जानकी पुल – A Bridge of World's Literature.

प्रत्येक व्यक्ति की यौनिकता उसके सामाजिक परिवेश में ही निर्मित-प्रभावित होती है। ज्योति शर्मा की कहानी ‘चिकनी’ भी इस निर्मिति को बखूबी प्रस्तुत करती है, जहाँ बात है स्त्री-यौनिकता की। इस तरह की रचनाओं पर प्रायः अश्लील होने के आरोप लगते हैं लेकिन हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि इस तरह के मूल्य पूर्णतः व्यक्तिगत होते हैं, वह भी हमारे परिवेश से ही निर्मित होता है।

इससे पूर्व ज्योति की कविताएँ हम जानकीपुल के अतिरिक्त विभीन्न पत्रिकाओं में पढ़ते आए हैं, आज उनकी कहानी पढ़िए, ‘चिकनी’ – अनुरंजनी     

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        चिकनी

देखिए मेरी मजबूरी है कि मैं ‘क्लीन एंड स्मूथ यूनिसेक्स’ सलून में मसाज और वैक्सिंग का काम करूँ। जैसे-तैसे बारहवीं करने के बाद मैंने ब्यूटी पार्लर का कोर्स कर लिया था मगर जिस दिन मुझे सर्टिफिकेट मिला उसके हफ़्ते भर बाद ही कोरोना का लॉकडाउन हो गया। बाऊजी और मम्मी को वैसे भी मेरा यों पार्लर का काम करना पसंद न था। हम जात के भावसार जो थे मगर लवली भाभी को मैं घर बैठी खटकती थी। भैया अकेले कमाने वाले थे। भाभी पेट से थीं और पूरे दिन घर पर बैठी फ़ोन देखा करती थीं। हालाँकि जब वह प्रेग्नेंट न थी तब भी फ़ोन पर ही बैठी रहती थीं। आख़िर उनका आदमी कमाता था तो वो क्यों अपने हाथ पैर हिलाती! ऐसी कुतिया औरत मैंने आज तक न देखी थी। रातों को उनके कमरे से गंदी आवाजें आती तो मैं तो भैया दहल जाती। तीन कमरों का हमारा घर था। एक रसोई, दूसरा, जहाँ लोहे का ‘सोफा कम बेड’ रखा था और एक भैया-भाभी का बेडरूम। मैं बाऊजी और मम्मी के संग सोफा कम बेड वाले कमरे में सोती थी। भैया-भाभी के कमरे से जब अश्लील आह-हाय-ओह की आवाजें आतीं तो हम लोग तो भौंचक्के रह जाते। एक दूसरे से आँख न मिला पाते। मैं तो शर्म से पानी-पानी हो जाती। भैया पहले तो ऐसे न थे। वह तो अल्ला मियाँ की गाय थे। अब इस कामुक औरत के चक्कर में पड़कर बिस्तरा तोड़े दे रहे थे। बाऊजी दाएँ-बाँए देखते, मम्मी टीवी की आवाज़ ज़ोर से कर देती और हम तब तक टीवी देखते रहते जब तक भैया-भाभी की यह सेक्स लीला ख़त्म न होती क्योंकि टीवी बंद करते तो आवाज़ और ज़ोर से गूँजती।

कभी-कभी इतवार के दिन तो दोनों दोपहर में दरवाज़ा लगाकर यह सब करने लगते। उस दिन मेरी सहेली पिंकी आई थी, उस दिन भी लिहाज़ न किया। पिंकी मुझे देख-देखकर मुस्कुराती रही फिर बोली, तेरा भाई तो बड़ा जोरावर है। छी-छी, मेरा दिल मुँह को आ गया मगर मैंने कुछ कहा नहीं। एक दिन बाऊजी को जाने क्या सूझा वह उल्टे मुझे शिक्षा देने लगे , “देखो चिंकी बिटिया, काम-भावना से पूरी दुनिया संचालित है। यह सबके मन में होता है। ब्याह के बाद यह शुभ है मगर उसके पहले पाप” मैं तो लाज से फ़र्श में गड़ गई।

फिर लॉकडाउन आ गया और भाभी को गर्भ ठहर गया। तब भी थोड़ी शांति हुई मगर यह शांति मेरे लिये अशांति बनकर आई। भाभी ख़ाली हो गईं तो मेरे पीछे रह-रहकर पड़ने लगी, हमेशा कहती कुछ काम कर ले। अपनी शादी के पैसे जुटा ले। बाऊजी पहले गैस कंपनी में पर्ची काटते थे, रिटायर होने के बाद घर पर बैठते हैं। उन्हें प्रोस्टेट कैंसर हो गया था। उसमें रिटायरमेंट के टेम मिला सारा पैसा ख़ाक हो गया था मगर भगवान का शुक्र था कि बच गए।

पिंकी की भाभी भी सलून में काम करती थी, मैं उन्हें चंदो भाभी पुकारती थी। उन्हीं ने सलून में काम दिलवा दिया। यह सलून की बड़ी चैन थे, इसमें काम मिलना बहुत गर्व की बात थी। चंदो भाभी ने कहा कि मैं सलून की बातें कभी घर में न बताऊँ और उन्हें चंदो न कहकर सलून में चाँदनी कहा करूँ। जो सलून में होता था वह कटे-उखाड़े बालों की तरह सलून से झाड़कर घूरे पर फेंक दिया जाता था। उसी तरह से सलून की बातें भी सलून में ही मन से निकालकर मैं भूलने के डस्टबिन में डाल दिया करूँ।

पंद्रह हज़ार तनख़्वाह तय हुई थी। छुट्टी के दिन की कटेगी। महीने में बस दो छुट्टी- पहले और तीसरे बुधवार को। बाल काटने में मैं कमज़ोर थी और औरतें अपने बाल अक्सर हुसैन, शुभम सिंह राजपूत और अमाल खान से ही कटवाती थीं। मतलब आदमियों से ही औरतें बाल कटवाना पसंद करतीं और दूसरे आदमी भी। महिला ब्यूटीशियन को बदन का काम मिलता था- जैसे वैक्सिंग करना, मालिश करना, पेडीक्योर और मैनीक्योर करना। मुझे वैक्सिंग और मालिश का काम मिला था। साथ में बॉडीबिल्डर लड़के आते तो उनकी फुल बॉडी शेविंग करना भी मेरा काम था। इन लड़कों का बदन बहुत क़द्दावर होता था और यह बॉडी बिल्डिंग कम्पटीशन में जाने के लिए बदन से एक-एक बाल साफ़ करवाते। पुट्ठे उघाड़कर कहते “चलाओ रेज़र” और मैं चलाती। इनके एक-एक अंग के बाल साफ़ करती और फिर आप सोच सकते हैं आख़िर में क्या होता होगा। ज़्यादा क्या बताऊँ, अच्छा नहीं लगता बस इतना कहती हूँ कि मैं सब काम हाथ ही हाथ से करती थी। अपना एक कपड़ा न उतारती हालाँकि मालिश के टाइम कई आदमी ऊपर-ऊपर से मेरी छातियाँ ज़रूर दबा देते या मेरी सलवार के बीच मुँह घुसा देते थे। मैंने सदा ख़ुद को पाक-साफ़ रखा।

तीस के ऊपर के मर्द अक्सर मसाज करवाने आते। पहले वे अपने कपड़े उतारकर खूँटी पर टाँगते फिर मसाज-रूम से लगे बाथरूम की वॉश-बेसिन में पेशाब करते। मैं उन्हें सलून में मिलने वाली सफ़ेद रंग की लंगोट पहनने को कहती। वह लंगोट ही होती थी मगर ऐसे झीने सड़े कपड़े की कि उनका सब कुछ साफ़ दिखता था। वो जानबूझकर ऐसा जताते कि लंगोट इन्हें पहनना नहीं आता। एक तिकोना कपड़ा रहता था जिसके तीनों ओर नाड़ी रहती। वे अपना अंडरवियर उतार लेते और मैं पीछे से वह लंगोट बाँधती। उसके बाद मसाज शुरू होती। कमर के नीचे और घुटनों के ऊपर मालिश करने पर वह आह-अहा करते और मैं समझ जाती कि वे किस टाइप के कस्टमर हैं फिर उसी हिसाब से मसाज करती। हैप्पी एंडिंग तो आप समझते होंगे, मालिश के अंत में किया जाने वाला हस्तमैथुन। मुझे मोटी टिप वह देते और मैं हाथ धोकर रोटी खाने चली जाती। मैं एक बार फिर आपको बता दूँ कि मैं अपने बदन से एप्रन तक अलग न करती थी। 

मेरी इज्जत अनछुई थी। मैं इसे बस अपने पति को देना चाहती थी। आप इसे पुराना ख़याल समझेंगे, समझें तो समझा करें, सलून में काम करनेवाली औरत कैसे कामुक माहौल में काम करती है आपको क्या पता। मेरा इंक़लाब था अपने कुँवारेपन की रक्षा करना, अपने पति के लिए, उसे ही मेरा कुँवारापन छीनने का हक़ था मगर ऐसा हो न सका और इसमें दोष मेरा ही है। मैं किसी और के मत्थे अपनी कमज़ोरी क्यों मढ़ूँ। घर, नौकरी सब जगह इतनी कामुकता थी कि मैं उससे कब तक लड़ती। मैं भी तो हाड़-मांस की बनी जीव थी, मेरे खून में भी तो गर्मी थी। आप क्या मुझे इसके लिए जज करेंगे! मैं खुद, खुद को इतना जज करती हूँ।

हुआ यों कि हमारा एक कस्टमर था आशीष वाधवानी, लंबा, तगड़ा और बड़ा ही हसीन। वह कभी लेडीज से मसाज न करवाता था। उसकी मसाज हमेशा कमाल ख़ान करता था। चंदोभाभी का कहना था कि दोनों ‘गे’ हैं। अंदर गंदी हरकत करते हैं। मैं ‘गे’ लोगों को पसंद करती थी। कई वैक्सिंग करवाने आते थे और सबसे मोटी टिप वही देते थे। अगर दोनों ‘गे’ है तो इसमें क्या ग़लत है। उन्हें भगवान ने ऐसा बनाया था। फिर आशीष वाधवानी तो बिलकुल ‘गे’ जैसा न दिखता था। सिंधी लड़के वैसे भी बहुत हसीन होते हैं, वह भी इंतिहा का खूबसूरत था। 

एक रोज़ वह एक औरत को लेकर आया, अपनी वाइफ को। तो क्या वह ‘गे’ न था। दोनों मियाँ-बीवी में बहुत प्यार दिखाई दे रहा था। मैं बीवी का पेडीक्योर करने लगी और वह साथ लगा बैठा रहा। कॉफ़ी पीते हुए बार-बार अपनी वाइफ से हल्की-फुल्की छेड़छाड़ कर रहा था। मैं तो बड़ी खुश हुई। उस दिन पहली बार मुझे ख़याल आया कि काश मेरी भी जल्दी से शादी हो जाए और मेरा हसबैंड भी ऐसा ही प्यारा और क्यूट हो और मुझे ऐसे ही प्यार करे। मुझे पता था मेरे जीवन में तो ऐसा कुछ नहीं होनेवाला। इतना अमीर आदमी मुझे क्यों ब्याहेगा। मेरे माथे तो सिर्फ़ कोई बस कंडक्टर या छोटी-मोटी नौकरी करने वाला ही लिखा था। आशीष तो बहुत अमीर था, कभी ‘मर्सिडीज़’ में आता तो कभी ‘बीएमडबल्यू’ में। एक बार कोई वॉल्वो गाड़ी लेकर आया तब सभी को काजू कतली खिलाई और फिर अमाल खान को लेकर मसाज रूम में बंद हो गया। मुझे बुरा लगा। बीवी के होते इस बाल काटने वाले आदमी के फंदे में यह अच्छा भला आदमी लगा है। बाहर जब आशीष आया तो मैंने कहा, हेलो आशीष सर। दीदी कैसी है? आशीष हँसा और अपने आईफ़ोन की फ़ोटो गैलरी से एक फ़ोटो दिखाई। उसकी बीवी पेट से थी। “बेबीबम्प में कितनी क्यूट लग रही हैं” मैंने कहा। “हाँ सात महीने का है। अगले महीने डिलीवरी” आशीष ने कहा और कमाल को देखते आँख मारी। छी, कैसे घिनौने आदमी थे। मैं फ़ौरन वहाँ से हट गई। इससे अच्छे तो मेरे पास आनेवाले वो सिंगल आदमी अच्छे थे जो हस्तमैथुन करवाकर टिप देते और चले जाते।

आशीष सर की बीवी ने जुड़वां बच्चों को जन्म दिया। बहुत क्यूट बेबीज़ थे। मैं उनके घर उनकी बीवी की मसाज करने जाने लगी। छह महीने तक मैं वहाँ रोज़ जाती थी। आशीष सर कभी समोसे, कभी राबड़ी तो कभी रसमलाई खिलाते, कभी पिज़्ज़ा मँगाते। बड़े रईस कारोबारी थे। कई बार ज़ियारा दीदी की मसाज करते हुए मुझे लगता कि उन्हें कमाल खान और आशीष सर वाली बात बता दूँ मगर मैंने कभी कहा नहीं। आदमी तो जात ही बिगड़ैल है इसके कारण क्यों किसी का घर उजाड़ना। कम से कम यही अच्छा है कि औरत नहीं है, आदमी से रिश्ता है आशीष सर का। घर आकर तो नहीं बैठेगा वह।

ज़ियारा दीदी बाद में सलून आने लगी, मसाज हालाँकि नहीं करवाती थी मगर मुझसे ब्राज़ीलियन वैक्स हमेशा करवाती। ब्राज़ीलियन वैक्स माने औरत के एकदम अंदरूनी अंगों की वैक्सिंग। चिंकी के बजाय उन्होंने ही मेरा नाम चिकनी रखा था क्योंकि मैं अच्छे अच्छे जंगलों को चिकना कर देती थी। फिर अचानक ज़ियारा दीदी ने आना बंद कर दिया। उन्हीं दिनों मेरी शादी तय हुई थी इसलिए मैं भी ज़्यादा ध्यान नहीं दे पाई। मेरे होनेवाले हसबैंड अमेज़ोन में डिलीवरी का काम देखते थे। नाम था प्रियांशु कछवाहा। बहुत सेक्सी थे, पाँच फुट दस इंच क़द, रंग साँवला और घनी दाढ़ी-मूँछें। सबसे अच्छी बात थी कि उनका सीना बहुत बालों भरा था। आज के  मर्दों की तरह चिकने-चमन न थे। वैक्सिंग करते रहने के कारण मुझे चिकनी स्किन से घृणा हो गई थी। मैंने उन्हें झूठ कहा था कि मैं बस औरतों के काम करती हूँ। सलून वाली मैडम को साफ़ कह रखा है कि मैं आदमियों का कोई काम न करूँगी और इसलिए ही प्रियांशु के पिता जी प्रियांशु की मुझसे शादी करने को राजी हुए थे।

इस बीच आशीष सर का सलून आना बहुत बढ़ गया। हफ़्ते में दो बार कमाल से मसाज करवाने आने लगे। मैंने एक रोज़ उनसे ज़ियारा दीदी के बारे में पूछा। उन्होंने बताया उन दोनों के बीच झगड़े बहुत बढ़ गए थे। जियारा दीदी उनपर बहुत शक करती थे। मैंने सोचा शक करती तो ठीक ही करती थी। मैंने उसी वक़्त ठान लिया था कि आज ही ज़िआरा दीदी को फ़ोन करूँगी। 

प्रियांशु के साथ बिल्डिंग की कैंटीन में मैं चाय पीने जाती थी। जिस बिल्डिंग में प्रियांशु का ऑफिस था उसी में आशीष सर का भी दफ़्तर था। उन्हें मैंने दो दफ़ा नीचे अपनी वॉल्वो कार से उतरते देखा था। टाइट आसमानी शर्ट में उनके बाइसेप्स की मसल्स देखकर ऐसे मचल रही थी कि जब प्रियांशु मुझे मिला तो मैं यह कहे बिना न रह सकी कि उसे भी जिम जाना शुरू कर देना चाहिए। फिर एक रोज़ मैं और प्रियांशु लिफ्ट का इंतज़ार कर रहे थे तो एक सिक्योरिटी गार्ड ने हमें लिफ्ट में जाने से रोका, “सर जा रहे हैं” । अंदर आशीष सर थे, उन्होंने हमें देख लिया और अंदर बुला लिया। उस दिन वह लैकोस्ट ब्रांड की महँगी पोलो टीशर्ट पहने थे और खुशबू उनसे ऐसी उठ रही थी कि आपको क्या बताऊँ। अमीरों की खुशबू। मैंने बाद में पैसे बचा बचाकर प्रियांशु को ऐसा ही परफ्यूम लाने का सोचा था। यह आदमी जो इतना हैंडसम और ख़ुशबू से भरा है, इतना अमीर और इंटेलीजेंट है, पता नहीं उस मुसलमान आदमी के साथ क्या करता है मसाज रूम में! उसका इतना दीवाना है कि अपना घर बर्बाद कर लिया। मेरी जलन ही तो थी कमाल से जो मैं ये सब सोच रही थी।इससे अच्छा तो पतली बाँहों वाला, पसीने की गंध वाला मेरा कालू प्रियांशु कछवाहा ही है। फिर आशीष सर का क़द भी प्रियांशु से दो इंच छोटा ही था। पाँच फुट नौ इंच के होंगे आशीष सर और अगर प्रियांशु ग़रीब था, अमेज़ोन में डिलीवरी एजेंट था तो वफ़ादार भी था, इन अमीरों की तरह औरत-मर्द-जानवर सबका शौक़ीन तो न था।

दिवाली के पहले के दिन थे। सलून में बहुत कामकाज था। टिपें भी बहुत मिल रही थी। देव उठने पर मेरी शादी होनी थी। उस साल बरसात बहुत हुई थी इसलिए कुआर की रूप बड़ी प्यारी लग रही थी। सभी कस्टमर मुझे क्यूट लगते थे। एक दिन आशीष सर आये। बहुत दिनों बाद आये थे। थोड़े दुबले हो गये थे। कमाल की उस दिन छुट्टी थी, आशीष सर तो हमेशा कमाल को फ़ोन करके आते थे उस दिन अचानक कैसे आए समझ नहीं आया। आते ही मसाज का कहा तो बड़ी मैडम ने नये लड़के अंकुर जाट को मसाज करने को कहा। आशीष सर ने उससे मसाज करवाने से इनकार कर दिया और मुझसे पूछा कि क्या मैं फ्री हूँ। मेरा दिल इतनी ज़ोर से धड़कने लगा। मैं बैठी एक आंटी का पेडीक्योर कर रही थी। बड़ी मैडम ने कहा दस मिनट में जब तक कमरा तैयार होता है मैं फ्री हो जाऊँगी।

इतनी घबराहट हो रही थी मुझे। ऐसे तो मैं दिनभर में कितने कस्टमर निपटाती थी मगर आशीष सर की मसाज कैसे करूँगी समझ नहीं आ रहा था। उनकी वाइफ की मालिश मैं करती थी, उनके बच्चों को मैंने गोद में खिलाया, उनके संग मैंने मिठाइयाँ और समोसे खाए थे। खैर मैं डरते-डरते भीतर घुसी। आशीष सर महँगे जाँघिये में पेट के बल लेटे मोबाइल पर रीलें देख रहे थे। उनकी मज़बूत पीठ और दमदार पुट्ठे देखकर मैं सकपका गई। मेरी आहट पाते वे मुस्कुराए और लाइट बुझाने के लिए कहा। मैंने बत्ती बुझा दी और मालिश के लिए तेल गर्म करने लगी। उन्होंने अपना आख़िरी कपड़ा भी उतार दिया और आराम से लेट गये। मेरा कुँवारापन उस दिन ख़त्म हो गया और मैं आशीष सर से बहुत ज़्यादा, बहुत ही ज़्यादा प्यार करने लगी। पता नहीं मैं उनसे प्यार क्यों करने लगी थी। उनकी एनर्जी ही कुछ अलग लेवल की थी, शरीर से इतनी गर्मी उठती थी जैसे किसी फाइव स्टार होटल के महँगे कमरे में बैठी हूँ मैं, गर्म और कॉज़ी कमरा जिसके बाहर बरसात हो रही है। ऐसा फील होता था उनकी बाँहों में। उस दिन के बाद हम हफ़्ते में दो बार तो मिलते ही मिलते थे। आशीष सर के पेंटहाउस पर भी जाते थे जो सत्ताईसवीं मंजिल पर था। क्या मैं प्रियांशु के साथ ग़लत कर रही थी?

प्रियांशु बहुत भोला और अच्छा आदमी था। हमारी सगाई के बाद भी उसने कभी मुझे होटल ले जाने का प्रस्ताव नहीं दिया था। ज़्यादा से ज़्यादा वह मुझे फ्लॉप फ़िल्में दिखाने ले जाता था जहाँ ज़्यादा भीड़ न हो और मैं उसे अपने हाथों से सुख देती थी। मैं तो उसे अपना सब कुछ देना चाहती थी मगर उसने कभी जल्दबाज़ी न की और आशीष सर वह चीज़ पहली बार में मुझसे ले गये। प्रियांशु दूर से पसीने से महकता था और बहुत पास आने पर डियो से जबकि आशीष सर दूर से ऐसे महकते थे कि सामने वाला उनका दीवाना हो जाये और पास आने पर उनका पसीना एकदम मर्दाना महक मारता था। उनसे कभी डियो की बू नहीं आती थी। मतलब मेरा यह कि दोनों विपरीत थे। मैंने प्रियांशु को एक दिन सच बता दिया। हम कैंटीन में बैठे थे। उसने मुझे लौटते समय लिफ्ट में एक तमाचा मारा और मेरी जींस का बटन खोलकर उसमें हाथ डालने लगा। मैंने उसे मना नहीं किया, उसका हक़ था और मेरी सज़ा। बाद में उसके पापा हमारे घर आये और सब बातें बाऊजी को बता दी। मम्मी और भाभी ने मुझे उस रात बहुत मारा था। भैया मुझे अस्पताल ले गये पट्टी करवाकर लाए। दूसरे दिन मैंने सैलून पहुँचकर आशीष सर को फ़ोन करके पूरी बताई। उन्होंने मुझसे कहा मैंने शादी क्यों तोड़ी! फिर कहा कि मैं उन्हें प्रियांशु का फ़ोन नंबर दूँ वह उससे बात करेंगे। मुझे बहुत गुस्सा आया। मैंने फ़ोन काट दिया। फिर मैंने प्रियांशु और आशीष सर दोनों को ब्लॉक कर दिया। आशीष सर को तुरंत अनब्लॉक कर दिया। उन्होंने दो दिनों तक फ़ोन नहीं किया। मैंने भी आगे होकर फ़ोन नहीं किया।

तीन हफ़्ते बीत गये। मैं डिप्रेशन में चली गई थी। नींद नहीं आती थी। मम्मी और बाऊजी बात नहीं करते थे। भाभी ताने देती कहती दूसरा घर किराए पर लेकर रहूँ। बस भैया मेरे प्रति नरम थे। एक बार उन्होंने मुझे पॉपकॉर्न लाकर दिये, उन्हें आज तक याद था कि मैं बचपन में पॉपकॉर्न कितना खाती थी। मैंने उनके लिए चाय बनाई तो भैया बोले, “जीवन में ग़लतियाँ हो जाती हैं। फ़िक्र मत कर।” बेटा होने के बाद उनके कमरे से आवाजें आना फिर शुरू हो गई थी। उस दिन भी आई मगर बहुत ज़ोर-ज़ोर से लड़ने की। भाभी मेरी वजह से उनसे बहुत लड़ रही थीं, फिर अचानक दरवाज़ा खुला और ब्रा-पेटीकोट में भैया भाभी को पीटते हुए बाहर लाए। मम्मी और मैं भाभी को बचाने दौड़े। मैंने उनके बदन पर शॉल डाली तो उन्होंने उसे उल्टा फेंक दिया। ससुर के आगे ब्रा में पिटना किस भली औरत का शऊर था। हम दोनों औरतें भाभी को पकड़कर अंदर ले गईं। उनकी बालों भरी बग़लें देखकर मुझे मन किया इनकी वैक्सिंग कर दूँ। वह मुझे बहुत दयनीय लगी। ग़रीब और बदबूदार। चिकनी नहीं थी। पता नहीं भैया कैसे उनके साथ रातों को ऐसी आवाजें करते थे। चिकनापन, खुशबू, यह सब अमीरों के लच्छन है। अमीरों के शरीर की महक ही अलग होती है उनका रहन-सहन बिल्कुल अलग। 

बहुत दिनों बाद आशीष सर जियारा दीदी को पेडीक्योर के लिये लाए। चंदो भाभी उनका पेडीक्योर कर रही थी। आशीष सर ने मुझसे कहा, “प्रियांशु से मैंने बात की है, वह तुमसे शादी करने को राजी है”। मैंने उन्हें देखा और मेरी आँखों में आँसू आ गए। इतनी देर में कमाल आया और आशीष सर से कहा कि सर मसाज का कमरा तैयार है। दोनों चले गये।

प्रियांशु से मेरी शादी २३ नवम्बर को हो गई। वह मुझसे शादी करने को क्यों राजी हो गये थे? आपके मन में यह सवाल होगा। क्योंकि मैं कमाऊ औरत थी। आशीष सर ने प्रियांशु को बताया था कि वह व्यावहारिक बने। पैसे से ज़िंदगी आसान होती है न कि कुँवारी बीवी मिलने से। मैं अब भी सलून में काम करती हूँ। प्रियांशु ने कहा है कि जो भी करना है हाथ से करना। हाथ जगन्नाथ होते है, कमाते हैं, पकाते हैं, खिलाते हैं और कुछ भी गंदा करो इन्हें धो लो तो कंचन हो जाते हैं। हाथ मन ही तरह नहीं जिनका मेल बरसों नहीं जाता।                                                    

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