किसी को छलेंगे नहीं, सितारों की तरह
तुम्हारी आत्मा के प्रकाश की तरह रहेंगे
हरेक हृदय में सहज, रोशनी बनकर
कोई राह नहीं भटकेगा वहां
हां, सच है कि कठिन है हमारा समय
मिथकों में बदल रही हैं सारी अच्छाइयां
उनकी आहटें दूर जा रही हैं हमसे
अपने लहुलूहान पांवों के साथ
और हम भी आंखें चुरा रहे हैं उनसे,
रोक नहीं पा रहे हैं उन्हें
लेकिन ऐसा कब तक होगा?
जर्जर हो चुकी होंगी जब सारी उम्मीदें
दरक चुके होंगे जब सारे विश्वास
तब लौटेंगे वे तुम्हारी ही शरण में
तुम अपनी बांहों का सहारा देकर
चूम लोगी उनकी थकी आंखें
खिला दोगी उनमें मासूम इच्छाओं के फूल
जीवन का समर तब भी होगा
पर मन में हौसला होगा, तुम्हारे साथ होने का
घायल तन तब भी होगा
लेकिन कोई हारेगा नहीं कभी
अपने ही जीवन से, वहां
तुम होगी जहां।
राजनांदगांव से प्रकाशित होने वाली कविता-पत्रिका मुक्तिबोध (संपादक : डॉ. मांघीलाल यादव) के 14वें अंक (जनवरी 2011) में प्रकाशित कविताएं।
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