जानकी पुल – A Bridge of World's Literature.

अदम गोंडवी की ग़ज़लों ने एक ज़माने में काफी शोहरत पाई थी. उस दौर की फिर याद इसलिए आ गई क्योंकि वाणी प्रकाशन ने उनकी शायरी की नई जिल्द छापी है ‘समय से मुठभेड़’ के नाम से. हालांकि इनमें ज़्यादातर गज़लें उनके पहले संग्रह ‘धरती की सतह पर’ से ही ली गई हैं. लेकिन कुछ नई भी हैं. यहाँ उनकी कुछ नई-पुरानी गज़लें-कुछ शेर- जानकी पुल.   



१.
जो डलहौजी न कर पाया वो ये हुक्काम कर देंगे
कमीशन दो तो हिन्दुस्तान को नीलाम कर देंगे.
सुरा व सुन्दरी के शौक में डूबे हुए रहबर
दिल्ली को रंगीलेशाह का हम्माम कर देंगे.
ये वन्देमातरम का गीत गाते हैं सुबह उठकर
मगर बाज़ार में चीज़ों का दुगुना दाम कर देंगे.
सदन को घूस देकर बच गई कुर्सी तो देखोगे
अगली योजना में घूसखोरी आम कर देंगे.

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आँख पर पट्टी रहे और अक्ल पर ताला रहे
अपने शाहे वक्त का यूँ मर्तबा आला रहे.
देखने को दे उन्हें अल्लाह कंप्यूटर की आँख
सोचने को कोई बाबा बाल्टी वाला रहे.
तालिबे शोहरत हैं कैसे भी मिले मिलती रहे
आये दिन अखबार में प्रतिभूति घोटाला रहे.
एक जनसेवक को दुनिया में अदम क्या चाहिए
चार छै चमचे रहें माइक रहे माला रहे.
३.
भुखमरी की ज़द में है या दार के साये में है
अहले हिन्दुस्तान अब तलवार के साये में है.
छा गई है जेहन की परतों पर मायूसी की धूप
आदमी गिरती हुई दीवार के साये में है.
बेबसी का इक समंदर दूर तक फैला हुआ
और कश्ती कागजी पतवार के साये में है.
हम फकीरों की न पूछो मुतमईन वो भी नहीं
जो तुम्हारी गेसुए खमदार के साये में है.
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बज़ाहिर प्यार की दुनिया में जो नाकाम होता है
कोई रूसो कोई हिटलर कोई खय्याम होता है.
ज़हर देते हैं उसको हम कि ले जाते हैं सूली पर
यही हर दौर के मंसूर का अंजाम होता है.
जुनूने-शौक में बेशक लिपटने को लिपट जाएँ
हवाओं में कहीं महबूब का पैगाम होता है.
सियासी बज़्म में अक्सर ज़ुलेखा के इशारों पर
हकीकत ये है युसुफ आज भी नीलाम होता है.
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मैंने अदब से हाथ उठाया सलाम को
समझा उन्होंने इससे है खतरा निजाम को.
चोरी न करें झूठ न बोलें तो क्या करें
चूल्हे पे क्या उसूल पकाएंगे शाम को.
६.
वह सिपाही थे न सौदागर थे न मजदूर थे
दरअसल मुंशी जी अपने दौर के मंसूर थे.
अपने अफसानों में औसत आदमी को दी जगह
जब अलिफलैला के किस्से ही यहाँ मशहूर थे.
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खुदी सुकरात की हो याकि हो रूदाद गांधी की
सदाकत जिंदगी के मोर्चे पर हार जाती है.
फटे कपड़ों में तन ढांके गुज़रता हो जहाँ कोई
समझ लेना वो पगडंडी अदम के गांव जाती है.
अदम गोंडवी का चित्र http://utsav.parikalpnaa.com से साभार.
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10 Comments

  1. फटे कपड़ों में तन ढांके गुजरता हो जहां कोई
    समझ लेना वो पगडंडी अदम के गांव जाती है.

  2. बेहतरीन कलाम पढ़वाने के लिये शुक्रिया प्रभात जी
    ज़माने की दुखती रगों को पहचानने वाले, और उसे अल्फ़ाज़ का पैराहन दे कर मुआशरे को नींद से जगाने वाले शायर ’अदम’ साहब को हमारा सलाम

  3. डलहोजी के वंशजों का कुकुरमुत्तों की तरह उगना या आज के परीद्रश्य में उनकी मोजुदगी का बहुत ही सटीक खाका खीचा है कही …बहुत ही सटीक (व्यंगात्मक ,सोचनीय )शब्दों का इस्तमाल किया इतिहास से लेकर आज तक की पीढ़ीयों की करतूतों का …..सुन्दर लेखन ….धन्यवाद जी !!!!!!!Nirmal Paneri

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