जानकी पुल – A Bridge of World's Literature.


आज के हालात पर पढ़िए विमल कुमार की यह कविता- जानकी पुल.
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तुम देखते रह जाओ

मैं नदी नाले तालाब

शेरशाह सुरी का ग्रांड ट्रंक रोड

नगर निगम की कार पार्किग

चांदनी चौक के फव्वारे

सब कुछ बेच कर चला जाऊंगा

मैं चला जाऊंगा बेचकर

अपने गांव की जमीन जायदाद खेत खलिहान

दुकानों, यहां तक कि अपने पूर्वजों के निशान

सब कुछ बेच कर चला जाऊंगा एक दिन

तुम देखते रहना बस चुपचाप

तंग आ गया हूं

इस देश की बढ़ती गरीबी से

परेशान हो गया हूं

नित्य नये घोटाले से

मेरी नींद जाती रही

जाता रहा मेरा चैन

इसलिए मैंने तय कर लिया है

अपने घर का सारा सामान पैक कर चला जाऊंगा

पर जाने से पहले

इस देश तो पूरे तरह बेचकर जाऊंगा

मैं ठहरा एक ईमानदार आदमी

नहीं तो बेच देता मैं अब तक कुतुबमीनार

अगर मिल जाता मुझे कोई खरीददार

बेच देता चार‌मीनार

इंडिया गेट, चंडीगढ़ का रॉक गार्डन, मैसूर का पैलेस

आखिर इन चीजों से हमें मिलता ही क्या है

नहीं होता अगर इनसे कोई उत्पादन

नहीं बढ़ता जी.डी.पी.

नहीं घटती मुद्रा स्‍फिति

तो बेच ही देना चाहिए

बाबा फरीद और बुल्ले शाह के गीत

बहादुर जफ़र का उजड़ा दयार, टीपू की तलवार

मैं धर्मनिरपेक्ष हूं

नहीं तो कब का बेच देता

अमृतसर का स्वर्ण मंदिर

बाबरीमस्‍जिद जो ढहा दी गयी

पुरी या कोर्णाक का मंदिर

सोमनाथ या काशी विश्‍‍वनाथ का मंदिर

लेकिन नहीं बेचा अब तक

पर मैंने सोच लिया है

अगर तुम लोग करोगे मुझे नाहक परेशान

उछालोगे कीचड़ मेरी पगड़ी पर

तो मैं इस देश की आत्मा को ही बेच कर चला जाऊंगा

है इस देश में इतना भ्रष्‍‍‍टाचार

तो मैं क्या करूं

है इस देश में इतना कुपोषण

तो मैं क्या करूं

है इस देश में इतना शोषण

तो मैं क्या करूं

अधिक से अधिक एफ.डी.आई. ही तो ला सकता हूं

बेच सकता हूं भोपाल का बड़ा ताल

नर्मदा नदी पर बांध

पटना का गोलघर

लहेरिया सराय में अशोक की लाट

कन्या कुमारी में विवेकानन्द रॉक

बंकिम की दुर्गेशनन्‍दिनी

टैगोर का डाकघर

वल्लोत्तोल की मूर्ति

बैलूर मठ

दीवाने ग़ालिब

अगर इन चीजों के बेचने से बढ़े विदेशी मुद्रा भंडार

तो हर्ज क्या है

बताओ, इस मुल्क के रोग का मर्ज क्या है

क्या हर्ज है

यक्षिणी की मूर्ति बेचने में

कालिदास को बेचने में

भवभूति के नाटकों को बेचने में

हीर रांझा और सोहनी महिवाल

और देवदास को बेचने में

मैं इस देश को उबारने में लगा हूं

संकट की इस घड़ी में

जब अर्थव्यवस्‍था पिघल रही है

पर तुम समझते ही नहीं

लेकिन तुम फौरन बयां देते हो मेरे खिलाफ

मैं तो इस देश के भले के लिये ही

इस देश को बेच रहा हूं

अपने मौहल्ले में पान की गुमती

किराना स्टोर को बेच दिया

बेच रहा हूं कोयले की खान

स्टील के प्लांट

कपड़ें की मिल

ताकि तुम्हारे बच्‍चे कुछ लिख पढ़ सकें

ताकि तुम्हारी दवा दारू का हो सके इंतजाम

न करो तुम इस तरह आत्महत्याएं

पर तुम कहते हो कि मैं नयी ईस्ट इंडिया कम्पनी ला रहा हूं

देश को गुलाम बना रहा हूं

आजादी का ये जज्बा ही है कि मैं बेच रहा हूं

क्योंकि आजादी से हमें नहीं मिली आजादी दरअसल

सचमुच, मैं तुम्हारे तर्क, विरोध, प्रर्दशन

जुलूस धरने और जल सत्याग्रह से अज़िज आ गया हूं

78 साल की उम्र में पेस मेकर लगा कर चला रहा हूं

डायबटिज का मरीज हो गया हूं

चश्मे का नम्बर बढ़ता जा रहा हर साल

घुटने होते जा रहे मेरे खराब

मेरा क्या है

अगर तुम लोग मुझे रहने नहीं दोगे

अपने देश में

तो मैं वहीं चला जाऊंगा

जहां से आया हूं सेवानिवृत होकर

तुम लोग ही भूखे मरोगे

सोच लो

मुझे अपने जाने से ज्यादा चिंता है तुम्हारी
इसलिए

पहले आओ पहले पाओ के आधार पर

मैं पहले आर्यवर्त

फिर भारत को बेचकर चला जाऊंगा

देखता हूं तुम लोग कैसे रहते हो इंडिया में

तुम लोग पड़े रहो इस गटर में जहलत में

जब तक तुम्हारी टूटेगी नींद

जागोगे मेरे खिलाफ

लामबंद होगे

मैं इस सोने की मरी हुई चिड़िया को बेचकर चला जाऊंगा

दूर बहुत दूर ……

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