मुकुल सरल हिंदी गजल की यशस्वी परम्परा में आते हैं. कल ‘कवि के साथ’ कार्यक्रम में इण्डिया हैबिटेट सेंटर में उनको सुनने का अवसर होगा. फिलहाल आज यहां उनकी गजलें पढते हैं- जानकी पुल.
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ग़ज़ल (1)
घर में जाले, बाहर जाल
क्या बतलाएं अपना हाल?
दिन बदलेंगे कहते–सुनते
बीते कितने दिन और साल!
तुम ये हो, हम वो हैं, छोड़ो
अब तो हैं सब कच्चा माल
और बुरा क्या होगा, सोचो
एक ही मौसम पूरे साल
सदियां बदलीं, हम न बदले
मुंह बाये हैं वही सवाल
ईद मुबारक तुमको यारो
अपने रोज़े पूरे साल
जीवन क्या है, क्या बतलाएं
रोटी कच्ची, पक गए बाल
(2)
बदल गया जीवन का राग
सपने में भी भागम–भाग
रोटी बदली, चूल्हा बदला
और बदल गई अपनी आग
आप चिकन–बिरयानी खाएं
यहां नहीं है रोटी–साग
पंडित जी एक सौ एक मांगे
कहां हमारे ऐसे भाग!
कल की नींद की ख़ातिर यार
आज ज़रा तो जल्दी जाग
(3)
कुछ भी नहीं है पास, एक उम्मीद है
बस बात यही ख़ास, एक उम्मीद है
तकदीर की नहीं, न खुदाओं की कोई आस
हिम्मत है अपने पास, एक उम्मीद है
बरखा न आई तो मैं बन जाऊंगा बादल
ऐसी है मेरी प्यास, एक उम्मीद है
ऐसे तो कोई ख़ास नहीं है मेरा सनम
उसमें यही है ख़ास, एक उम्मीद है
फिर से खिलेंगे फूल, फिर आएगी बहार
तू है जो आसपास, एक उम्मीद है
डरते हैं वो यूं हमसे, डराते जो सभी को
एक हौसला है पास, एक उम्मीद है
हां, जानता हूं हंसने को कुछ भी नहीं बचा
पर क्यों रहूं उदास, एक उम्मीद है
ज़िंदा हूं मैं, ज़िंदा है मुहब्बत भी जहां में
ज़िंदा है ये एहसास, एक उम्मीद है
तुम पूछते इस दौर में कहता हूं क्यूं ग़ज़ल
एक दिल है मेरे पास, एक उम्मीद है
(4)
एक छुअन के सौ एहसास
एक पल दरिया, एक पल प्यास
इतने ही नज़दीक हैं वो
जितना दिखता पर्वत पास
तुम क्या समझो, तुम क्या जानो
दरिया को भी लगती प्यास
आंगन–आंगन में काई है
आंखों में उग आई घास
बदन छुड़ाकर लौट गया
खुशबू छोड़ गया है पास
क्या बतलाऊं कौन है वो
सबमें शामिल, सबसे ख़ास
(5)
दो घड़ी तन्हा भी बैठा जाए
कैसे हो खुद से ये पूछा जाए
नहीं दिखता बहुत करीब से भी
तुमको कुछ दूर से देखा जाए
1 Comment
saral sabdo mein ye gazale likhi gai hain. behtarin.kalawanti