जानकी पुल – A Bridge of World's Literature.

जानकीपुल ने बाल साहित्य की विधा को प्रमुखता देने का संकल्प लिया है, जिसका पाठकों द्वारा भरपूर स्वागत किया गया। आज हम पढ़ते हैँ उपासना की कहानी ‘नींद की नींद’

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एक प्यारी बच्ची है। नाम है उसका नींद। नींद को नींद कभी नहीं आती। उसे कभी नींद आ जाए तो हमें नींद कैसे आएगी? हम सबकी नींद के लिए, नींद को हमेशा जागना पड़ता है।

नींद पूरी दुनिया घूमती है। चेन्नई से चेकोस्लोवाकिया तक। हर एक से मिलती है। सबका हाल चाल लेती है। जब जो थका-थका सा दिखता है, नींद चुटकी बजा देती है। चुटकी बजाते ही थके हुए लोग जम्हाई लेने लगते हैं।

पर जम्हाई आने पर माँ आंखे फाड़-फाड़ कर जगे रहने की कोशिश करती हैं। आखिर ऑफिस में कोई कैसे सो सकता है? दीदी आँखों पर पानी के छींटे भी देती हैं… नींद भगाओ परीक्षा की तैयारी करनी है। पर नींद को यह सबकुछ कहाँ समझ आता है भला? न परीक्षा की तैयारी, न ऑफिस का काम।

लेकिन एक दफे ऐसा हुआ कि नींद को आ गया गुस्सा। जिसे देखो वही नींद की शिकायत करता है।

–           “अरे नींद लग गई थी, इसलिए लेट हो गया।“

–           “आँख झपक गयी, इसलिए पढ़ नहीं पाया।“

फिर नींद ने सोच लिया किसी को नहीं सुलाएगी। नींद ने तब अपने लिए चुटकी बजाई। उसे ज़ोरों की जम्हाई आई। बरसों से जगी हुई नींद, गहरी नींद सो गई। सोती रही।

यहाँ तो सबकी नींद गायब। कलकत्ते में कौवे कांव-कांव करते लड़ने-भिड़ने लगे। बंबई में बसें टकराने लगीं। दिल्ली में दवाएँ बेअसर साबित हुईं। छत्तरपुर में छोटी चार्वी रोने लगी,

–           “सोना है, सोना है!”

पर सोयें कैसे? नींद तो आ ही नहीं रही। हाँ नानाजी को खास फर्क पड़ा नहीं। उनके पास तो नींद यूँ भी कम ही जाती है। नानाजी के पास इतनी यादें हैं, कि यादों को उलटते-पुलटते नींद का वक्त बीत जाता है। पर बाकी लोग बहुत परेशान हुए। सबकी आँखें लाल। सिर और गर्दन में दर्द की टीसें थीं।

आखिरकार नींद की नींद टूटी।

वह उठी खुश-खुश! वाह! कितने वक्त बाद वह सोई थी।

  • अरे! यह क्या?

उसने आसपास देखा। हर ओर अफ़रा-तफरी मची थी। सब परेशान। चिरईं- चुरुंग से आदमी तक सब बेहाल।  नींद बहुत शर्मिंदा हुई।

उसने तुरंत चुटकी बजाई। सब जम्हाई लेने लगे। बच्चे क्लास में बैठे-बैठे सो गए। माँ लैपटॉप के की-बोर्ड पर सिर रखे सो गई। बस रोककर ड्राइवर स्टेयरिंग पर सो गया। हार्न बजता रहा – पें-पें-पें। पर उसे कोई फ़र्क न पड़ा।

घोड़ा तो खड़े-खड़े ही सो गया। उस दिन से वह खड़े-खड़े ही सोता है।

नन्हीं चार्वी नींद में मुस्कुराई।

और तब से सबकी नींद के लिए, नींद कभी नहीं सोई।

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उपासना हिन्दी साहित्य की एक सुपरिचित लेखिका हैं। पिछले एक दशकों से वह बाल साहित्य लेखन में सक्रिय हैं। वह समय-समय पर बच्चों के लिए कहानियां, कविताएं और आलेख लिखती रही हैं। उनका बच्चों के लिए लिखा एक उपन्यास ‘डेस्क पर लिखे नाम (नेशनल बुक ट्रस्ट)’ और एक नाटक ‘बैंगन नहीं आए (एकलव्य, भोपाल)’ प्रकाशित है। बाल नाटकों के लेखन के लिए थिंक आर्ट कोलकाता के राइटर इन रेजिडेंट रही हैं। इनकी मैनुस्क्रिप्ट को शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार और नेशनल बुक ट्रस्ट द्वारा आयोजित Integrated Toy Stories प्रतियोगिता के अंतर्गत प्रकाशन के लिए चुना गया है। हाल ही में बच्चों के लिए लिखे आलेखों का संकलन ‘उड़ने वाला फूल’ अनबाउंड स्क्रिप्ट से प्रकाशित होने वाला है।

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