जानकी पुल – A Bridge of World's Literature.

युवा कवि अंचित ने यह लेख लिखा है भारतीय मूल के अंग्रेज़ी कवि आगा शाहिद अली पर। आगा शाहिद अली का देहांत बहुत कम उम्र में हो गया लेकिन वे अंतरराष्ट्रीय ख्याति के कवि थे। एक समय में भारतीय अंग्रेज़ी कविता के सबसे लोकप्रिय नाम। आपो अंचित का यह लेख पढ़िए- मॉडरेटर

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 विरह का एक विस्तृत पुरालेख गढ़ने वाले कवि आगा शाहिद अली

(यह लेख अपने प्रिय और आदरणीय शिक्षक प्रोफ़ेसर शंकर दत्त को समर्पित है)

कुछ कवियों से ज़िंदगी में तब मुलाक़ात होती है जब ज़िंदगी का सपना टूटना तो दूर, पूरा बना भी नहीं होता।जैसे आपके बगीचे की क्यारी में कोई फूल खिला हो और उसकी प्रशंसा करने की समझ बनने में वक़्त हो, एक निरा आकर्षण जो बाद की उम्र में बार बार आपको आपके किसी सुंदर सपने की तरह याद आता है। कुछ ऐसा होता है उन कवियों में जो आपके जीवन के अनुभवों से इस तरह जुड़ता है कि उसका जीवन और आपका जीवन अलग अलग नहीं रह जाता। यह हर कवि के बस की बात नहीं है, यह भी धीरे धीरे समझ आता है। पटना तब कोई बड़ा शहर नहीं था और अंग्रेज़ी कविताओं की किताबें जिन जगहों पर पहुँचतीं थीं, वहाँ तक मेरी कोई पहुँच नहीं थी। फिर भी आगा शाहिद अली इस वजह से मिले क्योंकि सिलेबस में उनपर एक अध्याय था- अध्याय भी क्या, उनकी मौत के बाद, उनकी याद में लिखा उनके दोस्त और लेखक अमिताभ घोष का एक मर्सिया- उस तरह से लिखा हुआ जिस तरह से शाहिद को खुश करता और उस तरह का कि पढ़ने वाले के दिल में एक आसमानी मोहब्बत जग जानी तय थी। शाहिद की लिखी पंक्तियों का इस्तेमाल घोष, शाहिद के लिए ही कर रहे थे। इन पंक्तियों के ज़रिए ही शाहिद का तिलिस्म उसकी कब्र से कोसों दूर नौजवानों में पैदा होना था।

“यह एक पुरालेख है,

मैंने उसकी आवाज़ के अवशेष खोज लिए हैं

शिद्दत से बना एक नक्शा

असीम…”

शाहिद को समझने का सबसे अच्छा तरीक़ा यही है कि उनकी कविताओं को सबसे पहले चाहतों की कविताएँ माना जाए। आगा शाहिद अली कश्मीर से आते हैं, उनकी चाहतों में एक कश्मीर है जो आदर्श कल्पना से बना है। कश्मीर उनका महबूब है, उनकी जन्नत है और वह जगह है जहाँ उनकी माँ रहती हैं। वहाँ बचपन बिताने, राधा कृष्ण वाली ठुमरियाँ सुनने, मजलिसों में नौहे सीखने, और वहाँ की आबोहवा को अपने फेफड़ों में सोखने वाले शाहिद को ज़िंदगी में नौकरियाँ बहुत दूर बदी थीं। वे अमरीका में रहे कई कई साल और फिर वहीं सुपुर्दे ख़ाक हुए। लेकिन उन्होंने ज़िंदगी में जो कुछ समेटा उसके केंद्र में कश्मीर ही है – शिद्दत से बने नक़्शे में झेलम, हिमालय, श्रीनगर, मोहब्बत और महबूब से विरह का एक विस्तृत पुरालेख – “यूँ न था, मैंने फ़क़त चाहा था यूँ हो जाये” की तर्ज़ पर। इसलिए केंद्र में शाहिद की अपनी स्मृति।

    “और यहाँ

फिर आ खड़ी हुई है

यह याद

     मेरे दरवाज़े.”

किसी कवि के पास उसकी सबसे बड़ी पूँजी उसकी स्मृति होती है और वह स्मृति का संरक्षक भी होता है। किसी एक की स्मृति नहीं, सामूहिक स्मृतियों का संरक्षक। साथ ही किसी कवि का अच्छा बुरा होना इस बात पर भी निर्भर करता है कि उसका लैंडस्केप कितना विस्तृत है, उसने अपने मन में कितनी यात्राएँ की हैं, वह कहाँ तक गया है, सिर्फ़ ज़मीन पर या समय में भी क्योंकि दुनिया के हर महान कवि को उसके जीवन और उसके समय ने, उसके समाज ने, उसकी सभ्यता ने अन्य चीजों के साथ एक भटक भी दी होती है, जो उसकी निर्मिति का हिस्सा है। यही उसका वरदान भी है और यही उसका श्राप भी। तो कवि भटकता हुआ, स्मृति के द्वारा और स्मृतियों के लिए ही जीता है। शाहिद भी याद करते हैं।वह याद और उसको सही सही कह पाने की चाहत उनको विश्व सभ्यता के उन कोनों, उन दीवारों, उन शिलालेखों तक लेकर जाती हैं जहाँ मनुष्यता का सत अपनी सबसे परिष्कृत रूप में निवास करता है। दुनिया का महान साहित्य, जिसके बीज में मेरे आपके जैसे लोगों के साधारण अनुभव हैं, एक पंक्ति में ही एक साथ अमेरिका का एक शहर और भारत का एक शहर हो सकता है जैसे एक पंक्ति में एक साथ ग़ालिब, होमर और कालिदास हो सकते हैं। यह कठिन काम है लेकिन शाहिद का उस्ताद एलीयट है जिसके लिए यह करना बाएँ हाथ का खेल था। शाहिद की कविताओं से कई उदाहरण लिए जा सकते हैं। जैसे एक कविता की पहली दो पंक्तियाँ फ़राज़ की किसी ग़ज़ल से उठाई जा सकती हैं, कोई ठुमरी जो कृष्ण के लिए राधा की शिद्दत बयान करती हो, शाहिद के बचपन में सुने किसी क़िस्से का पता दे सकती है। पर हर मिसरा जो शाहिद लिखता है उसमें अफ़्सुर्दगी सिर्फ़ इस वजह से आती है कि वह जो आदर्श कल्पना चाहता है वह पूरी नहीं हो रही, उसकी कल्पना का कश्मीर उससे दूर है।  

     “ विरह झेला नहीं जाता

     जब बारिश होती है:

     हर गीत यही कहता है”

यहाँ शाहिद की राजनीति भी दिखती है और देश, भाषा, रंग, धर्म, जाति जैसे तमाम विभाजकों के सामने तन कर खड़ी होती है। बिना कविता की कला की किसी अहम माँग से किसी तरह का समझौता किए। किसी बड़े कवि के पास अब तब नहीं जाते जब आपके जीवन में सुख बिना दुःख की परछाईं के रह रहा होता है। मनुष्यता के सबसे महान अंक करुणा और दुःख से ही बने हैं। त्रासदी का दस्तावेज बनाना ही कविता करना है। अपनी सभ्यता के दुखों का शाहिद ने भी यही किया और अपने निजी दुखों का भी। कश्मीर में जो घटता रहा, उनकी कविता लगातार उसकी बयानी करती रही। पंडितों का पलायन, विदेशियों के अपहरण और हत्याएँ, नौजवान युवकों का मार दिया जाना, उनका आतंकियों में बदल जाना। अनेक कारणों  से यह कठिन था और जटिलता से भरा हुआ पर शाहिद अपने दिमाग़ में अपना पक्ष तय कर चुके थे- मोहब्बत और नफ़रत में मोहब्बत, ज़िंदगी और मौत के बीच ज़िंदगी, प्रभुसत्ता और दमन के बीच दमित का पक्ष। उनकी माँ की मृत्यु कैन्सर से हुई। शाहिद की ज़िंदगी का केंद्र उनकी माँ ही थीं। शाहिद ने उनके लिए एक कविता लिखी, अंग्रेज़ी कविता के सबसे कठिन फ़ॉर्म में से एक फ़ॉर्म में। उनका तीसरा केनज़ोन। संभवत: लोर्का ने भी अपनी ज़िंदगी में दो लिखे थे।

     “ठीक है फिर-

     कायनात भी जन्नत की तरह

एक कब्र समझी जाए.

माँ, वे पूछते हैं, मेरा लिखना कैसा चल रहा है?

मैं कहता हूँ, मेरी माँ ही मेरी नज़्म है”

उन्होंने जो नौहों की पुनर्रचनायें  अपनी कविता में कीं, इस्लामिक मिथकों का जो इस्तेमाल किया और फ़ैज़ ग़ालिब के जो अनुवाद किए, वे प्रयोग अतुलनीय हैं और अब उपमहाद्वीपीय साझी विरासत का हिस्सा हैं।उनके पास सीखने के लिए तीन संस्कृतियों के कोड थे और विश्व स्तर पर उन्होंने उर्दू कविता से, विशेष कर फ़ैज़ से लोगों का परिचय कराया। फ़ैज़ पर लिखा उनका लेख ‘द ट्रू सब्जेक्ट” फ़ैज़ की शायरी को समझने के लिए  सबसे महत्वपूर्ण कुंजी है।  ‘ग़ज़ल’ जो अपनी शैली में बिलकुल मध्य पूर्व एशिया और भारतीय उपमहाद्वीप की चीज़ थी, उसको उन्होंने अंग्रेज़ी में ढाला और क़ायदों के साथ और अपने समकालीनों से उन्होंने अंग्रेज़ी में ग़ज़ल लिखवाई भी। ख़ुद तो लिखी ही।

आगा शाहिद अली को कई तरह से देख सकते हैं। उन्होंने उर्दू कविता के बेहतरीन अनुवाद किए। वे कश्मीरी थे। वे अमरीकी कवि थे। वे शिया मुसलमान थे। वे समलैंगिक थे। वे एक अमरीकी विश्वविद्यालय में पढ़ाया करते थे। उन्होंने विस्थापन का दंश झेला। उनकी मृत्यु भी कैन्सर से हुई। वे अंग्रेज़ी कवि थे। उन्होंने अंग्रेज़ी कविता के कुछ सबसे कठिन फ़ॉर्म में कविताएँ लिखीं। उनकी कविताओं को समझने के लिए पाठकों को मेहनत करनी पड़ती है। उन्होंने अंग्रेज़ी में ग़ज़लें लिखीं। एक लेख में उन पर बात करना मुमकिन नहीं। बल्कि अंग्रेज़ी में भी, विश्व कविता में भी, अभी तक उन पर समग्रता से बात नहीं हो सकी। लेकिन नोट करने वाली बात यह है कि कविताओं और मोहब्बत के बाहर कोई शाहिद नहीं है और इसलिए उनकी मौत के इतने बरस बाद भी अपने पसंदीदा उर्दू शायरों की तरह वह बौद्धिकता से पहले अनुभूतियों में मिलता है, अकादमिक पाठों से पहले प्रेमियों की अंतरंग गुफ़्तगू में। उससे परिचय के इन पंद्रह सालों में मैंने न जाने कितनी बार उसे ख़्वाबों में देखा है, उसको ख़त लिखे हैं, अपनी कविताओं के लिए उसकी आलोचना झेली है, उसके और अपने पसंदीदा कवि मिलाए हैं और उससे उत्तरआधुनिक शिकायतें की हैं। हिंदी में शाहिद का अनुवाद न के बराबर हुआ है। इसलिए उसके मुरीद अभी कम हैं। लेकिन वह महबूबों का महबूब है और खुद होता तो चाहता कि कोई नई खिड़की खुले, नए दोस्त मिलें। कविता सबसे पहले अकेलेपन को कम करती है। इससे बड़ी नेमत क्या है अभी के समय में। ‘कश्मीर से आया ख़त’ कविता में अली का विरह, उसकी मोहब्बत और उसका रोमान एक साथ दिखता है –  

कश्मीर सिमट जाता है मेरे मेलबॉक्स में.
चार गुने छह का सुलझा हुआ मेरा घर.
मुझे साफ चीजों से प्यार था हमेशा. अब
मेरे हाथों में है आधा इंच हिमालय.
ये घर है. और ये सबसे करीब
जहां मैं हूं अपने घर से. जब मैं लौटूंगा,
ये रंग इतने बेहतरीन नहीं होंगे,
झेलम का पानी इतना साफ,
इतना गहरा नीला. मेरी मुहब्बत
इतनी जाहिर.
और मेरी याद धुंधली होगी थोड़ी
उसमे एक बड़ा नेगेटिव,
काला और सफेद, अभी भी पूरा रौशन नहीं.

मुख्य-संदर्भ

  1. द वेल्ड सूट, कलेक्टेड पोयम्स, आगा शाहिद अली, पेंगुइन।
  2. आगा शाहिद अली, मोनोग्राफ, निशात ज़ैदी, साहित्य अकादमी।
  3. द घाट ऑफ़ द ओनली वर्ल्ड, अमिताभ घोष।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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