आज रवींद्रनाथ ठाकुर(टैगोर) की जयंती है। हिन्दी में रवींद्र संगीत की चर्चा कम होती है। रवींद्र संगीत पर यह आलेख लिखा है युवा लेखक प्रचण्ड प्रवीर ने। आप भी पढ़ सकते हैं-
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रवीन्द्रनाथ ठाकुर (७ मई १८६१- ७ अगस्त १९४१) की बहुमुखी प्रतिभा से हमें विरासत में कई कविताएँ, कहानियाँ, उपन्यास, चित्र और गीत-संगीत प्राप्त हैं। साहित्य में रुचि रखने वाले हिन्दीभाषी उनके उपन्यास गोरा, नौकाडूबी, नष्टनीड़, चोखेरबाली, घरे बाइरे आदि; प्रसिद्ध कहानी – पोस्टमास्टर, काबुली वाला, मनिहारा आदि, भारत और बांग्लादेश के राष्ट्रगान और उनके कविता संग्रह भानुसिंह ठाकुरेर पदावली, गीतांजलि, गीतमाला आदि से भली-भाँति परिचित हैं। दिल्ली में इंडिया गेट के पास जिन्हें भी राष्ट्रीय संग्रहालय जाने का अवसर मिला होगा, उन्होंने रवि बाबू की पेंटिग भी देखी होगी। उनके विपुल सृजन से दग्ध आलोचकों ने यहाँ तक कहा कि वे शायद पैरों से भी लिखते होंगे।
बहरहाल, रवि बाबू की प्रतिभा का एक महत्त्वपूर्ण आयाम हिन्दी भाषियों से बहुधा छूट जाता है वह है रवीन्द्र संगीत। संक्षेप में रवीन्द्र संगीत रवि बाबू के २२३० गीतों को कहते हैं जिनका संगीत भी उन्होंने ही रचा। गीतों के संदर्भ में यह कहना उचित है कि दूसरी भाषाओं की गीत नहीं समझ आने के कारण हम उनका आस्वाद नहीं ले पाते। इसी कारण से हम दक्षिण भारत के बहुत से सुन्दर फिल्मी गीत नहीं गुनगुना पाते। भाषा से अपरिचित होने के कारण न तो हम उसे सही-सही दोबारा उच्चारित कर पाते हैं, इसलिए याद भी नहीं रख पाते गुनगुनाना तो बहुत दूर की बात हो जाती है। किन्तु बाङ्ग्ला भाषा के हिन्दी भाषा से कुछ साम्य के कारण कुछ गीतों को हम थोड़ा बहुत समझ सकते हैं और याद भी रख सकते हैं। आज रवीन्द्र जयंती पर हम उनके कुछ प्रसिद्ध गीतों को सुनते हैं।
भाषाओं के गीत के विनिमेय भारत में आम बात है। कई हिन्दी गीत दक्षिण भारतीय फिल्मों में अपनाए गये और साथ में हिन्दी भाषा में कई दक्षिण भारत और अन्य भाषाओं से गीत अपनाए गये। फिल्म ‘अभिमान’ (१९७३) का प्रसिद्ध गीत ‘तेरे मेरे मिलन की ये रैना’ रवीन्द्र संगीत के ‘योदि तारे नाइ चिनि गो’ से प्रभावित है। (सुनिए हेमंत मुखोपाध्याय का यह गीत – https://www.youtube.com/watch?v=lIEEXmcPttU )। फिल्म ‘याराना’ (१९८१) का प्रसिद्ध गीत – छू कर मेरे मन को – ‘तोमार होलो शुरु अमार होली शारा’ का हिन्दी रूपान्तर है। (सुनिए हेमंत दा का यह गीत – https://www.youtube.com/watch?v=GR1TcxF6y9o )।
रवीन्द्र सङ्गीत से परिचय के लिए यह भी समस्या है कि उसे इतनों ने गाया है कि समझ नहीं आता किसका गाया गीत सुना जाना चाहिए। हमें इसकी शुरुआत रवीन्द्र सङ्गीत के कुछ प्रसिद्ध फिल्मी रूपान्तर से करनी चाहिए।
- तुमि रोबे नीरोबे – हेमंत कुमार, लता – कुहेली (१९७१) – इस प्रेम गीत का अंग्रेजी अनुवाद स्वयं गुरुदेव ने भी किया था। हालांकि वह अनुवाद की दृष्टि से उत्तम नहीं समझा जाता। हिन्दी में इसका मानक अनुवाद सहजता से इंटरनेट पर उपलब्ध हो, ऐसा लगता नहीं। इस गीत के मध्य में जब लता ऊँचे स्वर में ‘मम दुख: वेदनो’ से प्रवेश करती हैं, तब वह हेमंत कुमार की आवाज़ पर भारी हो जाती हैं।
- जे राते मोर दुआर गुली – देवब्रत विश्वास – मेघे ढाका तारा (१९६०) – ऋत्विक घटक की बहुप्रशंसित फिल्म जो विश्व सिनेमा की धरोहर समझी जाती है, उसका यह गीत फिल्म के कथानक की दृष्टि से भी बहुत महत्त्वपूर्ण है। फिल्म विधा में भी यह गीत बहुत विचार जाता है। इस गीत के अंत में चाबुक की ध्वनि करुणा को विशिष्ट ऊँचाई देती है। प्रार्थना जैसे इस कविता में गायक की दारुण दशा दिखाना इस गीत की विशेषता है।
- माझी तोर नाम जानि ना – पंडित ए. कानन – मेघे ढाका तारा (१९६०) – उपरोक्त फिल्म का दूसरा गीत उद्धृत करना आवश्यक जान पड़ता है। यह बाऊल गीत अपनी स्वरूप के अनुसार शांति और मधुरता लिए हुए है।
- आकाश भोरा सूरजो तारा – देवब्रत विश्वास – कोमल गान्धार (१९६१) – बङ्गाल विभावन त्रासदी पर बनी ऋत्विक घटक की इस फिल्म में यह गीत सुबह में सुनना चाहिए। प्राकृतिक सौन्दर्य से अभिभूत मानव का स्फुरित करने वाला गीत ध्यान से सुनने में आसानी से समझ आ जाता है। हिन्दी के नवोदित कवियों को इस गीत के आन्तरिक लय पर ध्यान देना चाहिए।
- पुराने सेई दिनेर कथा – हेमंत कुमार – अग्निश्वर (१९७५) – मित्र मण्डली में पुराने दिनों को याद करते हुए यह गीत अविस्मरणीय है। उम्र बढ़ने के साथ-साथ लोग अपने पुराने दिनों की सुख-दुख की आँखों देखी कथा याद करते हैं।
- बाजे कोरुनो शुरे – रुमा गुमा- तीन कन्या- मोनिहारा (१९६१ ) – शास्त्रीयता लिए हुए इस मधुर गीत का करुण और आर्द्र पुकार मुख्य आकर्षण है। भूतहा फिल्म की यह गीत कुछ कँपा देने वाली अनुभूति प्रकट करती है।
- आमि चिनि गो चिनि गो तोमारे – किशोर कुमार – चारुलता (१९६४) – सत्यजित राय की महान फिल्म का देवर-भाभी के बीच गाया यह गीत बहुत प्रसिद्ध है।
- सावन गगने घोर घनघटा – लता – गैर फिल्मी गीत – फिल्म से सम्बन्धित न होते हुए भी यह गीत बहुत प्रिय होने के कारण उद्धृत करना ठीक जान पड़ता है। जब रवीन्द्रनाथ भानुसिंह नाम से विद्यापति जैसी पदावली लिखने का प्रयास करते थे, यह कविता उस समय की है। इसे सावन की बारिश में सुनना चाहिए, जब घोर घनघटा में कोई युवती अपने प्रिय से मिलने को आतुर छुपती-भीगती चली जा रही हो।
अंत में यह विचारणीय है कि क्या रवीन्द्रनाथ अपने अंतिम वर्षों में चित्र बनाते हुए विष्णुधर्मोत्तर पुराण के उस गुह्य सूत्र को उद्घाटित करने में लगे थे कि चित्रकला का सङ्गीत से सम्बन्ध है? यदि दार्शनिक सत्य को हम स्वीकार करते हैं तो त्वरित प्रश्नयह उठता है कि इन गीतों से सम्बन्धित चित्र किसी ने बनाए हैं?