जानकी पुल – A Bridge of World's Literature.

सिमोन द बोउआर का प्रसिद्ध कथन है “स्त्री पैदा नहीं होती, बनाई जाती है”। ठीक इसी तरह पुरुषों के लिए भी यह कहा जा सकता है कि पुरुष पैदा नहीं होते, बनाए जाते हैं। शालू शुक्ल की यह कविताएँ विविध स्वर वाली कविताएँ हैं जिनमें से एक पुरुष निर्मिति की ओर ही ध्यान दिलाती है। इसके साथ किसी अपने की पुकार पर लौट आने, ठहरने का निवेदन भी है, देवताओं की पूजा-अर्चना करने के बनिस्पत अपने आस-पास के लोगों की सहायता करना भी है, हाउसवाइफ का दुख भी है और ‘जहाँ न पहुँचे रवि वहाँ पहुँचे कवि’ जैसे कहावतों पर शिकायतें और सवाल भी है। शालू शुक्ल लखनऊ, उत्तर प्रदेश की रहने वाली हैं। उनकी कविताएँ देशज, आजकल सहित विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हैं। इस वर्ष उन्हें काव्य-संग्रह ‘तुम फिर आना बसन्त’ के लिए शीला सिद्धांतकर पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया है – अनुरंजनी

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