जानकी पुल – A Bridge of World's Literature.

विस्थापन होता एक बार है लेकिन उसका प्रभाव, उसकी पीड़ा जीवन भर साथ चलती है। ऐसे ही एक विस्थापित व्यक्ति की कहानी है ‘रैपिडो’, जिसका नाम भी महत्त्वूर्ण नहीं रह जाता, उसका काम ही नाम की तरह इस्तेमाल किया जाता। नताशा की यह कहानी ऐसे ही विस्थापित लोगों की ओर हमारा ध्यान खींचती है साथ ही उन सभी पेशों, जिनके प्रति हम असंवेदनशील रहते हैं,की ओर भी सोचने को बाध्य करती है। पढ़िए नताशा की कहानी- अनुरंजनी     

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                                  रैपिडो

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यह शहर नया था। अपने नयेपन में पैनेपन की परत लिए हुए। पुराने  शहर में इतने अपने लोग थे कि जिस राह निकलो, प्रश्न वाचक निगाह स्वागत को खड़ी मिलती और यहाँ शायद ही कोई निगाह आपकी तरफ़ उठने का जोखिम ले। राशि अपने स्वाभावानुकूल इस शहर में गुम थी, शहर की ओर पीठ किये अपना सफर तय कर रही थी।

         उस  शाम ऑफिस से लौटते हाथों में कोई  पम्पलेट थमा गया। छोटे- बड़े शहर के बीच की कुछ चीज़ें हैं जो दोनों के बीच की समानता का एहसास कराती हैं। पम्पलेट पर नज़र गई, लिखा था…पुरानी बाइक लाएँ और नई ले जाएँ…बाइक पढ़कर उसे हठात रैपिडो की स्मृति तैर गई।

ये भी एक हास्यास्पद संयोग था… उसने इधर-उधर पलटा, कहीं कंपनी का नाम नहीं था । शायद किसी बिचौलिए की ओर से होगा। फिर भी हो सकता है रैपिडो के काम आ जाए ! राशि ने फोन मिलाया। 

“दिस नंबर डज़ नॉट एग्जिस्ट!” कई बार कोशिश की पर वही कम्प्यूटर की संवेदनहीन आवाज़…

                 राशि स्तब्ध! अपना दुःख जो थोड़ी देर के लिए भूल चुकी थी वह पुनः दुगने आवेग से उसके रक्त में जा घुला। इस बार तीव्रता पहले की अपेक्षा तीक्ष्ण थी। रक्त के संचार और दिमाग़ में ये शब्द तालमेल बिठाने की बेवजह कोशिश कर रहे थे – दिस नंबर डज़ नॉट एग्जिस्ट!

उसे याद आया .रैपिडो पूरी तरह लौट गया है अपनी दुनिया में…अब उससे बात भी नहीं हो सकती शायद। बाइक एक बहाना था, दरअसल राशि उसकी ख़बर लेना चाहती थी। वह विस्थापित होकर आया था फिर विस्थापित चला गया है। उसे उम्मीद थी कि उसकी डीह सुरक्षित है। वह आंधी की तरह आया और चला भी गया। जितना उतावला वह ख़ुद था उतना ही उसका जीवन भी। उसका लौट जाना राशि के मायने नहीं रखता फिर भी  इस खबर से वह आहत है…क्यों? 

कोई ऐसा अपरिचित,  जिसपर बेवजह झल्ला अपना  क्रोध जाहिर कर सकती थी.. उसका नाम तक नहीं पूछा… अब मुसीबत में ऐसा कौन होगा जिससे मदद मांग सकती थी वो! उसके आते ही दृश्य बदल जाता था, बैकग्राउंड म्युज़िक भी। उसे फ़र्क पड़ रहा है शायद इसलिए कि दोनों का दुःख एक दूसरे को जोड़ रहा था। दोनों एक बार एक-दूसरे के सामने रोए थे…जो आंसुओ का साक्षी बन जाता है कहीं-न-कहीं उनके बीच अनकहा रिश्ता आकार ले लेता है। इसलिए, 

शायद इसलिए ही इस ख़बर से उसे फर्क पड़ रहा है!

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              गैरेज के बाहर एक छाया,  दुपट्टे से परेशान थी लेकिन हवा के रुख़ से सिनाजोरी आसान नहीं थी। तल्ख़ धूप ! यदि अमलतास न हो तो बेरहम  दुपहर इस शहर की देह सिझाती रहे। किसने पनाह नहीं ली इस अमलतास के नीचे! गाड़ी की एसी बंद कर इस पेड़ के नीचे खड़े होते हुए लोग भी देखे गये हैं। और अब तो गिनती के रह गये हैं अमलतास!  पहले फ्लाईओवर के नीचे दफ़्न हुए अब मेट्रो की खुदाई में मिट रहे  नाम-ओ-निशान भी…

       अमलतास निहारते राशि के ज़ेहन में कुछ  पंक्तियाँ  तैर जातीं। घड़ी-घड़ी मोबाइल  निहारती  जैसे  किसी की राह देख रही थी। अपने औसत रंग-रूप और कद काठी के बरक्स उसमें एक ऐसा आकर्षण था कि आने जाने वाले नज़र भर देख ही लेते। यह बात उसे नागवार गुज़रती। उसे दृश्य में उपस्थित रहकर भी अदृश्य रहना बचपन से पसंद था। अब इस हीन भावना से बाहर निकलना मुश्किल था, उसने कभी कोशिश भी नहीं की। यह छाँव राशि का नियमित स्थान था जहाँ वह ऑफिस जाने के लिए वाहन का इंतजार किया करती थी। रिक्शे, ऑटो उसके बजट से बाहर थे। अच्छा विकल्प ‘ बाइक टैक्सी सर्विस’ रुप में उसे मिला था। राशि का घर जिस संकरी गली में स्थित था वहां के लोगों का दिमाग भी उतना ही  संकीर्ण इसलिए  दरवाज़े पर यह सुविधा नहीं ली जा सकती थी। मोड़ तक आना ही था।

“कहाँ जाना हे मिस?” 

एक तेज़ रफ्तार की बाइक अचानक सामने आकर रुकी। फ़ासला इतना कम था कि राशि पीछे गिरते- गिरते बची।

“गज़ब बत्तमीज़ है “? राशि का पारा सातवें आसमान पर था ।

सोरी मिस ! ये पुरानी बाइक है थोड़ी दिक्कत करती है …”मे रेपिडो…बुकिंग आई थी…कहाँ जाना है ?” रैपिडो एक सांस में सब बोल गया । बोलने की रफ़्तार भी उसके बाइक की रफ़्तार जितनी ही।

रोज़ इस प्रतीक्षा का अंत इस सवाल से ही होता, कहाँ जाना है ? जवाब वही रोज़ वाला – “बोर्ड ऑफिस! लेकिन तरीके से चलाइएगा, समझे !” रैपिडो की स्पीड भांप चुकी थी राशि।”

“हाम ऐसे ही चलाते हे मिस ,चलना हे कि नई ?”

आज आवाज़ अलग थी और  टोन भी, उच्चारण पर भी ध्यान देने का वक़्त नहीं था….फिर भी उसे अपनी भड़ास तो निकालनी थी।

“दो मिनट शो कर रहा था और आपको दस  मिनट लग गये। लेट था तो राइड कैंसिल कर देते, ओके क्यों किया ?” कहती हुई राशि ने  पीछे की सीट ली।

“बाफ्रे! आप इतना गुस्सा क्यों हो मिस ? “नई जा सक्ते तो केंसिल कर दू! रैपिडो ने राशि को हैलमेट पकड़ाते हुए कहा…

“चलिए  चुपचाप, पहले ही लेट हूँ मैं!”

“ओटीपी?” – रैपिडो ने काम भर अपनी आवाज़ को तकलीफ़ दी ।

“1340”

बाइक स्टार्ट हुई। राशि ने हेलमेट पहना और राहत की साँस ली। इस धूप में जैसे किसी ने कवच दिया हो। वह इस कवच में खुद को समेट लेना चाह रही थी। इस शहर में रिश्तेदारों की कमी नहीं जो बड़ी-बड़ी तर्जनी उँगलियाँ और  लिजलिजे कंधों का रोना रोते हुए नसीहतों का बोझ पीठ पर  लिए घूमते हैं।  किसी ने देख लिया तो घर पर ख़बर पहुँच जाएगी कि लड़की बाइक पर किसी लड़के के साथ थी ।

“मिस आपका डेस्टिनेशन एग्ज़ेक्ट कहाँ हे?” रैपिडो की बहुत छोटी आँखें  मोबाइल में कुछ ढूँढ रही थीं।

“बोर्ड ऑफिस  कहा न!”

ऑफिस से आगे निकलते ही उसने हाथ हिलाया, हाँ बस यही! लोकेशन बोर्ड ऑफिस है मगर मेरा ऑफिस थोड़ा पहले आ जाता है, कहते हुए उसने 50 का नोट आगे किया। 

“मिस! लेकिन  पैसे तो बोर्ड ऑफिस के ही लगेंगे।” रैपिडो ने ब्रेक लेते हुए टोका।

ब्रेक थोड़ा झटके वाला था सो राशि रैपिडो की पीठ की तरफ झुक सी आई। 

बहुत ही बेकार रैपिडो है यह, राशि ने मन-ही -मन कोसा।

“क्यों? आप यहीं राइड रोक दीजिये। जितना बिल आएगा वही दूंगी मैं।” राशि जैसे इस सवाल के लिए तैयार थी ।

 रैपिडो खीझा। बात सही थी तो हुज्जत करने का सवाल नहीं था। फिर भी उसने एक चांस लिया- “मिस ! जहाँ जाना हो वही की लोकेशन दिया कीजिए आगे से।”

राशि के लिए यह सुनी सुनाई नसीहत थी, सुनकर रह गई। 

“3 रूपा चेंज़ नहीं हे मिस ” ! उसने हेलमेट उतार कर हैडिल में लटकाते हुए कहा।

राशि की निगाह ऑफिस परिसर में घूम गई। पार्किंग में बॉस की कार! सत्यानाश ! 

“उफ्फ़! ज़रा जल्दी करो !” 

चेंज ढूढते हुए रैपिडो को उसने थोड़ा गौर से देखा। बिहारी नहीं था। चपटी नाक, छोटी आँखे लेकिन मुसकुराती हुई, गौर वर्ण जिसपर समय की मार ने एक परत चढ़ा दी थी। अब उसने नोटिस किया कि उसकी भाषा में नेपाली टोन था।

“तुम थापा हो न ! …वो ऽऽऽ क्या कहते हैं बहादुर!” राशि थोड़ी अनौपचारिक हुई। 

हठात  मधुर ध्वनि से रैपिडो थोड़ा चौंका मगर बहादुर सम्बोधन उसे रास न आया… “ओ होऽऽऽ मिस! आप बिहारी लोग बी न.. मिच!.. छोटी आँख, नाक देखते ही बादुर कहने लगते हो… “

रैपिडो से दो रूपये का सिक्का वापस लेते ही राशि ने एक्ज़िट बटन दबाया..

 “अच्छा.. ठीक है देर हो रही मुझे.”

वह मुड़ी ही थी कि पीछे से फिर आवाज़ आई।

मिस… !

“हाँ ..” 

“आंऽऽऽ कीतनी देर मे लोटेंगी ?”

एक क्षणिक हॉट टॉक के बाद माहौल हल्का हुआ था। उस पर अब ये बेमतलब का सवाल राशि को अजीब लगा ।

“मुझे राइड नहीं मिली तो मे रुका रहूंगा।”

“क्यों? राशि की भंवें तनी।”

“राइड में कमीशन लग जाता है ज्यादा बचता नहीं, सो ऑफलाइन चलूंगा। और एक  रूपया  एरजेस्ट बी कर दूंगा।” रैपिडो का लहज़ा मिन्नत के समीप था ।

“ओ..! ठीक ठीक ..”

बस, अब आज के लिए वह निश्चिन्त हो गया। हैलमेट बाइक की हैडिल में टांग बेतक़ल्लुफ़ी से सीट पर मधुर संगीत का आनंद लेने लगा…अच्छा रहेगा मिस को ही रोज़ का कस्टमर बना लेता हूँ, जब तक  कॉमर्शियल नंबर की बाइक नहीं मिल जाती। इस रूट पर चेकपोस्ट बी नई है…रैपिडो के दिमाग़ में प्लानिंग चल रही थी और मोबाइल में सुमन केसी का गीत…

…कति माया गर्छयौ ,भन्नै सक्दिनऽऽऽ,मबिना बाँच्छ्यौ ,सोच्नै सक्दिनऽ…!

अभी गाना अंतरे पर पहुंचा ही था कि भ्रम हुआ राशि  गुस्से से लाल उसकी ओर बढ़ रही थी। रैपिडो  हड़बड़ाया, फिर संभला… “अरे!ये सचमुच की आ रही “

“अबी चलेंगी मिस? “

हाँ तुरंत! लेकिन ये बंद करो।” इशारा मोबाइल की ओर था।

समय की नज़ाकत देख रैपिडो ने गाना पाउज किया, राशि  झटके से बैक सीट पर बैठ गई । इस बार उसका हाथ रैपिडो के कंधे पर था। 

सारी तैयारी होने के बाद भी गाड़ी स्टार्ट नहीं हुई।

“क्या हुआ… चलो!” राशि की आवाज़ तेज़ थी ।वह एक पल भी वहां रुकना नहीं चाह रही हो जैसे।

“मिस ये हटा लो आप!” रैपिडो ने दाहिना कंधा उचकाते हुए कहा। सुमन के सी के गीत को कोई नज़रअंदाज़ करे, रैपिडो नहीं सह सकता…

अपमान की ज्वाला में जैसे किसी ने घी का पूरा कनस्तर उड़ेल दिया हो। राशि को खुद पर क्रोध आया, फिर भी… नियंत्रण करना था। उसका जी हुआ कि फौरन उतर जाए पर दूर – दूर तक न कोई रिक्शा दिखा न ही मेन रोड। उसे अविलंब वहां से निकलना था। एक तो धूप, उस पर राशि का गर्म मिज़ाज! रस्ते भर चुप्पी रही । एक मलाल जो राशि के मन को साल रहा था । यह नौकरी भी गई ! 

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  “बड़ी जल्दी लौट आई?” भाभी अचंभित घड़ी की ओर देख रही थी।

मिनट भर  की  चुप्पी के बाद राशि ने खुशखबरी दी  – “नौकरी चली गई.. भाभी.!”

“फिर से…!”

एक ताना तीर की तरह जा लगा… “अपना तेवर थोड़ा कम कीजिये, नहीं तो लुढ़कते रहिएगा..”

एक तो पहले ही मुसीबत, ऊपर से इनकी नसीहत..बचने का उपाय एक ही था बाथरूम की शरण। दरवाज़े की तेज़ पटक ने भाभी को भी फिलवक़्त चुप रहने की हिदायत दी। बाथरूम में देर तक अरिजीत सिंह को सुनते हुए राशि ने अपना गम ग़लत किया. बॉस का थुलथुल शरीर याद कर उबकाई आ रही थी।

            दूसरी सुबह रैपिडो मोड़ के आस-पास चक्कर काट रहा था, राशि नहीं आई तो ऑनलाइन हुआ और दूसरी राइड ले ली। यह रिस्की था। पर्सनल नंबर की बाइक रैपिडो में चलाना, फिर भी रैपिडो जोखिम उठा ही लेता। बैठा भी नहीं रह सकता। अक्सर बाइक की प्राइवेट नंबर देख लोग बैठना नहीं चाहते, फिर भी रेपिडो “अब सब चलता है सर, बिहार है ना! चेकिंग नहीं होता “, जबकि सच उसे भी पता है जिस दिन फेरे में पड़ गए तो गाड़ी ही जब्त हो जाएगी.

        ऑफिस की घटना से उबरने में राशि को वक़्त लगा। इस बीच कुछ प्रण और ख़ुद को बदलने की कवायद के साथ दूसरी जगह लग गई थी। एक बार  रैपिडो का ख्याल तो आया मगर अब तक सर्विस की ज़रूरत नहीं पड़ी थी। उसकी अलग बोली बानी से राशि में जिज्ञासा जगी। टूटी-फूटी हिन्दी जिसमें अक्सर ही मात्राएँ ग़लत जगह इस्तेमाल के कारण सुनने भी उकडूपन का भाव जगता। वह उस दिन वाला गीत याद करने की कोशिश करने लगी। जिन दिनों चैनल्स की बाढ़ नहीं थी तब दूरदर्शन के अलावा करसियाँग और नेपाली चैनल्स का ही सहारा था। बंगाली और नेपाली भाषा से नौस्टेल्ज़िया का मामला जुड़ा महसूस होता है।

             इधर  एकाध  बार बाज़ार आने जाने के क्रम में कहीं-न-कहीं  रैपिडो दिख जाता। जब भी वह राइड सर्च करती उसके लोकेशन में पहली उपलब्धता रैपिडो के नंबर की ही थी। यह संयोगवश था या सुनियोजित यह जानने की राशि ने कभी कोशिश नहीं की, न ही संवाद की कोई गुंजाइश बनी। एक दिन घर लौटते हुए जाम के कारण रैपिडो की राइड लेनी ही पड़ी.

“मिस!आप तो गायब ही हो गए,ऑफिस नहीं जाते क्या?”

“आपको क्या मतलब इससे?”

“नई, मैं तो सोचा रोज़ आपको ड्राप कर दूंगा तो कमीशन बचेगा मेरा।”

“तो इसलिए आप मेरे रेंज में रहते हैं…जब भी सर्च करती हूँ आपका ही नंबर शो होता है। आप किसी और को सेट कर लीजिये, मेरा ऑफिस बदल गया है, पास ही में है. “

“ओ हो!” कुछ देर रुककर… “किसी बाइक का पता चले तो बताइयेगा मिस, सस्ता, सुविस्ता!”

“हद है! मैं कहाँ से पता लगाउंगी? मुझे और कोई काम नहीं क्या?”

आपके भैया, पति किसी को बोलकर…बहुत दिक्क़त में पड़ा हूँ।

आज  इसकी बाइक पर बैठ गलती की. राशि सोच रही थी…

रैपिडो इस मौके  को  पूरी तरह भुनाना चाहता था। बहादुर वाली बात पर जवाब देने का भी यह सही वक़्त लगा । 

वह शुरु हुआ…में थापा हूँ मिस! उस दिन आप मुजे बादुर कह रहे थे ।

राशि ने बचते हुए कहा, “हाँ ! फिल्मों में नेपाली आदि को बहादुर ही सुना है मैंने इसलिए …”

“…आंऽऽऽ हां सब्बी नेपाली बादुर तो होते हे तभी तो भारतीय फौज में 40 बटालियन हम नेपाली होते हे। लेकिन आप सब बिहारी बादुर को ड्राइवर ,वेटर , गार्ड समजते हे । येई बुरा लगता हे।”

राशी झेप गई… चुपचाप  रैपिडो को सुनने लगी. 

   “हाम्रा पपा बिहार मिलिट्री पुलिस की बटालियन में एक कांस्टेबल था जो राज्य में माओवादी विद्रोहियों के खिलाफ अभियानों में सबसे आगे था और शहीद हुआ। ममा इत्ता डर गये कि मुझे उस नौकरी में जाने नई दिया। उनकी पेंशन से ही घर चलाते हे। ये तो आछा हुआ कि पपा ने एक छोटा सा घर बनवा दिया था जहाँ हम रहते। पहले हम सब नेपाल में थे लेकिन देश में बड़ा भूकंप आया तब वहाँ का घर टूटा तो यहीं रहने लगे …”

रैपिडो की कहानी लंबी होती जा रही थी और राशि की जिज्ञासा भी। कभी-कभी लगता जैसे वो बातें बना रहा है। घटनाएं गढ रहा है। एक ही व्यक्ति  के जीवन में इतनी दुर्घटनाएं या तो कच्ची कहानियों में होती हैं या फिल्मों में ! बीच-बीच में अपनी पुरानी बाइक का रोना भी रोता… “कोई सेकेण्ड हैन्ड 15 मॉडल की बाइक मिले तो मुझे दिला देना मिस! “

“ठीक है, कोशिश करुँगी। “दिलासा देने के सिवा राशि के पास कोई चारा नहीं था और पीछा छुड़ाना भी ज़रूरी था।

        इधर घर का माहौल काफ़ी बिगड़ चुका था। राशि दूसरे ठौर की तलाश में शहर के चक्कर लगाती। उस दिन वह अपनी गली की मोड़ पर खड़े रिक्शे का इंतजार कर रही थी कि सामने रैपिडो आ टपका ! राशि ने दुपट्टे से मुंह बांधे रखा था फिर भी जाने कैसे उसने पहचान लिया -“कहीं छोड़ दूं मिस !”

“नहीं! ” रूखेपन से जवाब दे राशि आगे बढ़ी।

अर्रे, मिस! चलता  हूँ ना, मुझे कमीशन नहीं…

राशि जैसे इस प्रस्ताव की आशंका से भरी हुई थी सुनते ही फट पड़ी…” तुम सीधे अपने रास्ते नहीं चल सकते? तुम्हारे कमीशन का ठेका लिया है क्या मैंने? मैंने राइड बुक की है क्या जो तुम यहाँ आ गये ? क्या तुम मुझे फॉलो करते हो जो कहीं भी अवतरित हो जाते हो…”

उसका बोलना तो रुका लेकिन लगा जैसे बाकी के शब्द उसके गले में अटके रह गये हों ।

रैपिडो सामान्य बना रहा, शायद और सुनने को तैयार था। इतने के बाद या तो  वहां से निकल जाना था या गुस्से में जवाब देना था।

“आप परेशान हो मिस?” उसने हेलमेट पर पड़े धूल को साफ करते हुए अनमने ढंग से पूछा।

राशि विस्मित! क्या बला है यह। एकदम शेमप्रूफ! उसदिन इसकी कहानी क्या सुन ली, गले ही पड़ गया। राशि को लगा जीवन में एक नई मुसीबत उसके सामने खड़ी है।

राशि की भंवो की सिकुड़न गौर से निहारता बाइक विपरीत दिशा में घुमाते  हुए बोला- “लेकिन इसमें परेशान होने  की क्या बात हे। में तो इदर ही रहता हूँ इसलिए बराबर मिल जाता हूँ कहीं भी। अच्छा में चलता हूँ, परेशान  मत होना।”

बाइक सामने से जा चुकी थी। बस रैपिडो की आवाज थोड़ी चीखती हुई सुनाई पड़ी -“मिस! आपके परेली के बीच की जो बिन्दी है वो थोड़ा बिगड़ गई है ठीक कर लो। बहुत जंचती है आप पर बिन्दी…”! और हाँ… बाइक का पता…राशि ने अपने कान बंद कर लिए.

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           बिन्दी क्या सच में बिगड़ी थी उसकी परेली की! मोबाइल में  देखा तो सचमुच बिन्दी जगह से खिसकी हुई थी। परेली यानि भंवों को कहते होंगे नेपाली… उसने अंदाजा लगाया।

घर से गुस्से में निकली। भाभी के तानों से बचने का यही एक रास्ता था…लेकिन इस रास्ते में बेवजह ये कहाँ से आ गिरा और डांट सुन गया । राशि काफी देर इस अफसोस में रही। क्रोध शांत हुआ तो दिल पिघलने लगा…राशि समझ चुकी थी रैपिडो भी उसकी तरह एक ज़रूरतमंद इंसान है, अंतर इतना है कि वह अपनी ज़रूरत का इंतज़ाम ख़ुद कर लेती है, रैपिडो नहीं कर पाता तो मदद की गुहार करता है…. लेकिन मैं किस तरह मदद कर सकती उसकी? “

         इस घटना के बाद कई दिनों तक रैपिडो से कोई मुलाक़ात नहीं हुई. राशि मोड़ तक  टहलने भी निकली कि शायद दिख जाए, फोन इस अहम् नहीं किया कि फिर पीछे ना पड़ जाए.

           उस  दिन शहर में हड़ताल थी। ना ऑटो, ना ई रिक्शा! नया बॉस पुराने से भी अधिक खडूस और नामुराद था। लेकिन काम समय पर हो जाए तो देर  सवेर को बहुत तवज्जो नहीं देता। जैसे भी आओ आना है। नहीं आई तो एक दिन की सैलरी गई।अब दूर-दूर तक कोई चेहरा  याद नहीं आया जिससे मदद मांगी जाए रैपिडो के अलावा। नंबर ट्राय किया तो नॉट रिचेबुल ! 

“उफ्फ़! समय पर ये भी  गायब ! ज़रूरत नहीं थी तो जब तब टपक जाता और अभी जाने कहां किसी को पका रहा होगा…कोसना जारी था कि मोबाइल बजा, रैपिडो ही था।

‘हेलो ! “

हाँ, रेपिडो…

नई मिस नई  ! रैपिडो नहीं है नाम हाम्रा । रैपिडो बाइक टैक्सी सर्विस जॉब है मेरा। नाम तो…”

सुनो! ये सब छोड़ो… क्या गोलम्बर आ सकते हो?”

मैं आनंद बाजार से  बोल रही। आर यू एवेलेबल ? “

“नई मिस ! नॉट अवेलेवल! अबी ऑफलाइन चल रहे हम ।”

लगता है भाव खा रहा है… इन लोगों की यही दिक्कत है। ज़रा सा हंस दो तो पीछे पड़ जायेंगे और झिड़क दो तो भाव खाने लगेंगे…

हाम्रा  होम टूटा पड़ा है अब्बी।आ नई सकता मिस! ओर तो आज  हड़ताल बी है तो बैसे भी …ऽऽऽऽ”

नहीं आ सकता के अलावा राशि ने और कुछ नहीं सुना…

” हाँ! इसलिए तो हड़ताल के कारण मार्केट डाऊन लग रहा… अरजेंट है…”

फोन कट चुका था।

पांच  मिनट में रैपिडो हाजिर था। बिना हैलमेट के। बाल रूखे से! आँखें पनियाई, राशि ने नोटिस किया।

“किसने तोड़ा तुम्हारा घर ? ” 

“बाफ्रे! आप पेपर नहीं पढ़ती।” वह इसी तरह चौंककर बातें किया करता था और राशि को चिढ़ थी उसके अंदाज़ से…अपनी दुनिया में कम परेशानी थी क्या उसके।

“नहीं इधर कुछ परेशानी बढ़ गई थी तो व्यस्त थी..”

 “होऽऽऽ! किस दुनिया में रहते हे मिस ? आपके शहर का एक हिस्सा जल रहा हे और आप…मिच्च ! कितने मतलबी हो आप? “

राशि सकपकाई।थोड़ा झेपी भी।

रैपिडो बोलता रहा …”इतने  दिनों से नेपाली नगर में जंग छिडा है। सरकार अवैध घर के बोण्ड्रीज तोड़ रहा है। हमारा पिछला हिस्सा घऽऽर का तोर  दिया। नेपाल में हाम्रा घर टूटा और अब्ब यहाँ भी …!”

बाइक की रफ्तार और  हवा की सरसराहट के बीच रैपिडो की हांफती आवाज़ राशि साफ सुन पा रही थी। उसकी बेचैनी महसूस रही थी वह। एक छत का होना बहुत ज़रूरी है हर इंसान के लिए…

        गोलम्बर पार करते ही गाड़ी रोक दी गई। कुछ लोग टायर जला विरोध प्रदर्शन कर रहे थे, गाड़ी आगे नहीं जा सकती थी…राशि समझ गई, ऑफिस छूटा।

“अब!कहाँ छोड़ दूँ आपको… मिस?”

राशि घर जाकर भी क्या करती। भाभी की अपनी दुनिया थी। राशि का अपना एकांत। एक अनकहा अजनबीपन दोनों के रिश्ते में पनप चुका था।भाई की  सूरत में पोस्टिंग थी। भाभी के मायके वालों का आना-जाना बना रहता इस कारण वह अकेले रहना ज़्यादा पसंद करती..

“अभी घर तो नहीं जाना, गोलम्बर छोड़ दो मुझे… तुम निकल जाना चाहो तो।” राशि थोड़ी देर रैपिडो को और सुनना चाहती थी… 

एक सुरक्षित जगह देख रैपिडो फिर शुरु हुआ…

“सारा भूमि माफिया भाग गया है …और नगर निगम हमारी एक नहीं सुन रहा । सब बर्बाद हो गया मिस! हाम्रा पपा ने मकान बनाया। इस मकान में सालों  से रह रहे। बार-बार ये मुसीबत आती रहती है। इस बार तो  प्रशासन तोड़ने की जिद्द कर रहा है। ऐसे में बेघर हो जाएंगे हम सब!” राशि उसे दिलासा देना चाह रही थी मगर लगा ज़रा भी टोका तो सब्र का बांध न टूट जाए कहीं…

“वहां तो 400 अवैध घरों पर बुलडोज़र चले हैं। तुम्हारा भी था क्या उसमें ?”

“अवैध… !” रैपिडो लगभग चिल्लाया था । 

“मिस!.. हम नहीं जानते वैध-अवैध! हमने कर्ज़ लिया, घर बनाया। मेहनत मजदूरी करके पैसा चुकाया। और आज भी पुलिस थाने में पैसे पहुंचाते हैं।  प्रशासन ने विश्वास दिलाया कि कुछ नहीं होगा। जिससे जमीन लिया वो भाग गया है.. हम कहीं के नहीं रहे।”

वह लगभग रो रहा था!

उसके बिसराए जख्म को कुरेदना राशि को बुरा लगा। और खुद पर खीस भी आई। सीधा-सा दिखने वाला रैपिडो आज दुखी था। राशि की जगह कोई और भी होता तो उसे भी यही सब सुनाता। वह बोलना चाहता था खाली होना चाहता। वह शायद इसलिए आज राशि के फोन पर दौड़ा चला आया।

रैपिडो थोड़ा रुका …फिर जैसे कुछ याद आया ।

“मिस ! आपने बाइक पता तो नहीं ही  किया होगा…अच्छा किया… अब  कोई  फायदा नहीं  ! आप भी माफ करना, तंग किया आपको , परेशान भी।”

राशि समझ रही थी फिर भी चुप रही ।

रैपिडो भी चुप था ।

दोनों चुप थे। कौन बोले पहले। राशि सोच रही थी, रैपिडो सोच रहा था, हवाएँ सोच रही थीं, हवाओं के इशारे पर झूमने वाले राशि के केश सोच रहे थे जो कुछ क्षणों के अंतराल पर रेपिडो के गालों पर चपत सा लगा आते । 

उसकी चुप्पी ने राशि को एहसास कराया उसका हाथ रैपिडो के कंधे पर है और आश्चर्य की बात थी रैपिडो ने अबतक हटाने को नहीं कहा था ।

हथेलियों को थोड़ा दबाया, दिलासा का यह स्पर्श रैपिडो ने महसूस किया.

“अच्छा ठीक है मैं भईया से कहूँगी…बाइक के बारे में !” राशि ने चुप्पी तोड़ने की कोशिश की पर नाकाम रही ।

राशि अरिजीत सिंह का कोई गाना लगाना चाह रही थी, कुछ सोच कर सुमन केसी का गाना सर्च किया… गाना बजने लगा…माहौल शब्दों से तालमेल बिठाने लगे।

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नेपाली नगर का मामला 1974 से चला आ रहा था। आवास बोर्ड ने कई एकड़ जमीन आवासीय परिसर के लिए अधिगृहित किया। विवाद वहीं से शुरु हुआ और मुआवजे को लेकर मामला कोर्ट में पहुँच गया। काफ़ी बड़े हिस्से की जमीन खाली करा उसपर कई विभाग और कर्मचारी आवास बनाने का आदेश पारित हुआ। यह मामला इतना लम्बा खिंचा कि इस बीच बाहुबलियों और दबंगों ने जमीन की खरीद बिक्री शुरु की जो पावर ऑफ़ एटॉर्नी के तहत हस्तान्तरित होने लगी. यानि बगैर रजिस्ट्री की जमीन। बहुत लोगों ने अपने काले धन की सुरक्षित रखने का माध्यम बनाया, लेकिन कम कीमत में जमीन के टुकड़े के झांसे में गरीब और मजबूर लोग भी आ गए। उन्ही में रैपिडो का परिवार भी शामिल था। समय समय पर यह मुद्दा तूल पकड़ता और फिर स्थानीय लोग जान देने पर उतारू हो जाते। पत्थरबाजी और आगजनी से लोगों ने अपने घर के सामने छाती पर गोली खाने को तैयार रहे।

           रैपिडो से यह सब जानने के बाद इस मामले पर राशि  की नज़र बनी रही। महीने भरसे ज़्यादा इस बार की लड़ाई चली। विवादित जमीन को लगभग अतिक्रमण ने मलबों का ढेर बना दिया था। कई लोग चोटिल हुए। रैपिडो जैसा सीधा सादा लड़का कहाँ इस लड़ाई को झेल पाता।

            महीनों बाद वह घड़ी आई जब नेपाली नगर के वासियों ने एक-दूसरे का मुँह मीठा किया। उस सुबह लाइब्रेरी में अख़बार पर नज़र पड़ते ही राशि को लगा कोई बड़ी खुशी हाथ लग गई हो जब  देखा कि भू-माफिया रमाशंकर चौधरी गिरफ्तार हो गया है। कोर्ट ने आदेश दिया कि अतिक्रमण तत्काल रोक दिया जाए और जिनके भी घर टूटे हैं उन्हें 5-5 लाख मुआवजे के तौर पर दिया जाए।

        रैपिडो के लिए कुछ न कर पाने का मलाल कहीं-न-कहीं तो था उसे लगा इस खबर से शायद वह कुछ कर पाए पाए उसे। झट रैपिडो को फोन मिलाया …रिंग जा रही थी। वह भी उम्मीद में थी कि रैपिडो की मुसीबत थोड़ी कम हो सकती है।

आ हा ऽऽऽऽ नमस्ते मिस ! वह अक्सर ऐसे ही बात करता.. चौँकता हुआ, वर्णों के आलाप लेता हुआ।

“वो भू माफिया पकड़ा गया है जिसके बारे में तुम बता रहे थे। अब शायद कुछ ठीक हो … मुआवज़े मिलने के आसार …”

फोन कट गया…

“अरे !  कितना अकड़ू है ये रैपिडो! रस्सी जल गई मगर बल नहीं गया 

…फोन काट दिया  !”

थोड़ी देर बात रैपिडो ने फोन मिलाया.. “मिस ! थोड़ा दिमाग गरम हो गया था…खैर ! आपको क्या लगता है कुछ ठीक होगा ? भू माफिया पकड़ा गया तो ये आवासीय बोर्ड का भला होगा न कि हम्रा। हम्रा तो घर भी गया और पैसा भी। कौन देगा मुआवजा? हम राजविराज वापस आ गए हैं मिस.. अब फिर से घर बनाना आसान नहीं… अब तो वह जमीन भी हमारी रहेगी या सरकार ले लेगी कोई ठिकाना नहीं…”

सोचा था बाइक रैपिडो से ओला मास्टर बनेगें…कुच नहीं हुआ.. मुआवाजे के लिए चक्कर नहीं लगा सकते.. यहाँ  पुर्खेली डीह तो है …अब तो पूंजी भी नहीं दूसरी बाइक के लिए।पुराने को बेचकर ही घर वापस लौटे हैं…”

 रैपिडो दार्शनिक अंदाज़ में बोले जा रहा था जैसे लौटते हुए बोल रहा हो या  बोलते हुए लौट रहा हो। एक ही टोन एक ही बोली की लयात्मकता को तोड़ती थी रैपिडो की आवाज़! आज जैसे सम पर ठहरा हुआ कोई सुर! आज पहली बार लगा कोई नेपाली धीरे-धीरे भी बोल सकता है। समझा कर बोल सकता है। वरना अबतक उसकी बात समझने में मशक्कत करनी पड़ती रही थी। यह कोई दूसरा व्यक्ति था।

 लाइन कटने के साथ राशि किसी शून्य में खिंचती चली गई। रैपिडो और दुर्घटना का जैसे बहुत पुराना रिश्ता है। रैपिडो बाते नहीं बनाता है जिन्दगी उसे बना रही है- राशि ने खुद को करेक्ट किया। बरसों बीते तो शायद अपनी जमीन की खोज वह वापस लौटे…या ना भी लौटे। रैपिडो जैसे लोग बड़े से बड़ा धन को धूल की तरह उड़ा दिया करते हैं। उनके जीवन का सुख आज और कल में छिपा होता है। जो नहीं है उसके पीछे दौड़ने से अच्छा जो बचा है उसे बचाने की कावायद करते हैं।

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         राशि कमरे में लौटती है। अब वह भाभी के घर में नहीं रहती। हॉस्टल में कमरा लिया है। भाई के यहाँ आने से पहले वह अपने पिता के पास रहती थी। वह कमरे को निहारती है। महीना भर पुराना है। क्या इस कमरे को अपना कह सकती है। यहां वह भी बहुत दिनों तक नहीं रह पाएगी।वह काफी देर तक सोचती है,सोचते-सोचते सो जाती है। सोते हुए भी सोचती है रैपिडो जा रहा है, शायद चला भी गया हो ।

         नींद में  बार- बार अपना बैग देखती, छूने से डरती हुई। जैसे कोई पुराना जख्म है जिसे छूते ही बह निकलेगा । आज सुबह जब बॉस ने यह लिफाफा उसे थमाया तब उस कुटिल मुस्कान को बर्दाश्त करने से भी बड़ा कोई दुख होगा क्या उसके लिए! सैलरी चेक के रूप में, साथ में कुछ ऐसे शब्द जो हर बार सुनना पहले से ज़्यादा दुःख देता है. कांपते हाथों से उसने लिया था। एक तरफ़ रैपिडो के शब्द …गाँव चला जाऊँगा …अब इसकी ज़रूरत नहीं !…पुर्खेली डीह तो है ! …ये रहा चेक …कल से आने की जरूरत नहीं …। बॉस की बेशर्म मुस्कुराहट, रैपिडो का बेरंग परेशान चेहरा …दोनों एकदम गड्डमड्ड! 

अपने शर्तों पर जीना इस दुनिया का सबसे कठिन काम है… फिर भी ‘एकला चलो रे’ का मंत्र राशि को फिर से सँभालने का हौला देता है।

 अनेक ध्वनियों के बीच राशि बंट गई थी। वह नींद में थी लेकिन अशांत, विकल ,छिन्न-भिन्न ! राशि का अपना घर कहाँ है, उसकी पुर्खेली ज़मीन कहाँ है? वह यहाँ से निकलेगी तो कहाँ जाएगी…ऐसे कितने सवाल जो आज से पहले उसने नहीं सोचा था दिमाग में हलचल मचा रही थी ।

  

अगली सुबह उसके पास न नौकरी थी न रैपिडो!

नौकरी – जो साँस लेने से भी ज्य़ादा ज़रूरी थी राशि के लिए

रैपिडो – जो अनगिनत थे इस शहर में, मगर वो नहीं! क्या नाम क्या रहा होगा उसका …अब अगर मिली तो पूछ लेगी ! लेकिन अब कब ? शायद कभी नहीं! 

टेबल पर निगाह गई। चेक देखकर सोचा आज इसे जमा कर आएगी। नई नौकरी लगने में न जाने कितना वक़्त लगे। लेकिन एक बार लग जाए कभी छोड़ेगी नहीं चाहे शहर छोड़ना पड़े।

 “दिस नंबर नॉट एग्जिस्ट…”लगातार नंबर ट्रॉय करने से भी नंबर एग्जिस्ट नहीं हो सकता था… वह जानती थी, फिर भी!

सुबह की प्रार्थना में उसने ईश्वर से मिन्नत की, रैपिडो के जीवन की दुर्घटनाओं को खत्म करे। उसका भोलापन दूषित होने से बचा रहे। उम्मीद है वह जहाँ होगा ठीक होगा, उसे ठीक होना चाहिए।

     भारी मन से उसने टेबुल पर पड़ा पैम्पलेट उठाया, लम्बी सांस के बल पर उसके पुर्ज़े किये और हवा में तैरा दिया !

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परिचय 

नामनताशा 

जन्म –  बिहार

पुस्तक प्रकाशनबचा रहे सब 

रचनाएँ प्रकाशितवागर्थ, हंस, कथादेश, नया ज्ञानोदय, अन्विति, तद्भव, पूर्वग्रह सहित प्रतिष्ठित पत्र -पत्रिकाओं में कविता, कहानियाँ एवं आलेख प्रकाशित 

हिन्दवी, सदानीरा, गद्यकोष, पहलीबार इत्यादि ब्लॉग्स में रचनाएँ संकलित 

संप्रतिअध्यापन एवं स्वतंत्र लेखन 

संपर्क9955140065

         

   

  

  

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